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निर्भया केस: दोषियों से फांसी का फंदा नजदीक होने बाद भी मौत से है बहुत दूर, जानिए ये है वजह?
नई दिल्ली। निर्भया रेप मामले में दोषियों को फांसी की सजा के ऐलान के बाद पूरे देश में यह संदेश गया था कि देर से सही लेकिन न्याय हुआ. लेकिन कई कारणों से फांसी की सजा पर अमल में देरी की आशंका बनी हुई है. निर्भया की मां आशा देवी दोषियों को फांसी से बचाने के प्रयास पर अपना गुस्सा भी निकाल चुकी हैं. आइए जानते हैं आखिर पूरे देश को झकझोरने वाली इस घटना में दोषियों की फांसी में क्यों देरी हो रही है।
इस मामले ने चार दोषी हैं. बताया जा रहा है कि जब तक सभी दोषी अपना पूरा कानूनी विकल्प इस्तेमाल ना कर लें तब तक फांसी नहीं होगी. यानी सभी की दया याचिका राष्ट्रपति से खारिज होने के बाद ही फांसी होगी। दया याचिका खारिज होने के बाद भी कई बार दोषी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं. जैसा कि याकूब मेमन के मामले में हुआ था. हालाकि उसकी परिस्थिति अलग थी और वैसा कुछ निर्भया मामले में नहीं दिख रहा है. फिलहाल सिर्फ मुकेश की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज की है. अन्य तीन दोषियों ने अभी दया याचिका दाखिल ही नहीं की है।
कानून के जानकार बताते हैं कि इस पर कोई कानून नहीं है. लेकिन इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1982 का एक फैसला है जो ये बताता है कि किसी भी मामले में अगर सभी दोषियों को एक ही जुर्म के लिए सजा दी गई है तो सभी को फांसी एक साथ होनी चाहिए. इस तरह के मामले में हरबंस सिंह बनाम उत्तर प्रदेश का फैसला बड़ा दिलचस्प है. तीन दोषियों को 1977 में चार लोगों की हत्या का दोषी पाया गया. ये मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सभी दोषियों ने अलग अलग समय पर अपील दाखिल की. एक दोषी की फांसी की सजा बरकरार रही और उसे फांसी दे दी गई।
दूसरा दोषी जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो अलग बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए उसके मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया. तीसरा दोषी जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसकी याचिका खारिज हो गई. बाद में राष्ट्रपति ने उसकी दया याचिका भी खारिज कर दी. ये दोषी फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने कहा कि एक ही जुर्म के लिए तीन लोगों को अलग अलग सजा कैसे हो सकती है. एक दोषी को फांसी और एक को उम्र कैद।
सुप्रीम कोर्ट ने माना की कहीं ना कहीं गलती हुई है. जिसको फांसी दे दी गई वह वापस नहीं आ सकता है. इसलिए फांसी के मामले में फूंक फूंक पर कदम रखने की जरूरत है. हरबंस सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया लेकिन राष्ट्रपति से आग्रह किया कि हरबंस की दया याचिका पर फिर से विचार किया जाए. इसलिए तब से एक ही जुर्म में सजा पाए सभी व्यक्तियों को तब तक फांसी नहीं दी जाती जब तक सभी का कानूनी विकल्प ख़त्म ना हो गया हो और सबको एक साथ फांसी दी जाती है।
जिस तरह से चारों गुनहगार पूरी होशियारी से अपनी-अपनी विकल्प का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे देखते हुए अगर फांसी की तारीख आगे भी दो और बार बदल जाए तो हैरान होने की जरूरत नहीं है. बहुत मुमकिन है कि फांसी की तारीख फरवरी के आखिर या फिर मार्च तक टल जाए. क्योंकि अभी भी मौत से बचने के लिए चारों के पास नौ विकल्प बचे हैं.
