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सतीश कौशिक के कौन थे गुरु?

Shiv Kumar Mishra
11 March 2023 1:11 PM IST
सतीश कौशिक के कौन थे गुरु?
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सतीश कौशिक-करोलबाग से किरोड़ीमल कॉलेज वाया दरियागंज

विवेक शुक्ला

सतीश कौशिक के दिल्ली के पुराने और जिगरी दोस्त शब्दहीन हैं, रुआंसे हैं। शब्द दगा दे गए हैं। सतीश कौशिक के बाल सखा सुरेन्द्र रातावाल और विजय मोहन शर्मा बोलने की स्थिति में नहीं है। एक झटके में करीब 55 साल पुराने संबंध टूट गए । तीनों एक दूसरे के करोल बाग तथा दरियागंज के घरों से लेकर किरोड़ीमल क़ॉलेज ( केएमसी) तक आते-जाते थे। सतीश कौशिक को आगामी 8 अप्रैल को केएमसी में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम में जाना था। उस कार्यक्रम की तारीख भी उन्होंने ही तय की थी।सतीश कौशिक 1980 के दशक में मुंबई चले गए थे। तब उनके करोल बाग के नाईवाला की गली नंबर 32 में रहने वाले पिता और परिवार को सुरेन्द्र रातावाल तथा विजय मोहन अपना समझ कर देखते थे।

क्यों नहीं दी दिल्ली आने की खबर

गुरुवार की मनहूस सुबह को सुरेन्द्र रातावल को सतीश कौशिक की मृत्यु का समाचार मिला। उनके होश उड़ गए। उन्हें यकीन इसलिए भी नहीं हुआ क्योंकि सतीश कौशिक दिल्ली में जब आते तो उन्हें और विजय मोहन को फोन से सूचना तो दे ही देते थे। मिलते भी थे। कम होता कि वे अपने बचपन के इन दोस्तों से बिना मिले चले गए हों। इस बार उन्होंने अपने मित्रों को दिल्ली आने की जानकारी नहीं दी थी। दोनों दोस्तो को समझ नहीं आ रही है इसकी वजह।

सतीश कौशिक दरियागंज में

तीनों केएमसी में जाने से पहले ही एक-दूसरे को जानते थे। रोज का उठना-बैठना। केएमसी में पढ़ाई के दौरान दरियागंज के अंबर रेस्तरां में तीनों का बैठना और गपशप करना। सतीश कौशिक मुंबई जाने लगे तो उनके दोनों साथियों ने उनकी हर संभव मदद की। आगे चलकर सतीश कौशिक ने अपने को एक सशक्त एक्टर के रूप में स्थापित किया। इधर उनकी दिल्ली में उनके मित्र सुरेन्द्र रातावल मदनलाल खुराना सरकार में मंत्री बने और विजय मोहन कांग्रेस के नेता और जनता कोपरेटिव बैंक के चेयरमेन।

शोक में डूबा नाईवाला

सतीश कौशिक के निधन से करोल बाग का नाईवाला का उदास होना लाजिमी है। उनका बचपन यहां की तंग गलियों में गुजरा था। उन का परिवार मकान नंबर 1884 में लंबे समय तक रहा. उनके पिता करोल बाग के एक शो रूम में नौकरी करते थे। अब भी नाईवाला में उनकी एक बहन,परिवार के कुछ सदस्यों के अलावा बहुत सारे दोस्त और जानने वाले रहते हैं। वे दूर मुंबई बसने के बाद भी करोल बाग से मन से करीब ही रहे थे। उनक यहां आना-जाना लगा रहता था। वे इसी करोल बाग से मंदिर मार्ग के हरकोर्ट बटलर स्कूल में पढ़ने के लिए जाते थे। कुशाग्र बुद्धि के छात्र थे सतीश कौशिक। उनके अंदर एक्टिंग की दुनिया में जाकर अपने हिस्से के आसमान को छूने का जज्बा तब ही से था। वे हरकोर्ट बटलर स्कूल पूर्व छात्रों के कार्यक्रमों में बार-बार भाग लेते। मुंबई से खासतौर पर आते। वे 2016 में अपने स्कूल भी आए थे। हरकोर्ट बटलर को नई दिल्ली का पहला स्कूल माना जाता है।

कौन थे पहले गुरु

सतीश कौशिक की शख्सियत को संवारने में केएम कॉलेज ने अहम रोल निभाया। यहां पर उन्हें फ्रेंक ठाकुर दास के रूप में अपना एक्टिंग की दुनिया का पहला गुरु मिला। फ्रेंक ठाकुर दास इधर अंग्रेजी के अध्यापक थे, पर उनकी रंगमंच की भी गहरी समझ थी। वे खुद भी रंगकर्मी थे। उनकी सरपरस्ती में अमिताभ बच्चन ने भी एक्टिंग को समझा था। उन्हीं फ्रेंक ठाकुर दास ने सतीश कौशिक को अभिनय और रंगमंच का पहला अध्याय समझाया था। ये 1970 के दशक के शुरूआती साल थे। फ्रेंक ठाकुर दास पंजाबी ईसाई थे। उन्होंने अपने कॉलेज में ड्रामा सोसायटी की स्थापना की थी।

उन्होंने ही कुलभूषण खरबंदा, शक्ति कपूर, दिनेश ठाकुर वगैरह को भी अभिनय, निर्देशन, मंच सज्जा आदि की जानकारी दी थी। फ्रेंक ठाकुर दास अपनी कक्षाएं समाप्त करने के बाद अपने ड्रामा कल्ब की गतिविधियों में व्यस्त हो जाते थे। सतीश कौशिक के मन में अपने फ्रेंक सर को लेकर हमेशा कृतज्ञता का भाव रहा। केएमसी के पूर्व छात्र और अब हंसराज क़ॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. प्रभांशु ओझा ने बताया कि सतीश कौशिक ने एएमसी में बने फ्रेंक ठाकुरदास सभागार के निर्माण के लिए एक मोटी राशि दी थी। उनके मन में केएमसी के प्रति गजब का प्रेम था। वे यहां पर कभी-कभी तो बिना किसी पूर्व सूचना के भी आ जाते थे।

लेखक विवेक शुक्ला देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार है।

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