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दिल्ली सरकार को जिस तरह हर कदम पर रोका गया उसके बाद यह फैसला आना ही था। अभी और बहुत सारे तरीके हैं। सास की तरह बहु को हर मुद्दे पर घेरने जैसा था। अगर वह भी अपनाने की कोशिश की तो फिर पूर्ण राज्य के दर्जे का मामला गंभीर भी हो सकता है। अति का अंत होता ही है।
दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने, पीएम मनमोहन सिंह ने दिल्ली में शीला दीक्षित की सरकार बहुत अच्छी तरह से चलने दी। कभी कोई अवरोध नहीं हुआ अपने अपने दायरे थे जो सबने निभाए।
तीन पार्टियों की राज्य सरकार रही। भाजपा, कांग्रेस और आप की। कोई परेशानी नहीं हुई। सब के अधिकार डिफाइन हैं। सब को मालूम है देश की राजधानी है। पूर्ण राज्य का दर्जा संभव नहीं है। साथ ही यह भी मालूम है कि CM को छोटा दिखाना भी जरूरी नहीं है।
लेकिन सवाल यह है कि CM से PM मुकाबला क्यों कर रहे हैं?
वहीं दिल्ली सरकार के मुखिया अरविंद केजरिवाल ने कहा है कि कुछ दिनों में बहुत बड़ा प्रशासनिक फेरबदल होगा। कुछ अधिकारी ऐसे हैं जिन्होंने पिछले डेढ़ साल में जनता के काम रोके, ऐसे कर्मचारियों को चिह्नित किया जाएगा और उन्हें अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा।