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दिल्ली में बसें और मेट्रो खुलीं तो क्या होंगी चुनौतियां?
लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि लॉकडाउन के अगले चरण का रंग रूप बिल्कुल अलग होगा. इसके लिए पीएम मोदी ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लॉकडाउन को आगे बढ़ाने के स्वरूप पर चर्चा भी की थी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी पीएम मोदी को लॉकडाउन में ढील देने संबंधी सुझाव भेजे हैं. मुख्यमंत्री ने दिल्ली के लोगों से भी इस लेकर सुझाव मंगाए थे. दिल्ली ने केंद्र सरकार को सार्वजनिक परिवहन चलाने का सुझाव दिया है. इसमें ऑटो रिक्शा, कैब, बस और दिल्ली मेट्रो के संचालन का ज़िक्र किया गया है. दिल्ली सरकार का कहना है कि ज़ोन सिस्टम में बदलाव किया जाए ताकि पूरी दिल्ली रेड ज़ोन के अंदर ना आए.
सार्वजनिक परिवहन की बात करें तो राज्य सरकार का सुझाव है-
- एक सवारी के साथ ऑटो-रिक्शा चलाया जा सकता है.
- ओला और उबर में ड्राइवर के अलावा दो सवारियां हों.
- दफ़्तर के समय पर मेट्रो रेल शुरू की जाए. इसमें लोग खड़े होकर ना जाएं और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो.
- बसों के मामले में एक बस में 20 सवारियां चढ़ाने का सुझाव दिया गया है.
कई हैं चुनौतियां
दिल्ली सरकार का ये भी प्रस्ताव है कि निजी संस्थाएं 70 प्रतिशत कर्मचारियों को दफ़्तर में बुला सकती हैं.
हालांकि, इसमें घर से काम करने की सुविधा बनी रहेगी. साथ ही दुकानें खोलने के लिए ऑड-ईवन का तरीका अपनाने का सुझाव दिया गया है.
इन सुझावों में दो तरह की बातें नज़र आ रही हैं.
एक तरफ़ लोगों को बाहर निकलने के लिए ढील देने की बात है और दूसरी तरफ सार्वजनिक वाहनों में सुरक्षा व सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखने पर ज़ोर.
लेकिन, सवाल ये उठता है कि सीमित संसाधनों के बीच ज़्यादा लोगों के बाहर निकलने से क्या सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना मुश्किल नहीं होगा?
अगर शराब की दुकानों पर लगी भीड़ की तरह पहली बार परिवहन खुलने पर भी भीड़ लगी तो क्या सिस्टम इस चुनौती से निपट पाएगा?
सिस्टम कितना मजबूत
इसे मसले पर ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट श्री प्रकाश कहते हैं कि सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बसों को संभालना होगी. श्री प्रकाश कहते हैं, "मेट्रो और बसों में तो कहा गया है कि जितनी क्षमता है उससे कम लोग ले जाएंगे. लेकिन, उसे कैसे नियंत्रित करना है ये बड़ी चुनौती होगी. बसों और मेट्रो में भीड़ बहुत ज़्यादा होती है. मेट्रो में तो फिर भी पहले से एक सिस्टम है."
"मेट्रो में चेंकिंग का काम पहले से होता है और बड़े स्तर पर साफ-सफाई होती है. वो लोगों को प्लेटफॉर्म पर जाने से रोक सकते हैं, मेट्रो पर चढ़ने से रोक सकते हैं. कम्यूनिकेशन सिस्टम बहुत अच्छा है. लेकिन, बस स्टैंड पर अब जाकर चैकिंग का सिस्टम शुरू करना होगा. इसमें बहुत संसाधन और बड़े स्तर पर कार्रवाई की ज़रूरत होगी."
तैयारियों पर क्या कहते हैं परिवहन मंत्री
परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने बीबीसी को बताया, "हमने आज सभी पक्षों से बातचीत की है. बसों में 20 से ज़्यादा लोगों को सवार होने की अनुमति नहीं होगी. बस स्टैंड पर सोशल डिस्टेंसिंग रखी जाएगी और थर्मल स्कैनिंग की सुविधा होगी."
"यहां पर होम गार्ड और मार्शल के ज़रिए इन नियमों का पालन कराया जाएगा. बिना मास्क के लोगों को चढ़ने की इजाजत नहीं होगी. बसों के एक चक्कर के बाद टर्मिनल पर उन्हें सेनिटाइज़ किया जाएगा." उन्होंने न्यूज़ एजेंसी एएनआई को दिल्ली मेट्रो के बारे में बताते हुए कहा था कि दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएमआरसी) मेट्रो चलाने के लिए तैयार है लेकिन फैसला केंद्र को करना है.
उन्होंने बताया कि हर स्टेशन पर लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी, सेनिटाइजेशन का काम लगातार होगा और करेंसी के प्रयोग को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा. सिर्फ मुख्य स्टेशन ही खुलेंगे ताकि उपलब्ध लोगों का बेहतर इस्तेमाल कर यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
डीएमआरसी ने भी एक ट्वीट करते हुए इस संबंध में जानकारी दी है.
