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आदिपुरुष को लेकर मनोज मुंतशिर ने मांगी माफी, पत्रकार अजय कुमार बोले क्या तुम माफी के काबिल हो
आदिपुरुष' पर जारी विवाद के बीच फिल्म के लेखक मनोज मुंतशिर ने लोगों से माफी मांगी है. उन्होंने जी न्यूज से एक्सक्लूजिव बातचीत में कहा कि जिन लोगों की आस्था को ठेस पहुंचा है मैं उनसे माफी मांगता हूं. मेरा मकसद लोगों की भावनाएं आहत करना नहीं था. इससे पहले मनोज मुंतशिर ने फिल्म को लेकर ट्विटर पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट भी लिखा था.
फिल्म आदिपुरुष के लेखक मनोज मुंतशिर ने मांगी माफी, कहा- 'जिनकी आस्था को ठेस पहुंची उनसे माफी, भावनाएं आहत करना मकसद नहीं'
उनके माफीनामा पर वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार ने कहा एक मौक़ापरस्त, घटिया, धन की लालसा और लोकप्रियता की ललक से भरे व्यक्ति के पास जब बचाव का कोई रास्ता नहीं होता और वो दुनिया के सामने पूरी तरह से Expose हो चुका होता है, तो फिर मनोज मुन्तशिर जैसा Opportunist कुछ ऐसे ही पतली गली से माफ़ी माँगते हुए, बचाव का रास्ता ढूँढता है। फ़िल्म रिलीज़ के 48 घंटे बाद तक, सभी News Channels पर खुद की सोच, दिमाग़ कि कुंठा और श्री राम, रामायण, हनुमान और माँ सीता के निहित अपमान को जब ये तथाकथित रामभक्त और राष्ट्रवादी, जायज़ नहीं ठहरा पाया तो, अब फ़िल्म की कमाई बनाये रखने के लिए ये सबकुछ लिख रहा है। हे राष्ट्रभक्त , अगर लेश मात्र भी शर्म और नैतिकता बची हो, तो अपने 48 घंटों के बचाव के हर Interview को देखो और सिर्फ़ देश से नहीं, सियाराम से क्षमा मांगो - क्योंकि जो तुमने किया है, वो तो मुग़लों ने भी करने की हिम्मत नहीं दिखाई थी। लाखों Invaders जो ना कर सके, वो एक ढोंगी, मौक़ापरस्त और फ़रेब राजभक्त ने कर दिखाया। तुम्हें जनता क्या माफ़ करेगी, तुम माफ़ी के काबिल हो क्या ?
मनोज मुंतशिर ने लिखा माफीनामा
रामकथा से पहला पाठ जो कोई सीख सकता है, वो है हर भावना का सम्मान करना. सही या ग़लत, समय के अनुसार बदल जाता है, भावना रह जाती है. आदिपुरुष में 4000 से भी ज़्यादा पंक्तियों के संवाद मैंने लिखे, 5 पंक्तियों पर कुछ भावनाएँ आहत हुईं.उन सैकड़ों पंक्तियों में जहाँ श्री राम का यशगान किया, माँ सीता के सतीत्व का वर्णन किया, उनके लिए प्रशंसा भी मिलनी थी, जो पता नहीं क्यों मिली नहीं.
मेरे ही भाइयों ने मेरे लिये सोशल मीडिया पर अशोभनीय शब्द लिखे. वही मेरे अपने, जिनकी पूज्य माताओं के लिए मैंने टीवी पर अनेकों बार कवितायें पढ़ीं, उन्होंने मेरी ही माँ को अभद्र शब्दों से संबोधित किया.
मैं सोचता रहा, मतभेद तो हो सकता है, लेकिन मेरे भाइयों में अचानक इतनी कड़वाहट कहाँ से आ गई कि वो श्री राम का दर्शन भूल गये जो हर माँ को अपनी माँ मानते थे. शबरी के चरणों में ऐसे बैठे, जैसे कौशल्या के चरणों में बैठे हों.
हो सकता है, 3 घंटे की फ़िल्म में मैंने 3 मिनट कुछ आपकी कल्पना से अलग लिख दिया हो, लेकिन आपने मेरे मस्तक पर सनातन-द्रोही लिखने में इतनी जल्दबाज़ी क्यों की, मैं जान नहीं पाया. क्या आपने ‘जय श्री राम’ गीत नहीं सुना, ‘शिवोहम’ नहीं सुना, ‘राम सिया राम’ नहीं सुना? आदिपुरुष में सनातन की ये स्तुतियाँ भी तो मेरी ही लेखनी से जन्मी हैं. ‘तेरी मिट्टी’ और ‘देश मेरे ’भी तो मैंने ही लिखा है. मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं है, आप मेरे अपने थे, हैं और रहेंगे. हम एक दूसरे के विरुद्ध खड़े हो गये तो सनातन हार जायेगा. हमने आदिपुरुष सनातन सेवा के लिए बनायी है, जो आप भारी संख्या में देख रहे हैं और मुझे विश्वास है आगे भी देखेंगे.
ये पोस्ट क्यों?
क्योंकि मेरे लिये आपकी भावना से बढ़ के और कुछ नहीं है. मैं अपने संवादों के पक्ष में अनगिनत तर्क दे सकता हूँ, लेकिन इस से आपकी पीड़ा कम नहीं होगी. मैंने और फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक ने निर्णय लिया है, कि वो कुछ संवाद जो आपको आहत कर रहे हैं, हम उन्हें संशोधित करेंगे, और इसी सप्ताह वो फ़िल्म में शामिल किए जाएँगे. श्री राम आप सब पर कृपा करें!