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एशिया में उमस भरी ताप लहर की सम्भावना में हुई 30 गुना की वृद्धि
इंसान की गतिविधियों की वजह से पैदा हुए जलवायु परिवर्तन ने बांग्लादेश, भारत, लाओस और थाईलैंड में रिकॉर्ड तोड़ उमस भरी ताप लहर (हीटवेव) की संभावनाओं को 30 गुना तक बढ़ा दिया है। वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन ग्रुप से जुड़े हुए प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए रैपिड एट्रीब्यूशन एनालिसिस में यह बात सामने आई है। इस अध्ययन में यह भी निष्कर्ष निकाला गया है कि हीटवेव के लिहाज से दुनिया के सबसे प्रमुख इलाकों में आने वाले इस क्षेत्र की उच्च जोखिमशीलता की वजह से दुष्प्रभाव कई गुना बढ़ गए हैं।
इस रिपोर्ट पर चर्चा करने के लिये बुधवार को वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें ग्रंथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरमेंट में जलवायु विज्ञान की सीनियर लेक्चरर फ्रेडरिक ओटो, कोपनहेगन यूनिवर्सिटी में कोपनहेगन सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च के निदेशक एमैनुअल राजू, रिपोर्ट के लेखक छाया वद्धनाफुति, मरियम जकरिया और अंशु ओगरा ने रिपोर्ट के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।
ज़मीनी हक़ीक़त
अप्रैल में दक्षिणी और दक्षिण-पूर्वी एशियाई हिस्सों में प्रचंड ताप लहर महसूस की गई। इस दौरान लाओस में अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस और थाईलैंड में 45 डिग्री सेल्सियस के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया। गर्मी की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, चिटकने की वजह से सड़कों को नुकसान हुआ, जगह-जगह आग लग गई जिसके परिणाम स्वरूप स्कूलों को बंद करना पड़ा। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई जिनका कोई हिसाब नहीं है।
पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजह से हीटवेव की घटनाएं बहुत आम हो गई हैं। इतना ही नहीं, उनकी अवधि बढ़ गई है और वह ज्यादा गर्म भी हो गई है। एशियाई हीटवेव पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की मात्रा का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों ने मौसम संबंधी डाटा और कंप्यूटर मॉडल सिमुलेशन का विश्लेषण किया ताकि आज के मौसम और 19वीं सदी के अंत से लेकर ग्लोबल वार्मिंग में 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने तक की जलवायु की तुलना की जा सके। इसके लिए सहयोगियों द्वारा समीक्षा (पियर रिव्यू) की विधि को अपनाया गया।
कैसे हुआ अध्ययन
इस अध्ययन में दो क्षेत्रों में अप्रैल महीने के दौरान लगातार के 4 दिनों में हीट इंडेक्स के अधिकतम तापमान और अधिकतम मूल्य के औसत का विश्लेषण किया गया। इन क्षेत्रों में से एक दक्षिणी तथा पूर्वी भारत और बांग्लादेश का है और दूसरा थाईलैंड और लाओस के संपूर्ण क्षेत्र का है। हीट इंडेक्स एक ऐसा पैमाना है जिसमें तापमान और नमी को एक साथ जोड़ा जाता है और इसके जरिए मानव शरीर पर हीटवेव के पड़ने वाले प्रभावों को और सटीक ढंग से जाना जाता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों ही क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन की वजह से नमी भरी हीटवेव की आशंका कम से कम 30 गुना ज्यादा हो गई है और जलवायु परिवर्तन नहीं होने की स्थिति के मुकाबले तापमान में कम से कम 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। जब तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को पूरी तरह नहीं रोका जाएगा तब तक वैश्विक तापमान में वृद्धि जारी रहेगी और हीटवेव जैसी मौसमी घटनाएं और अधिक तीव्र हो जाएंगी। साथ ही वे जल्दी-जल्दी घटित होंगी।
