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सोनिया के सबसे ख़ास नेता के बेटे ने किया गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह?
नई दिल्ली
दिल्ली चुनाव में बेहद शर्मनाक प्रदर्शन पर कांग्रेस में सिरफुटव्वल का सिलिसला थम नहीं रहा है और अब यह गांधी परिवार के खिलाफ विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र और दिल्ली कांग्रेस के बड़े नेता संदीप दीक्षित ने आलाकमान की तरफ से तय हो रही नीतियों पर खुलकर निशाना साधा है। वहीं, पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी संदीप के बयान का खुला समर्थन करते हुए माना कि देशभर के कांग्रेसी नेताओं में आलाकमान के खिलाफ नाराजगी है। वैसे भी मध्य प्रदेश, राजस्थान से लेकर पंजाब तक कांग्रेस नेताओं के मतभेद बता रहे हैं कि पार्टी नेताओं पर गांधी परिवार का प्रभाव कम होता जा रहा है।
संदीप दीक्षित का खुला वार
संदीप दीक्षित ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इतने महीनों के बाद भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नया अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर सके। इसका कारण यह है कि वह यह सोचकर डरते हैं कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। पूर्व सांसद दीक्षित ने कहा कि कांग्रेस के पास नेताओं की कमी नहीं है। अब भी कांग्रेस में कम से कम 6- 8 नेता हैं जो अध्यक्ष बनकर पार्टी का नेतृत्व कर सकते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि कभी-कभार आप निष्क्रियता चाहते हैं, क्योंकि आप नहीं चाहते हैं कि कुछ हो।
शशि भी मैदान में उतरे
खास बात यह है कि संदीप के इस बयान का पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी खुला समर्थन किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में आलाकमान के खिलाफ नाराजगी चरम पर है, जो दबी जुबान से निकलती भी है। थरूर ने ट्वीट कर कहा, 'संदीप दीक्षित ने जो कहा है वह देशभर में पार्टी के दर्जनों नेता निजी तौर पर कह रहे हैं। इनमें से कई नेता पार्टी में जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं।' उन्होंने कहा, 'मैं सीडब्ल्यूसी से फिर आग्रह करता हूं कि कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने और मतदाताओं को प्रेरित करने के लिए नेतृत्व का चुनाव कराएं।'
राजनीति के ढलान पर पहुंचे नेताओं पर निशाना
संदीप दीक्षित ने वरिष्ठ नेताओं को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि कुछ सालों में रिटायर होने वाले नेता भी पार्टी के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, 'मुझे वास्तव में अपने वरिष्ठ नेताओं से बहुत निराशा मिली है। उन्हें निश्चित तौर पर सामने आना चाहिए। उनमें से ज्यादातर जो राज्यसभा में हैं, जो पूर्व में मुख्यमंत्री रह चुके हैं और वो भी जो वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं, जो बहुत वरिष्ठ हैं। मुझे लगता है कि उन्हें सामने आकर पार्टी के लिए कड़े फैसले लेने का वक्त आ गया है।'
संदीप ने गिनाए नाम
उन्होंने आगे कहा, 'अमरिंदर सिंह, अशोक गहलोत, कमल नाथ... ये भी साथ क्यों नहीं आते, बाकी लोगों को भी साथ क्यों नहीं लाते? एके एंटनी, पी. चिदंबरम, सलमान खुर्शीद, अहमद पटेल... इन सभी ने कांग्रेस के लिए महान काम किया है। ये अब अपने राजनीतिक करियर के ढलान पर हैं। उनके पास शायद और चार से पांच साल हैं। मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि वे बौद्धिक योगदान दें... वे केंद्र में, राज्यों में या अन्य जगहों पर लीडरशिप की चयन प्रक्रिया में जा सकते हैं।'
गांधी परिवार के खिलाफ खुलकर होने लगीं बातें?
दरअसल, संदीप दीक्षित ने अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से जिस तरह की बातें कहीं, वो खुले तौर पर कहने की हिम्मत कोई भी कांग्रेस नेता शायद ही जुटा पाए। यह अलग बात है कि गांधी परिवार के खिलाफ नाराजगी चरम पर पहुंच चुकी है जो राष्ट्रीय से राज्य स्तरीय कांग्रेसी नेताओं से दबी जुबान में खूब सुनी जा रही है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर भी इस स्थिति से बखूबी अवगत हैं और वह भी खुलकर सामने आ गए हैं।
राज्यों में भी बगावत के कई सुर
गौरतलब है कि कांग्रेस पार्टी में दिल्ली चुनाव के बाद ही बगावत के सुर शुरू हो गए। राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक आलाकमान के खिलाफ विरोध की चिनगारी आग का रूप लेने लगी है। मध्य प्रदेश में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ सड़क पर उतरने की धमकी तक दे चुके हैं। वहीं, राजस्थान में सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच का बिगड़ा समीकरण भी किसी से छिपा नहीं है। उधर, पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच कड़वाहट इतनी बढ़ गई कि सिद्धू को मंत्री पद छोड़ना पड़ गया।
राष्ट्रीय नेतृत्व में भी मतभेद
इधर, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की बात करें तो कई मुद्दों पर नेताओं के बीच मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर भी यह मतभेद दिखे। एक तरफ राहुल गांधी समेत तमाम टॉप लीडरशिप सीएए के विरोध में आग उगल रहे हैं और इसके खिलाफ राज्यों की विधानसभाओं में पारित प्रस्तावों का समर्थन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल और शशि थरूर कह चुके हैं कि राज्यों के लिए यह कानून लागू करने की मजबूरी है।