दिल्ली

मुसलमान पेट पर पत्थर बांध कर अपने बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाएं

Shiv Kumar Mishra
14 Jan 2021 8:49 AM GMT
मुसलमान पेट पर पत्थर बांध कर अपने बच्चों को उच्चशिक्षा दिलवाएं
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अब हमें ऐसे स्कूलों की आवश्यकता है जिसमें धार्मिक पहचान के साथ हमारे बच्चे आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर सकें

हर साल की तरह वर्ष 2021- 2022 के लिए मौलाना सैयद अरशद मदनी ने छात्रवृत्ति की घोषणा की

नई दिल्ली।हर वर्ष की तरह साल 2021-2022 के लिए भी जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष हज़रत मौलाना सैयद अरशद मदनी ने आज छात्रवृत्ति की घोषणा की। इस अवसर पर एक संक्षिप्त संबोधन में उन्होंने कहा कि इन छात्रवृत्तियों की घोषण करते हुए हमें अति प्रसन्नता हो रही है कि हमारा यह छोटा सा प्रयास कई ऐसे बुद्धिमान और मेहनती बच्चों का भविष्य किसी हद तक संवार सकता है जिन्हें आर्थिक तंगी के कारण अपनी शिक्षा को जारी रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मौलाना मदनी ने कहा कि पूरे देश में जिस प्रकार से धार्मिक और वैचारिक युद्ध अब शुरू हुआ है इसका मुक़ाबला किसी हथियार या तकनीक से नहीं किया जा सकता बल्कि इस युद्ध में सफलता प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता यह है कि हम अपनी नई पीढ़ी को उच्च शिक्षा से लैस करके इस योग्य बना दें कि वो अपने ज्ञान और बुद्धि के हथियार से इस वैचारिक युद्ध में विरोधियों को पराजित करके सफलता एवं समृद्धि के उन लक्ष्यों को प्राप्त कर लें जिन तक हमारी पहुंच राजनीतिक रूप से सीमित और कठिन बना दी गई है। मौलाना मदनी ने कहा कि आज़ादी के बाद आने वाली सभी सरकारों ने एक निर्धारित नीति के अंतर्गत मुसलमानों को शिक्षा के क्षेत्र से बाहर कर दिया, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट इसकी गवाही देती है जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में दलितों से भी पीछे हैं।

मौलाना मदनी ने सवाल किया कि क्या यह अनायास हो गया या मुसलमानों जानबूझ कर शिक्षा से दूर रहे? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि सत्ता में आने वाली सभी सरकारों ने हमें शैक्षिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार बनाए रखा। उन्होंने शायद यह बात महसूस कर ली थी कि अगर मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़े तो अपनी क्षमता और प्रतिभा से वो सभी महत्वपूर्ण उच्च पदों पर आसीन हो जाएंगे, इसलिये हर प्रकार के बहानों और बाधाओं द्वारा मुसलमानों को शिक्षा के राष्ट्रीय मुख्यधारे से अलग-थलग कर देने का प्रयास होता रहा। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अब समय आगया है कि मुसलमान पेट पर पत्थर बांध कर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलवाएं, हमें ऐसे स्कूलों और कॉलिजों की अति आवश्यकता है जिनमें धार्मिक पहचान के साथ हमारे बच्चे उच्च आधुनिक शिक्षा किसी बाधा और भेदभाव के बिना प्राप्त कर सकें, जो स्थिति है उनमें मुसलमानों को नेतृत्व की नहीं बल्कि उनके अंदर शिक्षा प्राप्त करने की भावना पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है।

