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मछलियों का सरदार बोला...ये बगुले तुम हमारे लिए क्या करोगे...?
तालाब के किनारे एक सर्प रोज आकर पानी में अठखेलियाँ कर रही मछलियों को निहारता था। मछलियां अब पानी के बीचो बीच जलक्रीड़ा करती मगर किनारे नहीं जाती थीं। ईस बात को पेड़ पर बैठे बगुले ने भांप लिया वह पानी के बीच जाकर एक पैर पर खड़ा हो गया कहने लगा। मैं सन्यासी हो गया हूँ...मेरा समय जप तप में लगा रहता है। मेरा विश्वास करो तुम्हें बचाने आया हूँ...तुम लोग डर रही हो तो तुम्हारा डर वाज़िब है...कई बगुलों ने तुम्हें नुकसान पहुँचाया होगा...तुम्हें खाया होगा।
मगर मेरा कोई नहीं मैं तुम्हारा भला करने आया हूँ। उसने मेढकों की तरफ इशारा कर कहा यकीन न हो तो इन मेढकों से पूछ लो। यह कहते कहते वह सुबुक सुबकु कर रोने लगा। बगुले ने मेढकों पहले ही कें.चु.आ दे चुका था इसलिए सभी एक साथ बगुले के पछ में टर्र टों...टर्र टों करके बगुले के हां में हां मिलाने लगें।
मछलियों के झुंड में चर्चा भई विश्वास तो करना होगा...क्योंकि यह "बगुला भगत" बन चुका है। वैसे भी कभी मछुआरा कभी सर्प कभी गावँ के कटिया मार हमें फसाते हैं। और इक्कठे हमें मारकर ले जाते हैं। मछलियों का सरदार बोला...ये बगुले तुम हमारे लिए क्या करोगे...?
बगुले ने कहा मुझे 60 घण्टे का समय दो मैं तुम्हें यहां से '15 एकड़' में फैले तालाब में ले जाऊंगा...जहां तुम्हारा 'विकास' होगा...तुम्हारे डर से सर्प मछुआरे थर थर कापेंगे...तुम लोग पानी के सारे जीवों के 'गुरु' बन जाओगे...यकीन करो यह जुमला नहीं मेरा वादा है।
मछलियों में जोश आ गया...की अब "अच्छे दिन आने वाले हैं"कहकर सब खुशी से उछलने कूदने लगीं...मछलियों के सरदार ने मछलियों से आपस में बात की और कहा यह बगुला हमारे लिए इतना सोच रहा है। इस तालाब से उस तालाब तक ले जाने में यह कितनी मेहनत करेगा...इसलिए इसको बचाने के लिए हममे से किसी एक दो मछलीयों को 'कुर्बानी' देनी होगी...ताकि बाकी लोग "खतरे में" न आ पायें।
मछलियों में 15 एकड़ तालाब में जाने का जोश था ही...सभी मछलियों ने एक गरीब टाईप की मछली को पकड़ा उसे कहा कि तुम कुर्बानी दे दोगे तो हम सब खतरे से बच जायेंगे। और उठाकर उसे बगुले के मुंह में डाल दिया...! उसके बाद...बगुला उन मछलियों को चोंच में उठाता औऱ इस तालाब के खतरे से बचाने औऱ उन्हें 15 एकड़ वाले तालाब की तरफ ले जाता....! पता है उस तरफ क्या था....?
विनय मौर्या।