दिल्ली

चोर और साहूकार जब मिल बैठेंगे संग, जनता हैरान ईमानदार का बिगुल बजाने वाले कैसे हुए अब घोटालेबाजों के संग

Special Coverage News
20 Jan 2019 5:40 AM GMT
चोर और साहूकार जब मिल बैठेंगे संग, जनता हैरान ईमानदार का बिगुल बजाने वाले कैसे हुए अब घोटालेबाजों के संग
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दिल्ली में एक ईमानदारी की मुहिम लेकर एक पूरा कारवां बड़ी तेजी से सडकों पर दौड़ रहा था. जिसका नेत्रत्व अन्ना हजारे के देखरेख में कवि कुमार विश्वास , अरविन्द केजरीवाल , मनीष सिसोदिया , प्रशांत भूषण , जनरल वीके सिंह , किरण बेदी, विशाल शर्मा समेत हजारो कार्यकर्ता घूम रहे थे. हर आदमी की जबान पर भ्रष्टाचारी कांग्रेस का नाम था. उसी दौरान एक विधेयक को पास करने की बात सामने आई जिस पर तत्कालीन सरकार के सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा कि अगर यह सब करना चाहते हो तो जनता से चुनकर आओ और बदलो.


उसके बाद इस पुरे ग्रुप द्वारा एक पार्टी का निर्माण किया गया. जिसमें सभी को सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार से लड़ने की बात कही गई. देखते ही देखते पार्टी में शामिल होने वालों की झड़ी लगती गई. यूपी से संजय सिंह , हरियाणा से योगेंद्र यादव , पंजाब से भगवंत मान , एच एस फुल्का , समेत कई प्रदेशों के गिरामी एकटर गायक समाजसेवी शामिल होते गये और धीरे धीरे यह चंद लोंगों द्वारा बनाई पार्टी ने एक कारंवा का रूप ले लिया.


उसी समय दिल्ली प्रदेश में विधानसभा का चुनाव था. पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक थैला उठाया जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूतों की फ़ाइल होती थी और उसमें एक पेचकस और प्लास भी होता था. फिर चुनाव हुआ और बच्चों की कसम खाने वाले केजरीवाल ने उसी कांग्रेस से मिलकर दिल्ली में सरकार बनाई. शीला की फाइलों वाला थैला अब खो चूका था. इस्तीफा भी हो गया उसके बाद हुए चुनाव में लड़ाई अरविंद केजरीवाल बनाम मोदी बन चुकी थी. और देखते ही देखते इस पार्टी ने इतिहास रच डाला. दिल्ली की 70 विधानसभा में से 67 जीत ली, हैरानी करने वाली बात यह भी थी कि यह चुनाव केजरीवाल बनाम मोदी बनाम किरण बेदी हुआ. ये वही किरन बेदी थी जिन्होंने इस नई पार्टी को सींचा भी था.


चलिए उसके बाद जो गेम हुआ वो काफी रोचक था. अब मैदान में टॉस जीतकर अरविंद केजरीवाल सबको हिट विकेट कर जीत दर्ज कर चुके थे. इसके बाद उन्होंने जो फील्डिंग की उसका क्या कहना था. सबसे पहले ही उन्होंने पार्टी के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले प्रशांत भूषण को बेइज्जत कर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया. उसी दिन उन्होंने योगेंद्र यादव और विशाल शर्मा को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया. क्योंकि इन्होने इस बात का विरोध किया था. इसके धीरे धीरे कुमार विश्वास का मान मनोबल डाउन कर बाहर का रास्ता दिखाया. अब किसी में उनकी बात का विरोध करने का साहस नहीं बचा है.


इसके बाद जिन लोंगों का विरोध करने के बाद सत्ता हासिल करने वाले केजरीवाल ने अपना असली मुखौटा उतार दिया और उसी मंच पर जाकर बैठ गए जिसका विरोध करके सत्ता हासिल की. हालांकि अब उनका विरोध भ्रष्टाचार से नहीं है पीएम मोदी से है. अब उनका गठबंधन भी कांग्रेस के साथ होने के संकेत मिल रहे है. उन्हीं भ्रस्टाचारी शीला दीक्षित के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी भी चल रही है. लेकिन क्या यह सही बात कि जब मिल बैठेंगे चारो यार तब होगा आगे इस देश का उद्धार.

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