उन्होंने मुसलमानों के प्रभावशाली लोगों से यह अपील भी की कि जिनको अल्लाह ने धन दिया है वो ऐसे स्कूल स्थापित करें जहां बच्चे अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखते हुए आसानी से अच्छी आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर सकें। हर शहर में कुछ मुसलमान मिलकर कॉलेज स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य यह है कि जो हमारे लिए इस समय अति महत्वपूर्ण है उस ओर भारतीय मुसलमान ध्यान नहीं दे रहे हैं, आज मुसलमानों को अन्य चीज़ों पर खर्च करने में तो रुचि है लेकिन शिक्षा की ओर उनका ध्यान नहीं है, यह हमें अच्छी तरह समझना होगा कि देश की वर्तमान स्थिति का मुक़ाबला केवल शिक्षा से ही किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि इन्ही परिस्थितियों को देखते हुए हमने देवबन्द में उच्च आधुनिक शिक्षा संस्थान जैसे बी.एड कॉलेज, डिग्री कॉलेज, लड़कों और लड़कियों के लिए स्कूल और विभिन्न राज्यों में आईटीआई की स्थपना की है जिनका प्रारंभिक फ़ायदा भी अब सामने आने लगा है।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद का कार्यक्षेत्र बहुत व्यापक है और वो हर मोर्चे पर सफलतापूर्वक काम कर रही है, इसलिये एक ओर जहां यह मकतब और मदरसे क़ायम कर रही है वहीं अब इसने ऐसी शिक्षा पर भी ज़ोर देना शुरू कर दिया है जो रोज़गार प्रदान करती है। रोज़गार देने वाली शिक्षा का अर्थ है तकनीकी और प्रतिस्पर्धी शिक्षा ताकि जो बच्चे इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करके बाहर निकलें उन्हें तुरंत रोज़गार और नौकरी मिल सके और वो खुद को हीन भावना से भी सुरक्षित रख सकें। उन्होंने कहा कि इसी लक्ष्य के अंतर्गत जमीअत उलमा-ए-हिंद ज़रूरतमंद छात्रों को कई वर्ष से छात्रवृत्ति दे रही है ताकि संसाधनों की कमी या गरीबी के कारण बुद्धिमान और होनहार बच्चे शिक्षा से वंचित न रह जाएं, उन्होंने स्पष्ट किया कि वर्ष 2021-2022 की छात्रवृत्ति के लिए फार्म भरने की अंतिम तिथि 30 जनवरी 2021 है,

फार्म वेबसाइट: www.jamiatulamaihind.com से अपलोड किया जा सकता है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वो छात्र जो किसी सरकारी या प्रसिद्ध संस्था से इंजीनीयरिंग, मेडिकल, एजुकेशन, जर्नलिज़्म से संबंधित या कोई भी तकनीकी या प्रोफेशनल कोर्स कर रहे हों और पिछली परीक्षा में जिन्होंने कम से कम 70 प्रतिशत नंबर प्राप्त किये हों, छात्रवृत्ति के योग्य होंगे। उन्होंने ये भी कहा कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद यह काम भी धर्म से ऊपर उठकर कर रही है लेकिन अब हमने निर्णय लिया है कि जमीअत उलमा-ए-हिंद अपने प्लेटफार्म से मुसलमानों में शिक्षा को आम करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावी अभियान शुरू करेगी और जहां कहीं भी आवश्यकता समझी जाएगी शिक्षण संस्थान भी स्थापित करेगी और मुसलमानों के तमाम जिम्मेदार का इस ओर ध्यान आकर्षित करने का हर संभव प्रयास भी करेगी क्योंकि आज के हालात में हमें अच्छे मदरसों की भी आवश्यकता है और अच्छे उच्च आधुनिक शिक्षण संस्थान की भी, जिनमें क़ौम के उन गरीब मगर बुद्धिमान बच्चों को भी शिक्षा के समान अवसर मिलें जिनके माता-पिता शिक्षा का ख़र्च उठा पाने में असमर्थ हैं। उन्होंने आगे कहा कि क़ौमों के जीवन में घर बैठे क्रांति नहीं आती बल्कि उसके लिए व्यावहारिक रूप से प्रयास किया जाता है और बलिदान करना पड़ता है।

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