दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध हिंदू कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रतन लाल को शनिवार को दिल्ली पुलिस ने तीस हजारी कोर्ट में पेश किया। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में 'शिवलिंग' पाए जाने के दावों पर उन्होंने सोशल मीडिया कथित आपत्तिजनक पोस्ट डाली थी जिसके आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया था। मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने डॉ. रतन लाल को जमानत दे दी है।
पुलिस ने प्रोफेसर रतन लाल की रिमांड नहीं मांगी थी। पुलिस ने कहा था कि आरोपी की न्यायिक हिरासत चाहिए। एक पढ़े लिखे आदमी से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती। ये केवल सोशल मीडिया पोस्ट नहीं था बल्कि इसे यूट्यूब में भी डालने के लिए कहा जा रहा था। आरोपी आगे ऐसी गलती न करे इसके लिए पुलिस उसे नोटिस दिए बिना सीआरपीसी 41 ए के तहत गिरफ्तार कर सकती है।
अदालत को जवाब देते हुए पुलिस ने कहा कि ऐसे दो वीडियो हैं। ऐसे में आरोपी को चौदह दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा जाए। वहीं रतन लाल के वकील ने कहा कि मामले में कोई केस ही नहीं बनता है। गिरफ्तारी छोड़िए, इनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज नहीं होनी चाहिए। अभी तक सोशल मीडिया पोस्ट से कोई हिंसा नहीं हुई है। ऐसे में पुलिस एक्शन 153 कैसे लगा सकती है। अगर किसी व्यक्ति की सहनशक्ति कम है तो उसके लिए रतन लाल कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां हर किसी को बोलने की आजादी है। ये एफआईआर रद्द होनी चाहिए।
प्रोफेसर की दलील सुनकर जज ने दिल्ली पुलिस से पूछा कि आपने इन्हें बगैर नोटिस दिए गिरफ्तार क्यों किया? इस पर दिल्ली पुलिस ने कहा कि इसमें इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस हैं। अगर नोटिस जारी करते तो एक क्लिक में सारे एविडेंस डिलीट कर देते। आरोपी अंबेडकरवादी हैं। उन्हें बहुत लोग फॉलो करते हैं। अगर आप इतने शिक्षित हैं तो आपको जिम्मेदार भी होना चाहिए। आपको ऐसी पोस्ट करने से पहले सोचना चाहिए। हमें इनके खिलाफ छह शिकायतें मिली हैं।
इधर रतन लाल के वकील ने कहा कि उन्हें जेल नहीं भेजा जाना चाहिए। ये कानून का दुरुपयोग होगा। इस तरह से होगा तो जेल बुद्धिजीवियों से भर जाएगी। हालांकि पुलिस का कहना था कि अगर इन्हें जमानत दी गई तो समाज में गलत मैसेज जाएगा। अगर ये जमानत पर छूटे तो और भी लोग ऐसा करने का साहस करेंगे।