बात भारत की
बांग्लादेश और भारत में हाल ही में उत्पन्न हुई नमी भरी हीटवेव की घटनाएं एक सदी में औसतन एक से कम ही बार होती रही हैं लेकिन अब हर 5 साल में एक बार ऐसी स्थिति उत्पन्न होने की संभावना पैदा हो चुकी है और अगर वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी का स्तर 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हुआ तो नमी भरी हीटवेव हर दो साल में कम से कम एक बार उत्पन्न होगी। जहां तक ग्लोबल वार्मिंग में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की बात है तो अगर सरकारी तत्वों के उत्सर्जन में तेजी से कटौती नहीं की गई तो वैश्विक तापमान में वृद्धि का स्तर 30 साल के अंदर 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा।
वैज्ञानिकों ने पाया कि लाओस और थाईलैंड में हाल की रिकॉर्ड तोड़ नम हीटवेव की घटना जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बिना होना लगभग नामुमकिन था। यह अब भी बहुत दुर्लभ घटना है और इंसान की गतिविधियों के कारण उत्पन्न जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बावजूद 200 साल में कहीं एक बार ऐसा होने की अपेक्षा की जाती रही है लेकिन अगर वैश्विक तापमान में वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस के स्तर तक पहुंची तो ऐसी घटना हर 20 साल में एक बार होना आम बात हो जाएगी।
जहां दक्षिण और दक्षिणपूर्वी एशिया में अधिक गर्मी पड़ना एक सामान्य सी बात है, वहीं इसी बार की तरह हीटवेव का जल्द प्रभावी हो जाना खास तौर पर बहुत विनाशकारी होगा। ऐसे लोग जो सबसे ज्यादा समय तक सूरज की तपिश के संपर्क में रहते हैं और अन्य जोखिमशील समुदाय लगातार सबसे बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ताप लहर से बचने के उपायों को असमानता और मौजूदा जोखिमशीलता के तकाजों के लिहाज से सुधारना जरूरी है। साथ ही साथ हीट एक्शन प्लान को और अधिक समावेशी तथा विस्तृत बनाने की जरूरत है ताकि मूलभूत सेवाएं जैसे कि पानी, बिजली और स्वास्थ्य तक पहुंच सुनिश्चित हो सके।
विशेषज्ञों की राय
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुपति के चंद्रशेखर बहिनीपति ने कहा, "हालांकि हमने खासकर भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड जैसे देशों में ताप लहरों को सबसे घातक आपदाओं में से एक के तौर पर पहचाना है, मगर इस बात को लेकर जानकारी की कमी है कि कौन समुदाय जोखिमशील है। इसके अलावा हानि और क्षति का आकलन, घरेलू स्तर पर निपटने के तंत्र और सबसे प्रभावशाली हीट एक्शन प्लान के बारे में भी जानकारी की कमी है। सिर्फ जनहानि को छोड़कर अन्य आर्थिक, गैर आर्थिक नुकसान तथा क्षति के संकेतकों का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है। इससे जोखिम की सीमा का आकलन करने, कौन जोखिम से घिरा है और किसी अनुकूल योजना को किस तरह से संचालित किया जाए, इसका आकलन करने में भी परेशानी पैदा होती है।
ग्रंथम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरमेंट में जलवायु विज्ञान की सीनियर लेक्चरर फ्रेडरिक ओटो ने कहा, "हम यह बार-बार देख रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ताप लहरों की तीव्रता और आवृत्ति में नाटकीय रूप से बढ़ोत्तरी हो रही है। यह ताप लहरें सबसे घातक मौसमी घटनाओं में से हैं। इसके बावजूद हीट एक्शन प्लान को पूरी दुनिया में बहुत धीमी रफ्तार से पेश किया जा रहा है। अब हर जगह पूर्ण प्राथमिकता वाली अनुकूलन कार्य योजना लागू करने की जरूरत है। खासकर उन स्थानों पर, जहां अधिक नमी की वजह से हीटवेव के प्रभाव में वृद्धि होती है।"
