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यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर्सन ने पिछले महीने की स्कूल खुलने के बात पर जोर देकर कहा कि " स्कूल सुड क्लोज़ लेट एंड ओपन अर्ली "यानी कि स्कूल सबसे अंत में बंद होने चाहिए और सबसे अंत में बंद होने चाहिए। गौरतलब है देश में लाखों बच्चें ऐसे है जिनको स्कूल गए 600 दिन से ज्यादा हो चुके है।कई राज्यों में स्कूल कॉलेज खुल चुके है लेकिन प्राइमरी स्कूल अब भी बंद है।
सरकार मानती है कि बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जा रहा था।यूनिसेफ की रिपार्ट कहती है कि भारत में सिर्फ 4 में से 1 बच्चें के पास ही ऑनलाइन पढ़ने की सुविधा है। बच्चों में स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्टिविटी के अभाव है। शिक्षा मंत्रालय का आंकड़ा बताता है कि कोरोना से पहले देश में सिर्फ 12 फीसदी स्कूलों में इंटरनेट की सुविधाएं थी, ढंग के कंप्यूटर जैसी सुविधाएं सिर्फ 30 फीसदी स्कूलों में थी।
हाल ही संसद के मॉनसून सत्र में शिक्षा पर स्टैंडिंग कमेटी ने अपनी रिपार्ट में बताया था कि स्कूल नही खुलने से परिवार के सामाजिक ताने बाने पर नकारात्मक प्रभाव पढ़ रहा है। पूरे दिन चार दिवारी के भीतर रहने से बच्चों का माता-पिता के साथ उनके रिश्ते पर प्रभाव पढ़ रहा। बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा।
दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से कोरोना के मामले 100 से भी कम आ रहे है। अबतक 1.46 करोड़ वैक्सीन के डोज भी लग चुके है। इसलिए दिल्ली सरकार ने भी 1 सितंबर से स्कूल,कॉलेज खोलेने का फैसला किया है।उत्तर प्रदेश सहित कई राज्य जैसे हरियाणा, उत्तराखंड, बिहार, असम, आंध्र प्रदेश कर्नाटक जैसे राज्यों में स्कूल कॉलेज जुलाई अगस्त के महीनों में ही खुल चुके है। हालांकि महाराष्ट्र, केरल और पश्चिम बंगाल में स्कूल अभी भी बंद है।
देशभर के 55 डॉक्टरों एवं शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री सहित तमाम राज्यों के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर स्कूल खोलने पर जोर देकर अनुरोध किया है।पत्र में लिखा गया कि कई अध्ययनों में बात सामने आई है कि स्कूल सुपरस्प्रेडर नही हो सकता,मान ले बच्चें स्कूल जाते भी है और कोई कोरोना संक्रमित होता है तो किसी एक कि वजह से सारे बच्चें संक्रमित हो जाए ऐसा नही हो सकता। अभिभावक चाहते है कि स्कूल की व्यवस्था वैकल्पिक रखी जाए लेकिन स्कूल खुलने चाहिए।
कोरोना के आंकड़ों की बात करें तो 88 फीसदी नए मामले सिर्फ पांच राज्यों से आ रहे जिसमें केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक शामिल है।आंकड़े बताते है कि देश में 50 फीसदी लोगों को मतलब 18 के उम्र से ज्यादा लोगों को कम से एक टीकों की डोज लग गयी है, जो तीसरी लहर का दहशत कम करता है।
बच्चों की शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है। अध्यन,शोध ओर आंकड़े को मुताबिक हम इस सहमति पर पहुँचे है कि स्कूल - कॉलेज खुलने पर विचार होना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था शुरु करने को लेकर सरकारों को प्राथमिकता और पहल करने की जरूरत है।
- अस्तित्व झा, छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय