दिल्ली

किसान आंदोलन के बहाने (अंतिम दिन) जारी

Shiv Kumar Mishra
15 Dec 2021 5:55 PM IST
किसान आंदोलन के बहाने (अंतिम दिन) जारी
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अनिल चौधरी

देश की राजधानी में मांगों को लेकर डेरा जमाए किसान अंतत: 383 दिन के बाद विजय यात्रा के रूप में घरों को रवाना हुए। गाजीपुर बॉर्डर से राकेश टिकैत के विजय जुलूस का लंबा काफिला सुबह 10:30 बजे किसानों की राजधानी सिसौली के लिए निकला। दुनियाभर में सबसे लंबे समय तक चलने वाला यह आंदोलन इतिहास बना गया। इसका इतिहास लिखा भी जाएगा। अपने-अपने तरीके से सामाजिक विश्लेषक इसकी व्याख्या करेंगे। गांधी का अहिंसात्मकता का सिद्धांत ही इस आंदोलन की प्राणवायु बना। वहीं, किसानों की 40 जत्थेबंदियों का लोकतांत्रिक व्यवहार इसकी सफलता के मूल में रहा। बहरहाल, गाजीपुर बॉर्डर से किसान चले गए और तमाम निशानियां छोड़ गए।


पीछे छोड़ गए ऐसी खट्टी-मीठी यादें जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता। ऐसी यादें हमेशा दिलो-दिगाम में ताजा रहेंगी। संबंधों की तपिश हमेशा आंच देती रहेगी। कमी भी खलेगी, उन भंडारों और लंगरों की जिनसे मांगकर खाने का सलीका सीखा। सेवा भाव के मायने सीखे। इंसानियत और मानवीयता का पाठ सीखा। धर्म-जाति की सीमाओं से परे इंसान से इंसान बनने का तर्बुजा और सलाहियत सीखी। एक-दूसरे पर भरोसा करना सीखा और अभाव में भी जिंदगी को जीने की कला सीखी। बच्चों से भी बड़ों जैसा व्यवहार करने का हौंसला मिला और बुजुर्ग महिलाओं और किसानों से हौंसलों की उड़ान, संयम, धैर्य और आशीर्वाद जैसे शब्दों की अहमियत सीखी। गरीब-अमीर, अफसर-कर्मचारी, छोटे-बड़े के फर्क को भी पटते देखा। और सबसे महत्वपूर्ण ये कि टिकैत को टिके भी देखा।


आंदोलनजीवी पत्रकारों को पत्रकारीय धर्म निभाने के अलावा सुख-दुख बांटते भी इस आंदोलन में ही देखा। प्रतिद्वंदिता से परे पत्रकारिता को भी करीब से देखा। यहां पत्रकारिता के किताबी आयामों के इतर भी परिभाषाएं दिखीं। हालांकि पीत पत्रकारिता के चरम बिंदूओं की व्याख्या होते देखा भी सुना भी और पढ़ा भी। पीत के आलावा पत्रकारिता के छिछोरेपन को भी करीब से देखने का मौका मिला। मौका-परस्त पत्रकारिता के दर्शन भी हुए।


लेकिन आंदोलन के अंतिम दिन झोली भरने के बाद भी किसानों को और भरपूर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों को 15 दिसंबर यानि बुधवार को दिन एक अजीब खालीपन का अहसास करा गया। सभी के मन में हूक सी उठती दिखाई पड़ी। हालांकि ये 'समय' ही है जिसने आंदोलन ही नहीं पत्रकारिता की दिशा बदली और यही समय उस खालीपन को भरेगा, हालांकि उसमें वक्त लगेगा। अपने और अपनों के चेहरे देखते रहिए:::जारी

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