कोपनहेगन यूनिवर्सिटी में कोपनहेगन सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च के निदेशक एमैनुअल राजू ने कहा, "यह एक और आपदा है जो जोखिमशीलता को कम करने और अनुकूलन की सीमितताओं पर और गहराई से सोचने की जरूरत पर जोर देती है। जैसा कि अक्सर होता है कि इन मौसमी घटनाओं की वजह से हाशिए पर खड़े लोग सबसे बुरी तरह प्रभावित होता है। वे अब भी कोविड-19 महामारी और पूर्व में आई हीटवेव और चक्रवात की मार से उबर रहे हैं। हालात वजह से वे एक जटिल दुष्चक्र में फंस गए हैं। यह अब एक बुनियादी जरूरत बन गई है कि दिखने वाले और न दिखने वाले नुकसान को टालने के लिए न्यूनीकरण और अनुकूलन की रणनीतियों को लागू किया जाए।
रिपोर्ट के लेखक छाया वद्धनाफुति ने कहा, "हमारे अध्ययन में पाया गया है कि चारों देशों भारत, बांग्लादेश, लाओस और थाईलैंड में हीट इंडेक्स लेवल खतरनाक की श्रेणी में पाया गया है और यह 41 से 54 डिग्री सेल्सियस तक है। खासतौर पर नगरीय इलाकों में तापमान 54 डिग्री तक पहुंच सकता है जो अत्यधिक खतरनाक है। हीटवेव के संपूर्ण प्रभावों को जान पाना मुश्किल है। इसमें कुछ वक्त लग सकता है। इन सभी चार देशों में मौसम से संबंधित पूर्व चेतावनी की बेहतर व्यवस्था है। खास तौर पर भारत और बांग्लादेश में हीट एक्शन प्लान बनाए गए हैं और उन पर काम भी किया जा रहा है, लेकिन इन पर अभी और सार्थक रूप से काम करने की जरूरत है।
रिपोर्ट की एक अन्य लेखक मरियम जकारिया ने रिपोर्ट के बारे में बताते हुए कहा कि इस अध्ययन के लिए हीट इंडेक्स को एक वेरिएबल के तौर पर इस्तेमाल किया गया है। यह इस तथ्य के मद्देनजर किया गया की नमी और तापमान का मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। अनुमानों के आधार पर हमने पाया कि इसकी इंडेक्स वैल्यू दोनों ही क्षेत्रों में 41 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा है जो खतरनाक की श्रेणी में आता है। हमने यह पाया है कि जलवायु के मौजूदा हालात में यह अप्रत्याशित नहीं है। आकलन और मॉडल्स को एक साथ जोड़ें तो नमी भरी हीटवेव की घटनाएं बढ़ेंगी।
रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम की सदस्य अंशु ओगरा ने कहा, "जोखिमशीलता हीटवेव के लिए खुद को तैयार करने के लिहाज से एक महत्वपूर्ण घटक है। जोखिम शीलता विभिन्न देशों और यहां तक कि क्षेत्रों में भी अलग-अलग है। इसके लिए सामाजिक और आर्थिक कारक, पेशे, लिंग और शारीरिक क्षमता जैसे विभिन्न कारक जिम्मेदार हैं। हीट एक्शन प्लान में तैयारी के लिए जोखिमशीलता का आकलन एक निर्णायक पहलू होता है। इस वक्त भारत में राज्यों और जी लो के स्तर पर भी हीट एक्शन प्लान है, लेकिन रिपोर्ट में हमें थाईलैंड और लाओस में इस तरह की पहल ढूंढना मुश्किल हो गया। थाईलैंड जहां हीटवेव के बारे में बात करता है, वहीं लाओस में इस पर बात भी नहीं हो रही है।
अध्ययन के लेखक
यह अध्ययन वर्ल्ड वेदर एट्रीब्यूशन इनीशिएटिव के हिस्से के तहत 22 शोधकर्ताओं ने किया है। ये वैज्ञानिक भारत, थाईलैंड, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, केन्या, नीदरलैंड्स, ब्रिटेन और अमेरिका के विभिन्न विश्वविद्यालयों और मौसम विज्ञान संबंधी एजेंसियों से जुड़े हैं। इनके नाम हैं:
