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माजिद अली खान राजनीतिक संपादक
निज़ामुद्दीन में तबलीगी जमात प्रकरण के मामले में राजनीतिक चालें शुरू हो गई हैं. मामला था सिर्फ प्रशासनिक, लेकिन केंद्र पर सत्तारूढ़ भाजपा और दिल्ली राज्य में सरकार चला रही आप की सरकार ने इस मुद्दे पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकने का मन बना लिया. अचानक किए लोक डाउन से उपजी अजीब सी स्थिति ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया था और फिर प्रधानमंत्री की माफी ने इन आलोचकों को और अधिक मुखर होने का आधार दिया.
मजदूरों के पलायन के मुद्दे पर भाजपा की केंद्र एवं यूपी सरकार ने केजरीवाल को दोषी करार देना शुरू कर दिया था. न्यूज़ चैनल पर आनंद विहार पर इकट्ठी हुई भीड़ ने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी. अब भाजपा को एक नये और परंपरागत मुद्दे की तलाश थी जिससे हिन्दू मुस्लिम की बहस शुरू कर लोगों का ध्यान डाइवर्ट किया जा सके तथा मीडिया को अपने मुस्लिम विरोधी एजेण्डा पर लगाया जा सके. इसी बीच तबलीगी जमात के मुद्दे को हवा देनी शुरू कर दी जबकि सरकारों को पिछले पंद्रह दिन से पता था कि वहाँ भीड़ जमा है, अगर केंद्र सरकार बहुत जयादा गंभीर होती तो लोक डाउन के अगले दिन ही इस मामले को खत्म कर सकती थी. तबलीगी जमात का पूरी दुनिया में नैटवर्क है और ये जमात सिर्फ लोगों को नमाज़ सिखाने का कार्य करती है तथा समूह बना कर इधर से उधर लोगों को ले जाती है.
जब तबलीगी जमात का मुद्दा एक बड़ा मुद्दा बन गया तथा कोरोना की मुसीबत के बीच हिन्दू मुस्लिम में लोग बंटने लगे तब केंद्र सरकार ने केजरीवाल को भी इसमें लपेटना शुरू कर दिया. केजरीवाल ने पलटवार करते ही पुलिस को सख्त कारवाई करने के आदेश दिए जिस पर जमात के प्रमुख मौलाना साद पर एफआईआर दर्ज हो गई. केजरीवाल ने एफआईआर दर्ज कराकर भाजपा की मुश्किलें इसलिए बढ़ा दी कि तबलीगी जमात सबसे अधिक भीड़ वाला मुस्लिम संगठन है. अगर इसके प्रमुख को गिरफ्तार करने की नौबत आई तो सरकार के लिए बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है. इसका आधार भी एक और खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने खुद जाकर मौलाना साद से मिलकर मरकज़ खाली करने के लिए समझाया जिस पर मरकज़ में कार्रवाई की जा सकी. लोग इस पर भी सवालिया निशान लगा रहे हैं कि आखिर डोभाल के मिलने के बाद से मौलाना साद गायब हैं.
एफआईआर दर्ज होने की सूरत में गिरफ्तारी भी करनी होगी जो एक बड़ा कदम होगा. केजरीवाल के इस सख्त कदम से खुद भाजपा भौचक्की है कि भाजपा की गेंद भाजपा के पाले में डाल दी. अक्सर पहले भी ये बातें उड़ती रहीं हैं कि तबलीगी जमात पर इसराइली खूफिया एजेंसी मोसाद से संबंध रहता है और अजीत डोभाल का भी मोसाद से संबंध रहा है. केंद्र सरकार ने अपनी आफतों पर सवाल न उठने देने के लिए कोरोना की चर्चा तबलीगी जमात की तरफ मोड़ दी है. लेकिन इस चर्चा से भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी नुकसान होगा. अब केजरीवाल कोशिश करेंगे कि वो गृहमंत्रालय पर मौलाना साद की गिरफ्तारी करने का दबाव बनाएं. अगर गिरफ्तारी हुई या नहीं भी हुई तो केंद्र सरकार के लिए बड़ी दिक्कत की बात होगी. देखना ये है कि भाजपा और केजरीवाल में कौन बाज़ी मारता है, लेकिन इस बहस के बीच ये तय है कि मुसलमानों में बेचैनी बढ़ रही है और उन्हें लगता है कि पूरा देश उनके खिलाफ साज़िश कर रहा है