दिल्ली

केरल के नये राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का राजनैतिक जीवन का सफरनामा!

Special Coverage News
1 Sep 2019 7:41 AM GMT
केरल के नये राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का राजनैतिक जीवन का सफरनामा!
x
इस्लामी सुधारों को लेकर वह कई नीति निर्धारण प्रक्रियाओं में शामिल रहे. कई थिंक टैंक्स के साथ जुड़े रहे और कई संस्थाओं के लिए व्याख्यान देते रहे.

केरल के राज्यपाल (Governor) के तौर पर नियुक्त किए गए आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) के बारे में आप कितना जानते हैं? याद कीजिए उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (Bulandshahr of Uttar Pradesh) में 1951 में जन्मे और बाराबस्ती से ताल्लुक रखने वाले परिवार के आरिफ मोहम्मद खान का नाम आपने यक़ीनन सुना है. जी हां, ये वही नाम है जिसे आपने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर बार बार सुना है और शाहबानो केस (Shah Bano Case) के सिलसिले में भी. लेकिन, इसके अलावा भी खान की पहचान और शख्सियत है. राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) से लोहा लेने वाले खान के बारे में तमाम ज़रूरी बातें जानें.

असल में, 1978 में पेशे से वकील अहमद खान ने अपनी पहली पत्नी शाह बानो (Shah Bano) को तीन बार तलाक कहकर तलाक दे दिया था. शाह बानो तलाक के बाद गुज़ारा भत्ता पाने के लिए अपने पति के खिलाफ अदालत पहुंच गई थीं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी शाह बानो के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन सालों चली इस कानूनी लड़ाई के बीच इस केस पर बहस के चलते मुस्लिम समाज (Muslim Society) तीन तलाक और मुस्लिम महिला के कोर्ट में जाने के खिलाफ आंदोलित हुआ था.

इसी दरमियान, राजीव गांधी सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे आरिफ मोहम्मद खान ने शाह बानो के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की ज़बरदस्त पैरवी की थी और 23 अगस्त 1985 को लोकसभा में दिया गया खान का भाषण मशहूर और यादगार हो गया था. आखिरकार, इस केस में हुआ ये कि मुस्लिम समाज के दबाव में आकर राजीव गांधी ने मुस्लिम पर्सनल लॉ संबंधी एक कानून संसद में पास करवा दिया, जिसने शाह बानो के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी पलट दिया. और तब, खान ने राजीव गांधी के इस स्टैंड के खिलाफ मुखर होते हुए न केवल मंत्री पद से इस्तीफा दिया बल्कि कांग्रेस से भी दामन छुड़ा लिया. आइए, प्रगतिशील स्टैंड के लिए मशहूर हुए खान के बारे में विस्तार से जानें.

ऐसी थी आरिफ खान की शुरुआती ज़िंदगी

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 1951 में जन्मे आरिफ मोहम्मद खान का परिवार बाराबस्ती से ताल्लुक रखता था. बुलंदशहर ज़िले में 12 गांवों को मिलाकर बने इस इलाके में शुरुआती जीवन बिताने के बाद खान ने दिल्ली के जामिया मिलिया स्कूल से पढ़ाई की. उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ के शिया कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की.

छात्र जीवन से ही खान राजनीति से जुड़ गए. भारतीय क्रांति दल नाम की स्थानीय पार्टी के टिकट पर पहली बार खान ने बुलंदशहर की सियाना सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे. फिर 26 साल की उम्र में 1977 में खान पहली बार विधायक चुने गए थे.

कांग्रेस से जुड़ना, दामन छुड़ाना और...

विधायक बनने के बाद खान ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली और 1980 में कानपुर से और 1984 में बहराइच से लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने. इसी दशक में शाह बानो केस चल रहा था और खान मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के ज़बरदस्त समर्थन में मुसलमानों की प्रगतिशीलता की वकालत कर रहे थे, लेकिन राजनीति और मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग इन विचारों के विरोध में दिख रहा था.

मुस्लिम नेताओं के दबाव में आकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बिल संसद में पास करवा दिया. 1986 में राजीव गांधी और कांग्रेस के इस स्टैंड से नाराज़ होकर खान ने पार्टी और अपना मंत्री पद छोड़ दिया. इसके बाद खान ने जनता दल का दामन थामा और 1989 में वो फिर सांसद चुने गए. जनता दल के शासनकाल में खान ने नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में काम किया, लेकिन बाद में उन्होंने जनता दल छोड़कर बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा.

बसपा के टिकट से 1998 में वो फिर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. फिर 2004 में, खान ने भारतीय जनता पार्टी जॉइन की. भाजपा के टिकट पर कैसरगंज सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. फिर 2007 में उन्होंने भाजपा को भी छोड़ दिया क्योंकि पार्टी में उन्हें अपेक्षित तवज्जो नहीं दी जा रही थी. बाद में, 2014 में बनी भाजपा की केंद्र सरकार के साथ उन्होंने बातचीत कर तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई.

स्लामी प्रगतिशीलता के रहे पैरोकार

खान हमेशा मुस्लिम समाज में सुधारों के समर्थक रहे और अपना स्टैंड वो राजीव गांधी के खिलाफ जाकर ज़ाहिर कर ही चुके थे. तीन तलाक प्रथा को लेकर खान ने हमेशा खुला विरोध ज़ाहिर किया था और कहा था कि इसे अपराध मानकर तीन साल जेल की सज़ा का प्रावधान होना चाहिए. इस्लामी सुधारों को लेकर वह कई नीति निर्धारण प्रक्रियाओं में शामिल रहे. कई थिंक टैंक्स के साथ जुड़े रहे और कई संस्थाओं के लिए व्याख्यान देते रहे.

मशहूर लेखक के तौर पर करते रहे रूढ़ियों का विरोध

साल 2010 में बेस्ट सेलिंग किताबों में खान की लिखी किताब शामिल रही जो कुरआन के पाठ और समसामयिक चुनौतियों के विषय पर आधारित थी. इसके बाद से ही खान लगातार इस्लाम और सूफीवाद से जुड़े विषयों पर कई तरह के लेख और कॉलम लिखते रहे हैं. अपने लेखन के ज़रिए भी खान भारत के मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खत्म किए जाने की पैरवी करते रहे हैं.

शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उन्होंने हमेशा कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को पूरा हक मिलना चाहिए. इसके अलावा खान अपनी पत्नी रेशमा आरिफ के साथ मिलकर शारीरिक रूप से निशक्तों के लिए एक संस्था 'समर्पण' का संचालन भी करते हैं.

हाल में इसलिए सुर्खियों में थे खान

गत जून माह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में कांग्रेस के नेता का नाम लिये बगैर 'मुसलमानों को गटर में रहने दो' बयान का ज़िक्र किया, तो ये सवाल उठ खड़ा हुआ कि आखिर वो कांग्रेस नेता कौन था, जिसने ऐसा कहा था. इस पूरे मामले पर सोशल मीडिया में चर्चाओं का दौर शुरू हुआ और ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें राजीव गांधी सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस नेता आरिफ मोहम्मद खान इस बयान को लेकर बात करते दिखाई दिए.


Tags
Special Coverage News

Special Coverage News

    Next Story