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श्रीनगर का ये सिनेमा हॉल 28 साल से है बंद, उस दिन फिल्म लगी थी कुली

Special Coverage News
9 Aug 2019 6:23 AM GMT
श्रीनगर का ये सिनेमा हॉल 28 साल से है बंद, उस दिन फिल्म लगी थी कुली
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दिल्ली: बॉलीवुड और कश्मीर का का रिश्ता बहुत पुराना है. 1980 के दशक में कश्मीर में कुल 15 सिनेमा हॉल चल रहे थे जिसमें से 9 श्रीनगर में थे. 1989 के साल की गर्मियों की बात है जब अल्लाह टाइगर्स नाम के एक कट्टरपंथी गुट ने कश्मीर घाटी के सिनेमा हॉल्स को बंद करने की धमकियां दी थीं. आतंकवादियों ने सिनेमा को इस्लाम के खिलाफ करार दिया था. गौरतलब है कि भारत में लोग गंगा को पवित्र नदी मानते हैं, लेकिन फिल्म अभिनेता शम्मी कपूर के लिए डल झील गंगा नदी की तरह थी. उनको डल झील से इतनी मोहब्बत थी कि उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी अस्थियों का विसर्जन भी डल झील में ही किया गया था, लेकिन धीरे-धीरे आतंकवाद के राहू ने कश्मीर में फिल्मों पर ग्रहण लगा दिया. 28 सालों के दौरान आतंकवाद ने सिनेमा हॉल्स की भी बलि ले ली.

पहली बार एक जनवरी 1990 में वो दिन था जब कश्मीर में एक भी सिनेमा हॉल पर फिल्म नहीं लगी थी. श्रीनगर में स्थित पलेडियम सिनेमा कश्मीर के मुख्य सिनेमाघरों में से एक था. एक जमाना था जब राज कपूर, दिलीप कुमार और और राज कपूर जैसे अभिनेताओं की फिल्मों को देखने के लिए यहां कतारें लगी रहती थीं, लेकिन ये तस्वीरें अब बदल चुकी हैं. पलेडियम सिनेमा लाल चौक पर ही है, लेकिन आज लोगों को लाल चौक याद है प्लेडियम सिनेमा नहीं. इस सिनेमा हॉल में आखिरी फिल्म अमिताभ बच्चन की 'कुली' लगी थी. हालांकि कश्मीर में रूपहले पर्दे का रूप संवारने की कोशिशें हुईं, लेकिन लगातार आतंकवादी घटनाओं ने न फिल्में चली दी और न ही कश्मीर को फिल्मों का खूबसूरत किरदार बनने दिया, लेकिन धारा 370 के खत्म हो जाने के बाद उम्मीद है कि कश्मीर की कहानी फिल्मी पर्दे पर एक बार फिर खूबसूरती से बयान की जाएगी.

पीएम मोदी ने जताई उम्मीद

बता दें, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने संदेश में कश्मीर और सिनेमा के रिश्तों का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि कैसे आर्टिकल 370 और आतंकवाद ने इस रिश्ते में दरार डाली दी थी. पीएम मोदी ने उम्मीद जताई है कि अब कश्मीर एक बार फिर से फिल्मों की शूटिंग का अंतरराष्ट्रीय हब बन जाएगा. 1960, 70 और 80 के दशक तक कश्मीर सिनेमा के पर्दे पर भारत की पहचान बनकर छाया रहा. कश्मीर के शिकारों से मोहब्बत की जो दास्तां शुरू होती थी, वो देवदार के पेडों के बीच से होती हुई हिमालाय की ऊंचाइयां हासिल कर लेती थी. कहानियां फिल्मी होती थीं, लेकिन कश्मीर का किरदार अमर हो जाता था.

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