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मनरेगा में काम करने वाले परिवारों को 100 दिन का अधिकार नहीं मिल पा रहा - डॉ उदित राज
आज महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के बजट में केंद्र सरकार द्वारा की गई कटौती के खिलाफ असंगठित कामगार और कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) द्वारा एक विशाल विरोध प्रदर्शन दिल्ली के जंतर-मंतर पर किया गया। ग्रामीण श्रमिकों को कम से कम 100 दिनों का रोजगार सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा को अधिनियमित किया गया था। 2020-21 की महामारी के दौरान, आवंटन 1,11,500 करोड़ था और इसने करोड़ों लोगों की जान बचाई। वर्ष 2021-22 के लिए 73,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और यह 20-21 के संशोधित अनुमान 1,11,500 करोड़ रुपये से 34.5% कम था। पीएम मोदी ने संसद के पटल पर इस योजना की निंदा करते हुए कहा था कि यह कांग्रेस शासन की गरीबी की निशानी है।
मनरेगा सामाजिक न्याय और कल्याणकारी न होती तो कोविड के दौरान असंगठित मजदूरों की दुर्दशा की कल्पना कीजिए। बेशर्म सरकार ने न केवल इस महान कल्याणकारी योजना पर भरोसा किया बल्कि बजटीय आवंटन को बढ़ाकर 1,11,500 लाख करोड़ कर दिया। मोदी सरकार इतनी मज़दूर विरोधी है कि अब वह इस सामाजिक न्याय योजना को पूरी तरह से मिटाने पर तुली हुई है और इसीलिए इस वर्ष के आवंटन को घटाकर 60000 करोड़ कर दिया गया है, जो वास्तविक आवंटन का लगभग आधा था। यहां तक कि 1,11,500 का आवंटन भी देश में उपलब्ध कार्यबल को 100 दिनों का रोजगार प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं था।
असंगठित कामगार और कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ उदित राज ने कहा कि बजट की भारी कमी के कारण राज्य सरकारों को मनरेगा को जारी रखने में मुश्किल हो रही है। सरकार की अनैतिक और अघोषित रणनीति काम की मांगों को पोर्टल पर अपलोड न करने की अनुमति देकर योजना को हतोत्साहित करना है। फिलहाल इस योजना से करीब 15 करोड़ परिवार जुड़े हुए हैं लेकिन फंड की भारी कटौती के कारण इन परिवारों को 100 दिन का अधिकार नहीं मिल पा रहा है। मौजूदा बजट पूरे साल में औसतन 26 दिन का ही काम दे सकता है और इस तरह यह स्पष्ट है कि सरकार इसे खत्म करना चाहती है। कई राज्य बकाया राशि प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही है।
असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस (केकेसी) राष्ट्रीय समन्वयक (मनरेगा) धीरज गाबा ने मोदी सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि अपर्याप्त धन के कारण श्रमिकों को दी जाने वाली मजदूरी बहुत कम है। कुछ स्थानीय सरकारें इसे लागू करने के लिए बहुत अनिच्छुक हैं। मजदूरी के भुगतान में देरी तो होती ही रहती है। भारत के अधिकांश राज्य 100% धन का उपयोग नहीं कर रहे हैं और स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार बहुत अधिक है। मनरेगा के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करीब 3,00,000 करोड़ रुपये की जरूरत है।
उपरोक्त के अलावा धरना-प्रदर्शन को दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री योगेंद्र शास्त्री और असंगठित कामगार एवं कर्मचारी कांग्रेस के नेता संजय गाबा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, प्रबल प्रताप शाही, कर्नल विजेंदर सिंह खोखर, जावेद, - राष्ट्रीय समान्वयक,अनिल बोस – राष्ट्रीय समान्वयक, मुकेश डागर – रिजनल कॉर्डिनेटर, सुनील शिंदे – प्रदेश चेयरमैन महाराष्ट्र, आशुतोष बिसेन – प्रदेश चेयरमैन मध्य प्रदेश, सुशील राठी – प्रदेश चेयरमैन उत्तराखंड, सूरज मल कर्दम – पदेश चेयरमैन – राजस्थान, श्री राजीव राणा – प्रदेश चेयरमैन हिमाचल, राज कुमार तिवारी – प्रदेश चेयरमैन मध्य उत्तर प्रदेश, शैलेन्द्र चौहान – प्रदेश चेयरमैन पश्चिमी उत्तर प्रदेश, विनोद पवार – प्रदेश चेयरमैन दिल्ली, विद्याधर मोहंती – प्रदेश चेयरमैन ओडीशा, हरपाल सिंह बुडानिया, आत्मजीत (BKU Asli), वीरेंद्र हुडा, शबनम हास्मी, सजन सिंह इन्दाछुई,बाबु लाल आदि ने संबोधित किया।