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सुप्रीम कोर्ट में 'चौकीदार चोर है', सबरीमाला और रफ़ाल- तीन बड़े फ़ैसलों का दिन है आज!

Special Coverage News
14 Nov 2019 4:25 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट में चौकीदार चोर है, सबरीमाला और रफ़ाल- तीन बड़े फ़ैसलों का दिन है आज!
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बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक बेंच ने फ़ैसला दिया कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई (सूचना के अधिकार) के दायरे में आता है. इससे पहले शनिवार को अयोध्या मामले में विवादित भूमि पर हिंदुओं का हक़ माना गया. अब आज यानी गुरुवार को तीन और अहम फ़ैसले आने वाले हैं.

ये तीन मामले हैं- रफ़ाल विमान सौदा, सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश और राहुल गांधी पर अवमानना का मामला.

सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और 18 नवंबर को जस्टिस बोबडे उनकी जगह लेंगे. रिटायर होने से पहले, जैसा कि उम्मीद जताई जा रही थी, गोगोई लगातार फ़ैसले दे रहे हैं और अब ये तीन मामले उन्हीं फ़ैसलों की कड़ी में हैं.

जिस फ़ैसले का सबसे ज़्यादा बेसब्री से इंतज़ार किया जा रहा था, वो देश के उत्तर में स्थित उत्तर प्रदेश के अयोध्या का बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद. देश के दो धर्म समुदायों के बीच वर्षों से चल रहे ज़मीन के मालिकाना हक़ को लेकर झगड़े पर शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुना दिया जो हिंदुओं के पक्ष में गया. अब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में देश के दक्षिणी राज्य केरल के सबरीमला मंदिर पर आने वाला फ़ैसला वैसा ही मामला है जिस पर समूचे देश की नज़रें टिकी हैं.

रफ़ाल डील

सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई गोगोई की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच जिस दूसरे सबसे अहम मामले पर फ़ैसला सुनाने वाली है वो है रफ़ाल सौदे का मामला. तीन जजों की इस बेंच में चीफ़ जस्टिस गोगोई के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ़ हैं.

रफ़ाल डील मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर, 2018 को दिए अपने फ़ैसले में भारत की केंद्र सरकार को क्लीन चिट दे दी थी. हालांकि इस फ़ैसले की समीक्षा के लिए अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं और 10 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.

फ़्रांस से 36 रफ़ाल फ़ाइटर जेट के भारत के सौदे को चुनौती देने वाली जिन याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, उनमें पूर्व मंत्री अरुण शौरी, यशवंत सिन्हा, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह की याचिकाएं शामिल थीं. सभी याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से उसके पिछले साल के फ़ैसले की समीक्षा करने की अपील की थी.

राहुल गांधी के बयान 'चौकीदार चोर है' पर भी फ़ैसला

गुरुवार को ही सुप्रीम कोर्ट कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ख़िलाफ़ दाखिल याचिका पर अपना फ़ैसला भी सुनाएगा. 2019 के आम चुनाव के प्रचार के दौरान तब कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'चौकीदार चोर है' कहकर संबोधित किया था. उन्होंने ये आरोप रफ़ाल डील को लेकर लगाया था. इस मामले को लेकर बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की जिसमें राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने की मांग की गई. याचिका में कहा गया था कि राहुल गांधी अपनी व्यक्तिगत टिप्पणियों में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला दे रहे हैं.

इसमें यह भी कहा गया कि एक राजनीतिक पार्टी के नेता को प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ इस तरह के शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. उसके बाद पूरे देश में इसे लेकर एक आंदोलन शुरू हो गया. बीजेपी के लगभग सभी नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपने नाम के आगे 'मैं भी चौकीदार' लिखना शुरू कर दिया.

सबरीमला मंदिर

सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर, 2018 को अपने फ़ैसले में सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश का हक़ दिया था. लेकिन इस फ़ैसले की समीक्षा को लेकर अदालत में 60 पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं.

सुप्रीम कोर्ट केरल स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भी अपना आख़िरी फ़ैसला सुनाएगा.

इन सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली बेंच ने 6 फ़रवरी, 2019 को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में गठित जस्टिस आर. फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने 28 सितंबर 2018 को सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की इजाज़त दे दी थी.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से नाख़ुश कई संस्थाओं और समूहों ने इसकी समीक्षा के लिए याचिकाएं दायर कीं. फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी (NSS) और मंदिर के तंत्री (पुजारी) भी शामिल हैं.

सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भारत में काफ़ी लंबी-चौड़ी बहस हुई है. मासिक धर्म से गुज़रने वाली महिलाओं को मंदिर में न जाने दिए जाने को महिलावादी और प्रगतिशील संगठनों ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है.

वहीं, कई धार्मिक संगठनों की दलील है कि चूंकि अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं, इसलिए 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मंदिर में जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

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