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देश की राजधानी में भीषण मुंडका अग्निकांड ने एक बार फिर दिल्ली वालों को दहलाकर रख दिया है। शुक्रवार शाम को घटित इस हादसे में 27 लोगों की मौत हुई है। चारों तरफ हाहाकार और मातम का माहौल है। रोते-बिलखते लोग दर्दनाक हादसे की कहानी बयां कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि उपहार, दाल मंडी, मुंडका जैसे भीषण अग्निकांड से दिल्ली के लोग कब सबक लेंगे। क्या दिल्ली वालों को इसकी परवाह नहीं है या दिल्ली सरकार व केंद्रीय एजेंसियों को पूरा अमला सोया हुआ है। दिल्ली सरकार जागती केवल उस समय है जब दर्जनों लोग ऐसे हादसों को शिकार हो जाते हैं।
मुंडका अग्निकांड के बाद भी कोई ये दावा नहीं कर सकता कि यह हादसा अंतिम हादसा होगा। इसकी वजह है कि दिल्ली में हजारों की तादाद में ऐसी इमारतें हैं, जहां अग्निशमन के उपाय ही नहीं हैं कि आग लगे तो उस पर फौरन काबू पाया जा सके। इसकी एक बड़ी वजह बिल्डिंग निर्माण के दौरान नियमों की अवहेलना। अग्निशमन एजेंसियां सोई हुई हैं। दिल्ली में उपहार से लेकर दाल मंडी तक के हादसों के बाद कमिटियां बनीं और सिफारिशें भी हुईं लेकिन इसके बावजूद इस तरह के हादसे नहीं रुके।
दरअसल, पश्चिमी दिल्ली के मुंडका की जिस फैक्टरी में आग लगी वहां के इंतजामों की हालत ये थी कि बाहर निकलने के लिए एक ही रास्ता था और उसी रास्ते पर जनरेटर लगा था, जिससे आग की शुरुआत हुई। परिणाम यह निकला कि आग लगने के बाद लोग बाहर ही नहीं निकल पाए। दिल्ली में ऐसी अनेकों फैक्ट्रियों मिल जाएंगी, जहां ऐसे इंतजाम ही नहीं हैं कि अगर आग लग जाए तो लोग बाहर निकल सकें। ऐसे भवनों में वैकल्पिक रास्तों की सुविधाएं नहीं होती हैं। दिल्ली सरकार की फायर एजेंसियां हमेशा की तरह इस बार भी सोईं रहीं। यही वजह है कि मुंडका की एक फैक्ट्री में आग लगी और 27 लोग दर्दनाक हादसे में झुलसकर मर गए।