- होम
- राष्ट्रीय+
- वीडियो
- राज्य+
- उत्तर प्रदेश
- अम्बेडकर नगर
- अमेठी
- अमरोहा
- औरैया
- बागपत
- बलरामपुर
- बस्ती
- चन्दौली
- गोंडा
- जालौन
- कन्नौज
- ललितपुर
- महराजगंज
- मऊ
- मिर्जापुर
- सन्त कबीर नगर
- शामली
- सिद्धार्थनगर
- सोनभद्र
- उन्नाव
- आगरा
- अलीगढ़
- आजमगढ़
- बांदा
- बहराइच
- बलिया
- बाराबंकी
- बरेली
- भदोही
- बिजनौर
- बदायूं
- बुलंदशहर
- चित्रकूट
- देवरिया
- एटा
- इटावा
- अयोध्या
- फर्रुखाबाद
- फतेहपुर
- फिरोजाबाद
- गाजियाबाद
- गाजीपुर
- गोरखपुर
- हमीरपुर
- हापुड़
- हरदोई
- हाथरस
- जौनपुर
- झांसी
- कानपुर
- कासगंज
- कौशाम्बी
- कुशीनगर
- लखीमपुर खीरी
- लखनऊ
- महोबा
- मैनपुरी
- मथुरा
- मेरठ
- मिर्जापुर
- मुरादाबाद
- मुज्जफरनगर
- नोएडा
- पीलीभीत
- प्रतापगढ़
- प्रयागराज
- रायबरेली
- रामपुर
- सहारनपुर
- संभल
- शाहजहांपुर
- श्रावस्ती
- सीतापुर
- सुल्तानपुर
- वाराणसी
- दिल्ली
- बिहार
- उत्तराखण्ड
- पंजाब
- राजस्थान
- हरियाणा
- मध्यप्रदेश
- झारखंड
- गुजरात
- जम्मू कश्मीर
- मणिपुर
- हिमाचल प्रदेश
- तमिलनाडु
- आंध्र प्रदेश
- तेलंगाना
- उडीसा
- अरुणाचल प्रदेश
- छत्तीसगढ़
- चेन्नई
- गोवा
- कर्नाटक
- महाराष्ट्र
- पश्चिम बंगाल
- उत्तर प्रदेश
- Shopping
- शिक्षा
- स्वास्थ्य
- आजीविका
- विविध+
- Home
- /
- विविध
- /
- मनोरंजन
- /
- लाइफ स्टाइल
- /
- शिल्पा शेट्टी ने किया...
शिल्पा शेट्टी ने किया बड़ा खुलासा, इस बीमारी के चलते होता था मेरा बार बार गर्भपात
अभिनेत्री शिल्पी शेट्टी ने इसी साल फ़रवरी में सेरोगेसी से एक बेटी को जन्म दिया है. उनकी बेटी का नाम समिशा है और उनका पहले से एक बेटा भी है वियान. हाल ही में मर्दस डे के मौक़े पर शिल्पा शेट्टी ने अपनी सेरोगेसी से पहले गर्भधारण की समस्या के बारे में बताया.
उन्होंने एक वेबसाइट को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि वो कई सालों तक गर्भधारण की कोशिश करती रहीं लेकिन एक बीमारी के कारण बार-बार उन्हें गर्भपात से गुज़रना पड़ा. शिल्पा शेट्टी ने बताया, "वियान के बाद हम लंबे समय से एक और बच्चा चाह रहे थे. लेकिन, मुझे कई कॉम्प्लिकेशंस से गुज़रना पड़ा. मुझे एक ऑटो इम्यून डिज़ीज़ एप्ला (APLA) हो गई. जिसके कारण मेरे कई गर्भपात हुए. एक बार तो मैंने उम्मीद ही छोड़ दी थी."
उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहती थी कि वियान अकेला ही बड़ा हो. फिर हमने सोचा की चलो सेरोगेसी से कोशिश करते हैं और तब तीन बार कोशिश करने के बाद हम फिर से माता-पिता बनने में सफल हुए. "
शिल्पा शेट्टी ने एप्ला नाम की जिस बीमारी का ज़िक्र किया वो अधिकतर महिलाओं में पाई जाती है. इस बीमारी का पूरा नाम है एंटीफोसफोलिपिड सिंड्रोम.मैक्स अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर तान्या बख़्शी रोहतगी कहती हैं, "एंटीफोसफोलिपिड सिंड्रोम एक ऑटो इम्यून बीमारी है. इसमें हमारा शरीर ऐसी कोशिकाएं बनाता है जो स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें ख़त्म कर देती हैं. ऑटो इम्यून में एक ऐसी ख़राबी पैदा हो जाती है जिससे असामान्य कोशिकाएं शरीर के थक्के जमने की प्रक्रिया पर हमला करने लगती हैं. इससे ख़ून में जल्दी-जल्दी थक्के जमने लगते हैं."
इस सिंड्रोम का असर शरीर की धमनियों, नसों और अंगों पर पड़ता है. उनमें ख़ून के थक्के जमने से रक्तप्रवाह में बाधा आती है और अंगों में समस्याएं आने लगती हैं. इसके कारण गर्भ, किडनी, फेफड़े, दिमाग़, हाथ-पैर आदि अंग प्रभावित होते हैं जिससे गर्भपात, अंगो का निष्क्रिय होना और आघात जैसी दिक्क़तें हो सकती हैं. डॉक्टर तान्या बताती हैं, "ये समस्या महिला और पुरुष दोनों में होती है. कई बार बच्चों को भी हो जाती है. लेकिन ये ज़्यादातर महिलाओं में ही देखने को मिलती है."