1. मरियम जकारिया, ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूके
2. रॉबर्ट वाउटार्ड, इंस्टीट्यूट पियरे-साइमन लाप्लास, सीएनआरएस, सोरबोन यूनिवर्सिटी, पेरिस, फ्रांस
3. चैत्र एस टी, वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारत
4. जॉयस जे किमुताई, ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूके
5. अरुलालन टी, भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, भारत सरकार, वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारत
6. कृष्ण अच्युतराव, वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारत
7. क्लेयर बार्न्स, ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूके
8. रूप सिंह, रेड क्रॉस रेड क्रीसेंट क्लाइमेट सेंटर, द हेग, नीदरलैंड
9. माजा वाह्लबर्ग, रेड क्रॉस रेड क्रीसेंट क्लाइमेट सेंटर, द हेग, नीदरलैंड
10. जूली अरगिही, रेड क्रॉस रेड क्रीसेंट क्लाइमेट सेंटर, द हेग, नीदरलैंड्स; वैश्विक आपदा तैयारी केंद्र, वाशिंगटन डीसी, यूएसए; ट्वेंटी विश्वविद्यालय, नीदरलैंड
11. इमैनुएल राजू, सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग, वैश्विक स्वास्थ्य अनुभाग और आपदा के लिए कोपेनहेगन केंद्र
12. उपासना शर्मा, स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारत
13. अंशु ओगरा, स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली, भारत
14. छाया वद्धनाफुति, भूगोल विभाग, चियांग माई विश्वविद्यालय, थाईलैंड
15. चंद्रशेखर बाहिनीपति, मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुपति, भारत
16. पेट्रा चाकर्ट, स्कूल ऑफ मीडिया, क्रिएटिव आर्ट्स एंड सोशल इंक्वायरी, कर्टिन यूनिवर्सिटी, पर्थ, ऑस्ट्रेलिया
17. राम चंद्रशेखरन, स्कूल ऑफ मीडिया, क्रिएटिव आर्ट्स एंड सोशल इंक्वायरी, कर्टिन यूनिवर्सिटी, पर्थ, ऑस्ट्रेलिया
18. कैरोलिना परेरा मार्गिडन, रेड क्रॉस रेड क्रीसेंट क्लाइमेट सेंटर, द हेग, नीदरलैंड्स; फैकल्टी ऑफ जियो-इन्फॉर्मेशन साइंस एंड अर्थ ऑब्जर्वेशन (आईटीसी), यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटी, एनस्किडे, नीदरलैंड्स
19. अर्पिता मंडल, सिविल इंजीनियरिंग विभाग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे, भारत; जलवायु अध्ययन में आईडीपी, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे, भारत
20. क्लेमेंस श्विंगशक्ल, भूगोल विभाग, लुडविग-मैक्सिमिलियंस-यूनिवर्सिटैट मुन्चेन, म्यूनिख, जर्मनी
21. सजोकजे फिलिप, रॉयल नीदरलैंड मौसम विज्ञान संस्थान (केएनएमआई), डी बिल्ट, नीदरलैंड
22. फ्रेडरिक ई एल ओटो, ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूके
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो चरम मौसम की घटनाओं, जैसे कि तूफान, अत्यधिक वर्षा, गर्मी की लहरें, ठंड के दौर और सूखे पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव का विश्लेषण और संचार करता है।
डब्ल्यूडब्ल्यूए के पिछले अध्ययनों में वह शोध भी शामिल है जिसमें पाया गया कि जलवायु परिवर्तन ने इस साल नाइजीरिया और पश्चिम अफ्रीका के अन्य हिस्सों में बाढ़ को विकराल रूप दे दिया। डब्ल्यूडब्ल्यूए के अध्ययनों से यह भी पता चला है कि उत्तरी गोलार्ध में इस वर्ष जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे की संभावना अधिक रही और इसने बारिश में वृद्धि की जिससे पाकिस्तान की विनाशकारी बाढ़ आई, लेकिन यह मेडागास्कर के 2021 के खाद्य संकट का मुख्य कारण नहीं था।