नजरिया

मातृभूमि की रक्षा हेतु लक्ष्मीबाई का बलिदान अविस्मरणीय है--ज्ञानेन्द्र रावत

मातृभूमि की रक्षा हेतु लक्ष्मीबाई का बलिदान अविस्मरणीय है--ज्ञानेन्द्र रावत
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रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले इसलिए भी लिया जाता है कि उन्होंने अपने अबोध दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर अंग्रेजी सेना से न केवल आमने-सामने की लडा़ई में सीधा मोर्चा लिया बल्कि अपनी तलवार से बरतानियां सेना के सैनिकों का दमन करती हुईं उसको सैकडो़ं मीलों तक छकाया और उनके जनरलों को नाकों चने चबबा दिये।

नई दिल्ली, दरअसल 1857 का स्वाधीनता संग्राम जहां मातृभूमि की रक्षा का संग्राम था, वहीं बरतानिया हुकूमत द्वारा राजे-रजवाडो़ं को अपने अधीन करने और उनके उत्तराधिकार के अधिकार के खात्मे के साथ-साथ किसान- अभिजात्य-सामंत और आम जनता की आजादी का संग्राम भी था जो बाद में अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में राष्ट्रीय एकता के संग्राम में बदल गया। वह बात दीगर है कि इस संग्राम की शुरूआत मेरठ छावनी में मंगल पाण्डेय ने कर दी जबकि पूरे उत्तर भारत में इसकी तैयारियां महीनों पहले से की जा रहीं थी। समय पूर्व की गयी इस शुरूआत का परिणाम यह हुआ कि यह संग्राम अपनी परिणति को प्राप्त न हो सका और उस समय बरतानिया हुकूमत से आजादी का सपना पूरा नहीं हो सका।

इस संग्राम में जहां झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तात्यां टोपे, बेगम हजरत महल, वीर कुंवर सिंह, ऊदा देवी, खान बहादुर आदि आदि असंख्य राष्ट्रप्रेमी सामंतों, राजाओं ने मातृवेदी की रक्षा की खातिर अपने प्राणों का उत्सर्ग किया। हजारों किसानों-सैनिकों सहित वीर बालाओं ने इस यज्ञ में खुद को होम कर दिया। लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि इसमें रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, नाना साहब, तांत्या टोपे, राजा वीर कुंवर सिंह, खान बहादुर की भूमिका अहम थी। इसमें भी रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले इसलिए भी लिया जाता है कि उन्होंने अपने अबोध दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर अंग्रेजी सेना से न केवल आमने-सामने की लडा़ई में सीधा मोर्चा लिया बल्कि अपनी तलवार से बरतानियां सेना के सैनिकों का दमन करती हुईं उसको सैकडो़ं मीलों तक छकाया और उनके जनरलों को नाकों चने चबबा दिये। अंत में वह अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। उनके रणकौशल और वीरता का बरतानिया सेना ही नहीं उनके सेनापतियों तक ने लोहा माना। वह उन्हें युद्ध में बार-बार छकाते भगाती ही रहीं। अंत में कालपी के आगे लड़ते-लड़ते थक कर चूर घायलावस्था में नये घोडे़ और उसके द्वारा नाला पार न कर पाने की अवस्था में रानी ने प्राण त्याग दिये।

सबसे बडी़ बात यह कि अंग्रेजी फौज का उन्हें जिंदा पकड़ने का सपना सपना ही रह गया। उनकी मौत पर अंग्रेज जनरल तक ने कहा था कि यहां वह औरत सोई है जो हजारों मर्दों में एक मर्द थी। ऐसी विलक्षण प्रतिभा की धनी, साहसी, अप्रतिम योद्धा,रण बांकुरी, वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर श्रृद्धा और आदर के साथ शत शत नमन। धन्य है वह मां जिसने ऐसी बहादुर बेटी को जन्म दिया जिसके नाम से बरतानी फौज थर-थर कांपती थी और जिसने मां भारती की रक्षा के लिए राज-पाट तक छोड़ दिया और लडा़ई के मैदान को अपनाया। देश मातृभूमि की रक्षा की खातिर प्राणोत्सर्ग करने वाली मनु यानी रानी लक्ष्मीबाई को सदा याद रखेगा और इतिहास में उनका नाम सदा स्वर्णाच्छरों में लिखा जायेगा।


ज्ञानेन्द्र रावत (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं)

अभिषेक श्रीवास्तव

अभिषेक श्रीवास्तव

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