डॉक्टर तान्या रोहतगी के मुताबिक़ महिलाओं में ऑटो इम्यून संबंधी बीमारियां ज़्यादा पाई जाती हैं. ऐसा होने का कारण आनुवांशिक भी हो सकता है और हार्मोनल भी. महिलाओं के शरीर में मौजूद हार्मोन जैसे इस्ट्रोजन आदि के कारण भी उनका ख़ून गाढ़ा होता है और थक्के जमने का ख़तरा ज़्यादा होता है.
क्यों होता है गर्भपात
एप्ला सिंड्रोम के गर्भधारण पर असर पड़ने से गर्भपात हो सकता है, बच्चा अविकसित पैदा हो सकता है या मृत बच्चा भी पैदा हो सकता है.डॉक्टर तान्या रोहतगी ने बताया, "हमारे शरीर में छोटी-छोटी रक्तवाहिनियां (नसें) हैं जिनमें ये थक्के बनने लगते हैं. गर्भ में बच्चे को विकसित होने के लिए निर्बाध रक्त प्रवाह चाहिए होता है ताकि उसे पर्याप्त पोषण मिल सके. लेकिन, ख़ून में थक्के जमने से रक्त प्रवाह में रुकावट आ जाती है और बच्चे को पोषण नहीं मिलता, वो विकसित नहीं हो पाता. इससे गर्भपात हो सकता है. गर्भपात शुरुआती महीनों में या बाद के महीनों में भी हो सकता है."
"जिन महिलाओं में गर्भपात नहीं होता उनमें प्लेसेंटा पर छोटे-छोटे थक्के जमने की वजह से बच्चा विकास नहीं कर पाता और वो छोटा या अविकसित पैदा होता है. उनका वज़न काफ़ी कम हो जाता है. बच्चा समय से पहले भी पैदा हो सकता है. प्लेसेंटा से ही बच्चे पोषण प्राप्त करते हैं. कुछ मामलों में जब बच्चे का पोषण बहुत ही कम हो जाता है तो वो गर्भ के अंदर ही मर जाता है. ऐसे में बच्चा मृत पैदा होता है."
एप्ला सिंड्रोम की वजह
ये सिंड्रोम होने की एक से ज़्यादा वजहें हो सकती हैं. ये शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है. डॉक्टर तान्या बताती हैं कि इसके कारणों का पता लगाने के लिए पहले ये जानना ज़रूरी है कि मरीज़ की मेडिकल हिस्ट्री क्या है. उसमें इस सिड्रोम की शुरुआत कैसे हुई जैसे उसे दौरे पड़े, पैरों में सूजन आई या बार-बार गर्भपात हुआ. ये बीमारी होने के संभावित कारण हैं-
- कई लोगों को ऑटो इम्यून की दूसरी बीमारियां भी होती हैं. इन लोगों में एप्ला सिंड्रोम ज़्यादा पाया जाता है.
- गर्भनिरोधक दवाइयों से भी ख़ून में थक्के जमने का ख़तरा हो सकता है.
- इसके पीछे आनुवांशिक कारण भी हो सकते हैं.
- ख़राब जीवनशैली के चलते भी एप्ला सिंड्रोम का ख़तरा बढ़ सकता है.
क्या हैं लक्षण
डॉक्टर तान्या के अनुसार अगर किसी महिला को बार-बार गर्भपात हो रहा है तो इसकी एक वजह एप्ला सिंड्रोम हो सकती है. अगर शुरुआती स्तर पर ही इलाज शुरू हो जाए तो इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है.
वह कहती हैं, "दूसरे मामलों की बात करें तो आमतौर पर जिस अंग में ख़ून के थक्के जमते हैं समस्या उनमें दिखाई देती है. पैरों में थक्के जमने पर सूजन आ सकती है. कई बार किडनी फेलियर में पता चलता है कि थक्के जमने के कारण किडनी में दिक्क़त आई है. सिर में दौरा या आघात पड़ सकता है. दृष्टि में दिक्क़त हो सकती है और त्वचा पर रेशेज हो सकते हैं."
"अगर समय से इलाज ना हो तो थक्का एक से दूसरे अंग में भी हो सकता है. साथ ही किसी अंग को पूरी तरह निष्क्रिय भी कर सकता है. जैसे मां के गर्भ से फेफड़ों में पहुंचने पर बच्चे के साथ-साथ मां की जान को भी ख़तरा हो जाता है."
क्या इलाज है संभव
डॉक्टर के मुताबिक़ बहुत हद तक इसका इलाज हो सकता है. ऐसे में ख़ून को पतला करने के लिए दवाई दी जाती है. अगर पहले ही एप्ला सिंड्रोम होने का पता चल जाए तो इलाज के बाद महिलाएं सामान्य प्रसव से भी मां बन सकती हैं. हालांकि, ये बीमारी के स्तर और अन्य कॉम्पलिकेशन पर भी निर्भर करता है. किसी अन्य अंग में भी एप्ला सिंड्रोम होने पर उसे ठीक किया जा सकता है.
डॉक्टर तान्या ने बताया कि ये बीमारी अधिकतर युवा और मध्यम आयु वर्ग यानि 20 से 50 साल की उम्र के लोगों में होती है. ये एक दुर्लभ बीमारी है और पूरी दुनियाभर में एक लाख लोगों में से 40 से 50 लोगों को होती है. एप्ला सिंड्रोम का पता लगाने में इसकी जाँच करने का तरीक़ा बहुत मायने रखता है. ये तरीक़ा ठीक से पूरा ना हो पाने के चलते भी इस सिंड्रोम के मामले सामने नहीं आ पाते हैं.