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इस बार गंगा दशहरा पर बन रहा है अद्भुत संयोग, जानिए- क्या है महत्व
Arun Mishra
21 May 2018 11:50 AM IST
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Maa Ganga (Har Ki Paudi, Haridwar)
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता। हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता।।
ज्येष्ठे मासि सिते पक्षे दशमी हस्तसंयुता।
हरते दश पापानि तस्माद् दशहरा स्मृता।।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में स्वर्ग से गंगा का आगमन हुआ था। अतएव इस दिन गंगा आदि का स्नान, अन्न-वस्त्रादि का दान, जप-तप--उपासना और उपवास किया जाय तो दस प्रकार के पाप( तीन प्रकार के कायिक, चार प्रकार के वाचिक और तीन प्रकार के मानसिक) दूर होते हैं।
इस वर्ष 24 मई को पड़ने वाली गंगा दशहरा में गर करण, वृषस्थ सूर्य, कन्या का चन्द्र होने से अद्भुत संयोग प्राप्त बन रहा है। जो महाफलदायक है। इस बार योग विशेष का बाहुल्य होने से इस दिन स्नान, दान, जप, तप, व्रत, और उपवास आदि करने का बहुत ही महत्व है। इस वर्ष गंगा दशहरा ज्येष्ठ अधिकमास में होने से पूर्वोक्त कृत्य शुद्ध की अपेक्षा मलमास में करने से अधिक फल होता है। दशहरा के दिन काशी दशाश्वमेध घाट में दश प्रकार स्नान करके, शिवलिंग का दस संख्या के गन्ध, पुष्प,धूप,दीप, नैवेद्य और फल आदि से पूजन करके रात्रि को जागरण करें तो अनन्त फल होता है।
"दशयोगे नरः स्नात्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।"
गंगा पूजन विधि-
गंगा दशहरा के दिन गंगा तटवर्ती प्रदेश में अथवा सामर्थ्य न हो तो समीप के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके सुवर्णादि के पात्र में त्रिनेत्र, चतुर्भुज, सर्वावयवभूषित, रत्नकुम्भधारिणी, श्वेत वस्त्रादि से सुशोभित तथा वर और अभयमुद्रा से युक्त श्रीगंगा जी की प्रशान्त मूर्ति अंकित करें। अथवा किसी साक्षात् मूर्ति के समीप बैठ जाय। फिर 'ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः'
से आवाहनादि षोडषोपचार पूजन करें तथा इन्ही नामों से 'नमः' के स्थान में स्वाहायुक्त करके हवन करे। तत्पश्चात ' ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं( वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा।' इस मंत्र से पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके गंगा को भूतल पर लाने वाले भगीरथ का और जहाँ से वे आयी हैं, उस हिमालय का नाम- मंत्र से पूजन करे। फिर दस फल,दस दीपक, और दस सेर तिल- इनका 'गंगायै नमः' कहकर दान करे। साथ ही घी मिले हुए सत्तू के और गुड़ के पिण्ड जल में डालें। सामर्थ्य हो तो कच्छप, मत्स्य और मण्डूकादि भी पूजन करके जल में डाल दें। इसके अतिरिक्त 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूँ 10 ब्राह्मण को दें। इतना करने से सब प्रकार के पाप समूल नष्ट हो जाते हैं और दुर्लभ- सम्पत्ति प्राप्त होती है।
श्रीमद्भागवत महापुराण मे गंगा की महिमा बताते हुए शकदेव जी परीक्षित् से कहते हैं कि जब गंगाजल से शरीर की राख का स्पर्श हो जाने से सगर के पुत्रों को स्वर्ग की प्राप्ति हो गई,तब जो लोग श्रद्धा के साथ नियम लेकर श्रीगंगाजी का सेवन करते हैं उनके सम्बन्ध में तो कहना ही क्या है। क्योंकि गंगा जी भगवान के उन चरणकमलों से निकली हैं, जिनका श्रद्धा के साथ चिन्तन करके बड़े -बड़े मुनि निर्मल हो जाते हैं और तीनो गुणों के कठिन बन्धन को काटकर तुरंत भगवत्स्वरूप बन जाते हैं। फिर गंगा जी संसार का बन्धन काट दें इसमें कौन बड़ी बात है।
ज्योतिषाचार्य पं गणेश प्रसाद मिश्र,
लब्धस्वर्णपदक, ज्योतिष विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
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