इन चारें के पास अभी भी कुल मिला कर नौ विकल्प बचे हैं. इनमें से किसके हिस्से कितनी विकल्प बचे हैं आइए सिलसिलेवार जानते हैं।
सबसे कम सिर्फ एक लाइफ लाइन मुकेश के पास बची हैं. मुकेश की पुनर्विचार याचिका, क्यूरेटिव पेटिशन और आखिर में दया याचिका तीनों खारिज हो चुकी हैं. मुकेश के पास जो इकलौती लाइफ लाइन बची है वो है राष्ट्रपति भवन से खारिज दया याचिका को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की. एक बार वो खारिज तो मुकेश का हिसाब-किताब फाइनल।
मुकेश के बाद दो विकल्प विनय के पास है. विनय की क्यूरेटिव पेटिशन खारिज हो चुकी है. पर दया याचिका पर फैसला अभी बाकी है. दया याचिका खारिज होने की सूरत में उस फैसले को ऊपरी अदालत में चैलेंज करने का राइट अभी उसके पास बचा है. पवन के पास अब भी तीन लाइफ लाइन बची हैं. एक क्यूरेटिव पेटिशन, दूसरी दया याचिका और तीसरी खारिज होने की सूरत में दया याचिका को अदालत में चुनौती देने का रास्ता।
तीन ही विकल्प अक्षय के पास भी है. क्यूरेटिव पेटिशन, दया याचिका और दया याचिका खारिज होने पर उसे अदालत में चुनौती देने का रास्ता. यानी अभी तक की कहानी ये है कि मुकेश क्यूरेटिव से लेकर दया याचिका तक सभी लाइफ लाइ इस्तेमाल कर चुका है. विनय की दया याचिका अभी बची हुई है. जबकि अक्षय और पवन दोनों के पास क्यूरेटिव पेटिशन और दया याचिका दोनों बची हुई हैं.नियमानुसार सभी को एक साथ होगी फांसी यही वजह है कि चारों बारी-बारी से एक-एक विकल्प का इस्तेमाल कर रहे हैं. एक की एक विकल्प जब खत्म हो जाती है तब दूसरा अपनी विकल्प इस्तेमाल करता है. दूसरे के खत्म होने पर तीसरा और फिर चौथा करता है।
सुप्रीम कोर्ट की 2014 की एक रूलिंग कहती है कि सारी याचिकाएं खारिज होने के बाद जब डेथ वॉरंट जारी हो जाए तब मरने वाले को 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए फांसी पर चढ़ाने के लिए. अब इस हिसाब से देखें और चारों के विकल्प इस्तेमाल करने के पैटर्न पर नजर डालें तो तीन दोषियों की दया याचिका अब भी बाकी है. अब अगर हरेक अलग-अलग राष्ट्रपति के पास दया याचिका के लिए जाता है तो याचिका खारिज होने के बावजूद हरेक को 14 दिन की मोहलत मिलेगी मरने के लिए यानी अकेले दया याचिका ही इन्हें अगले 42 दिनों तक ज़िंदा रह सकती है।
तो फिर एक फरवरी की उस तारीख का क्या होगा जो फांसी के लिए मुकर्र है? तो जवाब है कि मान कर चलिए एक फरवरी या उससे पहले पटियाला हाउस कोर्ट फरवरी के तीसरे हफ्ते की कोई नई तारीख देगा फांसी के लिए. यानी तब तीसरी बार डेथ वॉरंट जारी होगा. उसके बाद फरवरी के आखिर या फिर मार्च में एक और नई तारीख के साथ चौथी बार डेथ वॉरंट जारी होगा. बहुत मुमकिन है वो चौथा डेथ वॉरंट ही आखिरी साबित हो.
एक बात और अगर फरवरी में फांसी हुई तो सुबह छह बजे नहीं बल्कि फांसी सुबह आठ बजे ही दी जा सकती है. दिल्ली जेल मैनुअल 1988 में बाकायदा फांसी देने का वक्त भी लिखा हुआ है. जेल मैनुअल के मुताबिक नवंबर से फरवरी के बीच फांसी सुबह आठ बजे होगी. जुलाई से अक्तूबर के बीच सुबह सात बजे और मार्च से जून के बीच सुबह छह बजे ही फांसी हो सकती है।
बता दें कि चारों दोषियों को अब 1 फरवरी को सुबह 6 बजे फांसी दी जाएगी. पटियाला हाउस कोर्ट ने नई तारीख का ऐलान किया.