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सबरीमाला मंदिर को लेकर चीफ जस्टिस एसए बोबडे का बड़ा बयान, जानिए क्या है सबरीमला मंदिर मामला
केरल। भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है सबरीमाला का मंदिर. यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. इस मंदिर को मक्का-मदीना की तरह विश्व के सबसे बड़े तीर्थ स्थानों में से एक माना जाता है सबरीमाला मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ को भेजा गया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता फातिमा को कहा कि हम अभी कोई आदेश आपकी याचिका पर जारी नहीं कर करेंगे. चीफ जस्टिस ने कहा कि 2018 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश अंतिम आदेश नहीं है, क्योंकि मामला अभी भी 7 जजों की संविधान पीठ के पास लंबित है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि कुछ विषय देश में ऐसे भी होते है, जो बहुत विस्फोटक होते है ये उन्हीं में से एक है. आज आदेश जारी करना सही नहीं है. हमनें न्यूज पेपर में पढ़ा है कि इस मामले से लोगों की भावना जुड़ी है. आज कोई आदेश जारी करना सही नहीं होगा. याचिकाकर्ता विंदू की वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 2018 के आदेश पर कोई रोक नहीं है. सभी उम्र की महिलाएं सबरीमला मंदिर में जा सकती है.
चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि हमें पता है कि 2018 के आदेश पर कोई रोक नहीं है, लेकिन हम अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोई आदेश जारी नहीं करेंगे. याचिका कर्ता ने कहा कि हमे मंदिर मे जाने का आदेश दे. कोर्ट ने कहा कि न तो हम जाने और न ही रोकने का. कोई भी आर्डर पास नहीं करेंगे।
क्या है सबरीमला मंदिर मामला
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को भारत के दक्षिण भारतीय राज्य केरल स्थित सबरीमला अय्यपा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भी अपना आखिरी फैसला सुनाएगा। वैसे तो सर्वोच्च अदालत ने 28 सितंबर, 2018 के फैसले में सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दे दिया था।
हालांकि इस फैसले की समीक्षा के लिए 60 याचिकाएं दायर की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच जजों वाली पीठ ने छह फरवरी 2019 को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई
बता दें कि 28 सितंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई में जस्टिस आर फली नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने सभी उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नाखुश कई संस्थाओं और समूहों ने इसकी समीक्षा के लिए याचिकाएं दायर कीं। फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी (एनएसएस) और मंदिर के तंत्री (पुजारी) भी शामिल हैं।
सबरीमला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर भारत में काफी लंबी-चौड़ी बहस हुई है। मासिक धर्म से गुजरने वाली महिलाओं को मंदिर में न जाने दिए जाने को महिलावादी और प्रगतिशील संगठनों ने महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन बताया है। वहीं, कई धार्मिक संगठनों की दलील है कि चूंकि अयप्पा ब्रह्मचारी माने जाते हैं, इसलिए 10-50 वर्ष की महिलाओं को उनके मंदिर में जाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
सबरीमाला की मान्यताएं
इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में एक ज्योति दिखती है. इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं. बताया जाता है कि जब-जब ये रोशनी दिखती है इसके साथ शोर भी सुनाई देता है. भक्त मानते हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे खुद जलाते हैं. इसे मकर ज्योति का नाम दिया गया है.
इस मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित है. इसके पीछे मान्यता ये है कि यहां जिस भगवान की पूजा होती है (श्री अयप्पा), वे ब्रह्माचारी थे इसलिए यहां 10 से 50 साल तक की लड़कियां और महिलाएं नहीं प्रवेश कर सकतीं. इस मंदिर में ऐसी छोटी बच्चियां आ सकती हैं, जिनको मासिक धर्म शुरू ना हुआ हो. या ऐसी या बूढ़ी औरतें, जो मासिकधर्म से मुक्त हो चुकी हों.
यहां जिन श्री अयप्पा की पूजा होती है उन्हें 'हरिहरपुत्र' कहा जाता है. यानी विष्णु और शिव के पुत्र. यहां दर्शन करने वाले भक्तों को दो महीने पहले से ही मांस-मछली का सेवन त्यागना होता है. मान्यता है कि अगर भक्त तुलसी या फिर रुद्राक्ष की माला पहनकर और व्रत रखकर यहां पहुंचकर दर्शन करे तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है.