ट्वीट में कहा गया है, "इस महामारी को देखते हुए डीएमआरसी सफाई और रखरखाव का काम विस्तार से कर रही है. यह काम बहुत व्यापक है क्योंकि इसे 224 स्टेशंस, 2200 कोच, 1100 एस्केलेटर और 1000 लिफ्ट्स तक किया जाना है. सिग्नलिंग, इलेक्ट्रिकल, रोलिंग स्टॉक, ट्रैक आदि सहित मेट्रो की सभी प्रणालियों को सेवाएं शुरू होने से पहले विस्तार से जांचना होगा."
कम रखनी होगी संख्या
दिल्ली सरकार की एक बड़ी चुनौती है लोगों की संख्या. अगर बड़ी संख्या में लोग बाहर निकले तो उनसे नियमों का पालन कराना मुश्किल होगा. जैसा कि मज़दूरों के मामले में देखा गया था. दिल्ली की जनसंख्या की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में एक कोरड़ 67 लाख के करीब लोग रहते हैं.
यहां मुख्य और सीमांत मजदूरों की संख्या लगभग पांच लाख पांच हज़ार है. मुख्य मजदूर वो होते हैं जो साल भर में कम से कम 183 घंटे काम करते हैं. मार्जिनल वर्कर वो होते हैं जो साल भर में 183 घंटों से कम काम करते हैं. वहीं, मेट्रो की बात करें तो साल 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक दिल्ली मेट्रो में 25 लाख लोग रोजाना सफर करते हैं. 'द हिंदू' अख़बार के अनुसार ये संख्या मार्च 2020 में 46.53 लाख करीब हो गई थी.
सोशल डिस्टेंसिंग
श्री प्रकाश कहते हैं, "दिल्ली सरकार ने अपने सुझावों में वर्क फ्रॉम को चालू रखने की बात की है. उससे फायदा तो है लेकिन वो बस निजी कंपनियों के लिए है. अगर सिर्फ़ सारे सरकारी कर्मचारी ही बाहर निकलें तो भी बसों और मेट्रो में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल हो जाएगा."
"इसलिए बात सिर्फ़ सार्वजनिक परिवहन खोलने की नहीं है बल्कि दुकानें और दफ़्तर खोलने की भी है. जितनी ज़्यादा ढील होगी उतने ज़्यादा लोग बाहर निकलेंगे और उतना ही परिवहन के साधनों पर बोझ पड़ेगा. आदमी दिनभर खड़ा रहेगा तो भी उसे ऐसी बस नहीं मिलेगी जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग के लिहाज से जगह हो."
इसके समाधान के तौर पर श्री प्रकाश कहना है कि वर्क फ्रॉम होम को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ावा देना चाहिए या ऑफ़िस कामकाजी दिन कम कर देने चाहिए ताकि कम लोग बाहर आएं. साथ ही साइकिल चलाने वाले को प्राथमिकता देनी चाहिए.
लोगों का बाहर आना ज़रूरी
हालांकि, शहरी एवं परिवहन अनुसंधान में आईआईटी दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर दिनेश मोहन इससे थोड़ी अलग राय रखते हैं, वह कहते हैं, "अगर लोगों को काम करना है, ऑफिस जाना है, खरीदारी करनी है तो सार्वजनिक वाहनों को खोलना होगा. लोग मास्क पहनें, सेनिटाइजेशन में सख्ती बरती जाए और अगर कोई बीमार है तो वो ना आए. लोगों को रोककर समस्याएं और बढ़ेंगी."
दिनेश मोहन का मानना है कि लोग घर पर रहकर निराश हो गए हैं. लोग दूसरी बीमारियों के लिए अस्पताल नहीं जा पा रहे हैं. उनके पास रोजगार नहीं है. ऐसे में मानसिक परेशानियां धीरे-धीरे बढ़ती जाएंगी. परिवहन के साधन खोलने जाने ज़रूरी हैं. टैक्सी और ऑटो खासतौर पर पूरी तरह खोल देने चाहिए इससे भीड़ कम होगी.
क्या ग़रीब आदमी मास्क लगाकर निकलेगा
ऑटो में एक और कैब में दो सवारी ले जाने की इजाजत है लेकिन, इन दोनों वाहनों में भी कैसी मुश्किलें हो सकती हैं. ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट श्री प्रकाश कहते हैं कि ऑटो में भी देखना होगा कि ड्राइवर और सवारी के बीच में एक पार्टिशन हो. यहां ड्राइवर की सुरक्षा पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है.
वह कहते हैं कि कैब में भी दो सवारियों के साथ मुश्किल हो सकती है लेकिन अगर मास्क लगाया है तो उससे बचाव हो सकता है. पर, मुख्य सवाल तो बसों में चलने वालों का है जिनके पास मास्क भी नहीं है. लंदन मेट्रो तक में भी लोग कई जगहों पर मास्क लगाकर नहीं जाते हैं तो हमारे यहां आप कैसे उम्मीद करते हैं कि हर गरीब आदमी बिना मास्क लगाकर निकलेगा.
वहीं, कैलाश गहलोत ने बीबीसी को बताया कि लोग कम बाहर निकलें इस पर तो हम बहुत कुछ नहीं कर सकते. जब संचालन शुरू होगा तभी ज़मीनी सच्चाई सामने आएगी. लेकिन, हमने भी अपनी तैयारी की हुई है. इस पूरी प्रक्रिया में लोगों के सहयोग की भी ज़रूरत होगी.