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Happy Guru Purnima गुरू-पूर्णिमा विशेष : "सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय...!"
Happy Guru Purnima
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है...भारतवर्ष में कई विद्वान गुरु हुए हैं...किन्तु महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे... जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी...सिख धर्म केवल एक ईश्वर और अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है...सिख धर्म की एक प्रचलित कहावत निम्न है...'गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'...गुरु पूर्णिमा का दिन सद्गुरु के प्रति पूरी कृतज्ञता के साथ अपने भाव...श्रद्धा, प्रेम और विश्वास से युक्त दो बूंद आंसू उनके चरणों में प्रक्षालन करने का अवसर है...
गुरु कोई व्यक्ति नहीं...गुरु को व्यक्ति मानना दोष है...गुरु तो परम अस्तित्व है...अगर तुम अधिकारी शिष्य बनोगे तो सद्गुरु तुम्हें अपने आप मिल जाएं...गुरु को कभी ढूंढने मत जाना...गुरु को देखते ही जब तुम्हारा रोम-रोम पुकारने लगे, मन प्रफुल्लित होने लगे कि बस यही मेरे गुरु हैं तब समझो गुरु मिल गए...भीतर जब मोक्ष का चाव जगेगा तो स्वयं सद्गुरु आकर तुम्हें मिलेंगे। सद्गुरु साक्षात परब्रह्म स्वरूप हैं। इसलिए व्यक्ति को गुरु मानना भ्रांति है। असलियत तो यह है कि तुम्हारे बनाने से गुरु-गुरु नहीं बनते, वह तो अपनी गुरुता से गुरु बने हैं। मैं आपका शिष्य हूं ऐसा कहो। मैं आपको गुरु कहता हूं – ऐसा कहना एक प्रकार से अविवेक है...!!
मिट्टी के बरतन बनाने वाला कारीगर मिट्टी को चाक पर चढ़ाने से पहले उसे जांचता-परखता है, मथता है, फिर उसे चाक पर चढ़ाकर उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के आकार देता है। आकार देने में किसी प्रकार की कमी न रह जाए- इस पर नजर रखता है। हमारे यहां शरीर को भी पिंड ही कहा गया है। मिट्टी का यह पिंड जब सद्गुरु के प्रति समर्पित हो गया तो वह उससे सुंदर मूर्ति का निर्माण करते हैं। सद्गुरु शिष्य को शिक्षित-दीक्षित ही नहीं करते, बल्कि एक प्रकार से उसमें अवतरित भी होते हैं। शिष्य की बोलचाल से ही सद्गुरु का पता चल जाता है। वाणी, विचार, वेशभूषा – सबमें जब-तब सद्गुरु अवतरित होते हैं। यह गुरु की दिव्य शक्ति ही तो है कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने नरेंद्र जैसा शिष्य खोज निकाला। गुरु की दिव्य शक्ति से वह नरेंद्र से विवेकानंद हो गए। इसलिए व्यक्ति को गुरु मानना भ्रांति है...हमारे यहां शास्त्रों में जो अज्ञान-अंधकार मिटाए, उसे गुरु कहा गया है।
ज्ञान को नित्य वस्तु माना है। ज्ञान सद्गुरु है और सद्वस्तु होने के कारण वह नित्य वस्तु है। इस दृष्टि से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति में ज्ञान का अभाव नहीं है, वह ज्ञान केवल ढका हुआ है। इस वजह से वह ज्ञान व्यक्ति के काम नहीं आता। वह ज्ञान उसके जीवन पथ को रोशन नहीं कर पाता। सद्गुरु ज्ञान पर पड़े आवरण को हटाकर उसे प्रकट करते हैं। गुरु ज्ञान प्रकाश पुंज होते हुए भी चंद्रमा की तरह शीतल है, इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन हम गुरु की वंदना-पूजा करते हैं। एक संकेत यह भी है कि अपनी कलाओं को विकसित करते हुए पूर्णिमा के चंद्र की भांति गुरु भी पूर्ण हो चुके हैं। सद्गुरु ने उस परम तत्व को देख लिया है। वह तत्व द्रष्टा बन चुके हैं। इसलिए गुरु शिष्य के पास नहीं आते, हमेशा शिष्य गुरु के पास जाता है...!!
27 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। हिंदू धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना गया है। यह पर्व अपने आराध्य गुरु को श्रद्धा अर्पित करने का महापर्व है। गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर: , गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम: अर्थात गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूं...!!
करता करे ना कर सके, गुरु करे सब होय...!
सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय...!!
मैं तो सात संमुद्र की मसीह करु, लेखनी सब बदराय...!
सब धरती कागज करु पर, गुरु गुण लिखा ना जाय...!!
"गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई...!"
स्व. कुंवर सी.पी. सिंह (पत्रकार)