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इश्क में मजबूरी....कुछ उनकी कुछ मेरी...
सुना-सुना सा जीवन था
भर गया उनके एक बोल से मन
उनकी एक बोली पर ही तो
दौड़ पड़ा उनकी ओर मेरा मन
पंख लगाकर उड़ जाऊं मैं
पहुँच जाऊं उनके पास वही
गले लगा लूं, चुम लूं माथा
ऐसा हर्षाया ये मन
उनके पास जाने का सोचकर
सब दुख हो गए थे दूर
उदासी के बंद पिंजरे से निकल
झूम झूम नाच गया ये मन
उनको ये कह दूंगी मैं,
उनको वो कह दूंगी मैं
ढेरों खुशियाँ आंचल में भर के
पहुँचुंगी मैं उनके पास
सोच-सोच ये धड़कन रुक गई
जैसे रुक गया हो संसार
इसी ख़ुशी में
मन में मेरे
आयी ऐसी बात विचार
विवश हो गई
लौट जाने को
फिर उसी अंधेरे के द्वार
चुप्पी सध गई इस जुबान पर
दिल में हैं सवाल हजार
कैसी ये मजबूरी आ गई
फिर से एक बार मेरे द्वार
एक अनंत उदासी के साथ ...
प्रेमलता, पीएचडी शोधार्थी, बौद्ध विद्या विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
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