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यूपी में वैश्य समुदाय फिर बीजेपी के लिए साबित होगा संकटमोचक
मनीष कुमार गुप्ता
यूपी विधानसभा चुनाव में वैश्य समुदाय महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। संख्या बल में यह समुदाय उत्तर प्रदेश में 2 से 3 प्रतिशत है मगर धनबल में वैश्य समुदाय किसी भी अन्य समुदाय से अधिक ताकतवर है। यही वजह है कि कोई भी पार्टी किसी भी प्रतिकूल स्थिति में वैश्य समुदाय को नाराज़ नहीं करना चाहती है। मगर, बीजेपी के लिए वैश्य समुदाय खास है और वैश्य समुदाय के लिए भी बीजेपी खास।
बीजेपी को कारोबारियों की पार्टी कहा जाता रहा है। इसकी वजह यह है कि पार्टी ने हमेशा कारोबार को बढ़ावा देने वाले कदम उठाए हैं। जवाब में वैश्य समुदाय ने भी बीजेपी को दिलखोलकर चंदे दिए हैं। जाहिर है संबंध दोनों ओर से एक-दूसरे के लिए है और परस्पर सम्मान भी दिखता है। वैश्य समुदाय के लोगों को न सिर्फ सरकार में प्रतिनिधित्व हासिल है बल्कि संगठन के भीतर भी सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिया गया है।
बीजेपी सरकार और संगठन में वैश्य की पर्याप्त नुमाइंदगी
यूपी विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने जिन 41 पदाधिकारियों की सूची जारी की है उनमें 5 वैश्य हैं। मतलब यह कि संगठन के पदाधिकारियों में 12.2%वैश्य समुदाय की हिस्सेदारी है। यह हिस्सेदारी यूपी में वैश्य आबादी का करीब 6 गुणा ज्यादा है।
योगी आदित्यनाथ के मंत्रिपरिषद में 60 मंत्री हैं। इनमें वैश्य मंत्रियों की संख्या 5 है। मतलब यह कि वैश्य समुदाय को आबादी से करीब चार गुणा ज्यादा प्रतिनिधित्व मंत्रिपरिषद में हासिल है। ये आंकड़े बताते हैं कि बीजेपी की प्राथमिकता में वैश्य समुदाय शामिल रही है। लेकिन क्या इन आंकडों से यह मतलब निकाल लेना क्या जल्दबाजी नहीं होगी? क्या वाकई वैश्य समुदाय बीजेपी से खुश है? या फिर बीजेपी वैश्य समुदाय पर भरोसा कर आगे चल सकती है?
मनीष हत्याकांड के बाद नाराज़ वैश्यों को मनाने में कामयाब रही बीजेपी
गोरखपुर में हुए बहुचर्चित मनीष गुप्ता हत्याकांड को याद करते हैं। गोरखपुर के होटल में कारोबारी मनीष की पुलिसवालों ने हत्या कर दी थी। गुस्से में वैश्य समुदाय सड़क पर उतर आया। बीजेपी ने भी इस समुदाय को खुश करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी। यूपी विधानसभा में मनीष गुप्ता परिवार को खुश करने के प्रयत्न किए गये। अब स्थिति यह है कि दिवंगत गुप्ता परिवार की ओर से शिकायती बयान बंद हो चुका है।
वैश्य समुदाय के लोगों का भरोसा जीतने के लिए बीजेपी ने महत्वपूर्ण राजनीतिक फैसले भी लिए हैं। नवंबर महीने में कद्दावर वैश्य नेता नरेश अग्रवाल का चेहरा सामने कर वैश्य सम्मेलन का आयोजन कराया। इसी वैश्य सम्मेलन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर जहां समाजवादी पार्टी पर हमला बोला, वहीं संदेश दिया कि उनकी पार्टी हमेशा से वैश्य समाज के नेता सरदार पटेल का झंडाबरदार रही है।
नितिन अग्रवाल को बीजेपी ने सपा से ऐसे छीना
योगी आदित्यन नाथ ने नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को विधानसभा उपाध्यक्ष की कुर्सी सौंपते हुए भी दोहरी चाल चली। तकनीकी रूप से समाजवादी पार्टी के विधायक रहे नितिन अग्रवाल को विधानसभा में उपाध्यक्ष बनाकर योगी ने घोषित तौर पर विपक्ष को यह पद भी सौंप दिया और इस कदम से नितिन अग्रवाल को समाजवादी पार्टी से छीन भी लिया। इस तरह एक वैश्य नेता को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर सफल वैश्य सम्मेलन कराने का इनाम भी नरेश अग्रवाल को दे दिया गया।
चूकि राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी वैश्य नेताओं की जोड़ी है इसलिए भी वैश्य समुदाय को बीजेपी से जोड़ने रखना मुश्किल काम नहीं है, मगर यूपी में वैश्य समुदाय को पार्टी से जोड़े रखने के लिए पार्टी को कवायद करनी पड़ी है। वैश्य सम्मेलन में बीजेपी से यह उम्मीद की गयी है कि बीजेपी और बीजेपी सरकार में वैश्य समुदाय की उपस्थिति बढ़ेगी। जिस तरह से वैश्य लगातार बीजेपी से जुड़े रहे हैं और तन-मन से पार्टी को सेवा देते रहे हैं उसे देखते हुए यह अपेक्षा बड़ी नहीं है।
बीजेपी भी वैश्य समुदाय के महत्व को समझती है और इसलिए वह इस समुदाय को खुद से दूर होने नहीं देगी। वैश्य न सिर्फ खुद बीजेपी से जुड़े हैं बल्कि वह अन्य समुदायों को भी पार्टी से जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसे में फिलहाल दोनों एक-दूसरे के लिए महत्वपूर्ण हैं और यूपी चुनाव में बीजेपी इस समुदाय को किसी भी सूरत में नाराज नहीं देखना चाहती। इसके लिए चाहे जो कदम पार्टी को उठाने पड़े, पार्टी तैयार नज़र आती है। आखिर बीजेपी के लिए संकटमोचक समाज जो है वैश्य समुदाय।
(लेखक मनीष गुप्ता कानून और आर्थिक मामलों के जानकार होने के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषक हैं जो विभिन्न टीवी चैनलों पर होने वाले डिबेट का हिस्सा रहते हैं)