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शाहीन बाग से लेकर सिंधिया तक सबको बगावत करने का हक
राजेश बैरागी
शाहीन बाग से लेकर सिंधिया तक सबको बगावत करने का हक है। बगावत अपनों से की जाती है, अपनों के खिलाफ की जाती है। आमतौर पर बगावत सत्ता के खिलाफ की जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि सत्ता अपनी होती है अर्थात अंग्रेज भी अपने थे।
बगावत करने की अपराधिक स्थिति आज तक स्पष्ट नहीं हुई है। सत्ता का कथन है कि बगावत करने वाला अव्वल दर्जे का अपराधी होता है, उसपर राजद्रोह, देशद्रोह और आजकल तो राष्ट्रद्रोह का गंभीर आरोप लगाया जाने लगा है। इसके उलट बगावत करने वालों के बूते सत्ता हासिल करने वाले ऐसे लोगों को क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी,वीर शहीद न जाने कौन-कौन से विशेषणों से नवाजा करते हैं।
एक वृद्ध महिला हैं जो मां,सास, दादी सबकुछ हैं। उनका वक्त अब नहीं है इसलिए उनकी पूछ कम हो चुकी है। लिहाजा असंतोष का वक्त है। उनकी बेटी ने उन्हें बगावत की सलाह दी। उन्होंने बगावत की। नतीजा यह हुआ कि अब उनका हर कार्य सवालों के दायरे में हैं।
क्या उन्हें बगावत करनी चाहिए थी? बगावत के लिए किसी के उकसावे से बचना चाहिए। बगावत के विषय की स्पष्ट जानकारी और उस विषय से आपका संबंध भी स्थापित होना आवश्यक है। बगावत जीवंत समाज की पहचान है। यह चतुर और स्वार्थी लोगों के द्वारा खड़ा किया जाने वाला मजमा है।