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अगर मेरे हाथ में होता तो मैं इंडियन आइडल का ग्रैंड फिनाले रुकवा देता
अगर मेरे हाथ में होता तो मैं इंडियन आइडल का ग्रैंड फिनाले रुकवा देता। ये शो मैं हर साल देखता हूं, बहुत ही मन से देखता हूं, जब भी किसी योग्य गायक की विदाई हो जाती है तो दिल कचोट उठता है। अब सिर्फ छह बचे हैं। ज्यादा से ज्यादा निहाल की विदाई देख सकता हूं। बाकी तो सभी मेरी नजर में श्रेष्ठ हैं। जिसको भी सुनता हूं, वही इंडियन आइडल लगता है। चाहे वो पवनदीप हो, दानिश हो, अरुणिता हो, सायली कांबले हो या फिर शनमुखा प्रिया। सभी से एक रिश्ता सा बन गया है।
मुझे नहीं लगता कि इंडियन आइडल में इतने टैलेंटेड बच्चे कभी एक साथ आए होंगे। सब विलक्षण हैं, एक से बढ़कर एक। सबसे पहले बात बच्चियों की। अरुणिता गाती है तो ऐसा लगता है जैसे मां सरस्वती की आराधना करने में जुटी है और उन्हें मनाकर ही छोड़ेगी। सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर तक उसकी प्रशसंक हैं। वहीं सायली कांबले भी कुछ कम नहीं है। उसकी आवाज में ऐसी खनक है, जो सीधे दिलोदिमाग में खनकती है। आशा भोसले जिस दिन शो में आई थीं, उस रोज अरुणिता और सायली ने फिल्म उत्सव का गाना गाया था- 'मन क्यों बहका रे बहका आधी रात को।' जिस तरह डूबकर दोनों ने ये जुगलबंदी पेश की, मैं धृष्ठतापूर्वक कहना चाहता हूं कि ये ओरिजिनल से कम अच्छा नहीं था। आशा ताई भी दंग रह गई थीं। इन दोनों लड़कियों की आवाज तो खूबसूरत है ही, ये दोनों खुद भी बेहद खूबसूरत हैं। जब सोचता हूं कि इंडियन आइडल इन्हीं में से ही कोई एक हो। तभी याद आ जाती है शनमुखा प्रिया।
शनमुखा प्रिया गायिका नहीं, अजूबा लगती है। जब वो तान छेड़ती है तो उसका अंग प्रत्यंग गाता है। इतना आत्मविश्वास। हर तरह के गानों में महारत हासिल है उसे। मंच हिला देने की ताब है उसमें। जब वो गाती है तो वो सिर्फ एक गाने की बात नहीं रह जाती, पूरी की पूरी परफॉर्मर है वो। अदायगी है उसमें। उसके एनर्जी लेवल के आगे तो अभिनेता रणवीर सिंह भी पानी भरेंगे। उसे पसंद करने की एक वजह ये भी है कि उसका चेहरा मेरी भतीजी नीरू से मिलता जुलता है। जब भी आती है, तभी मुंह से निकलता है- 'आइ गइल निरुआ।' शो में जितने भी गेस्ट आए हैं, सब उसकी आवाज और अंदाज देखकर दंग हो गए।
अगर मेरी दुआओं से कोई नतीजा निकलता हो तो मैं इन तीनों में से किसी को इंडियन आइडल देखना चाहता हूं, लेकिन फिर चेहरा सामने दिखाई दे जाता है पवनदीप का। उत्तराखंड का 23 साल का ये नौजवान हरफनमौला है। जिस तरह से आज रात उसने तबला बजाकर- 'किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है' गाया, वो असंभव है किसी के लिए भी। मुश्किल से मुश्किल गानों को ऐसी सहजता से गाता है कि बस दिल जीत लेता है।
जब पवनदीप को इंडियन आइडल के तौर पर सोचता हूं तो दानिश नजर आ जाता है। पिछले जो दो इंडियन आइडल बने सलमान और सनी। कम से कम दानिश इन दोनों से बेहतर है। सिर्फ चीख चिल्लाहट ही नहीं, तान पर उसकी पूरी पकड़ है। उसकी रेंज शानदार है। रॉकस्टार लगता है। वो गाता ही नहीं, गाने को पेश भी शानदार अंदाज में करता है।
इससे पहले इस शो से दो गायकों की विदाई पर बहुत दुख हुआ था। एक तो अंजलि गायकवाड़ और दूसरा नचिकेत। ये दोनों अलौकिक थे, लेकिन स्टार वैल्यू नहीं थी इनमें। आशीष कुलकर्णी भी यहीं मात खा गया। लेकिन जिन पांचों का मैंने जिक्र किया है, सब मुझे बहुत प्यारे हैं। मेरे लिए सभी इंडियन आइडल हैं। इनमें से किसी को भी हारते देखना मेरे लिए बहुत मुश्किल होगा। इस शो का जज होता तो ये शो छोड़ देता। इसी नाते कहता हूं कि मेरे हाथ में होता तो ये शो यहीं रुकवा देता।
दरअसल गीत संगीत मेरी आत्मा से जुड़ा है। इतना कि मैं ध्यान लगाकर गाना सुनना नहीं चाहता हूं, क्योंकि अगर ध्यान लगाया तो खो जाता हूं। संगीत मेरे लिए सिर्फ साजों पर छेड़ी हुई तान ही नहीं है। मैं जब खुश होता हूं तो लगता है कि मेरे अगल बगल हारमोनियम बज रहा है, बांसुरी बज रही है, तबला-मृदंग, ढोलक बज रही है। संगीत मुझे महसूस होता है। दफ्तर में जब भी मैं किसी पसंदीदा विषय पर कोई शो बनाता हूं तो गुनगुनाते हुए लिखता हूं।
कभी ऐसा भी होता है कि कोई गाना सुबह दिमाग में चढ़ गया तो दिमाग में बजता ही रहता है। दफ्तर में काम शुरू करना मुश्किल होता है। कई बार ऐसा होता है कि काम शुरू करने से पहले यू ट्यूब से डेस्कटॉप पर निकालकर वो गाना पूरा सुन लेता हूं तब करार आता है, फिर काम शुरू होता है। मेरी गाड़ी में एफएम नहीं बजता, एक पेन ड्राइव है, उसमें 50 से ज्यादा गाने हैं। दफ्तर जाते और आते वो गाने बजते हैं। गाड़ी बंद हो जाती है तो कान में भी बजते हैं।
इंडियन आइडल भी इसी नाते देखता हूं, शो टीवी पर रिकॉर्ड रहता है, जो गाना ज्यादा पसंद आया उसे रिवाइंड करके भी देखता-सुनता हूं। इसके कई प्रतियोगी तो कल्पनाओं में मेरे साथ रहते हैं। आसपास गुनगुनाते हैं। शो की जज नेहा कक्कड़ इन दिनों व्यक्तिगत वजहों से शो से बाहर हैं। वो मेरी पसंदीदा हैं। बिल्कुल नेचुरल। दरियादिल। भावनाएं दिल में उठीं नहीं कि आंसू बाहर। किसी की तान पसंद आ गई तो भी आंख छलक आई। मेरे साथ भी अक्सर ऐसा ही होता है। थोड़ा मन खुश हुआ, भावनाओं ने जोर मारा तो आंखें छलक उठती हैं।
मुझे लगता है कि जीवन भी संगीत ही है। ये हमारे-आप पर निर्भर है कि इस जीवन संगीत को वक्त की साज पर कैसे छेड़ें। क्या करें कि जिंदगी की साज पर छेड़ा हुआ संगीत कभी बेसुरा न हो।