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मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के विभाजित फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है| दरअसल हाई कोर्ट के दो जजों की बेंच ने बीते सप्ताह 11 मई को मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के मामले में खंडित फैसला सुनाया था| जस्टिस राजीव शकधर ने अपराधीकरण के पक्ष में फैसला सुने, जबकि जस्टिस हरी शंकर ने इससे असहमति जताई थी|
जानकारी के अनुसार, हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने इस प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है। बेंच ने पक्षकारों को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी थी। बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप के अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा कि भारतीय दंड संहिता के तहत प्रदत्त यह अपवाद असंवैधानिक नहीं हैं और संबंधित अंतर सरलता से समझ में आने वाला है।
याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत मैरिटल रेप के अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी थी कि यह अपवाद उन विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव करता है, जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है। इस अपवाद के अनुसार, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है, तो उसके पति का उसके साथ यौन संबंध बनाना या यौन कृत्य करना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।