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- शून्य से शिखर की मेहनत...
शून्य से शिखर की मेहनत तुम क्या जानो करण बाबू !!
यदि आपने बरसों की साधना, कड़ी मेहनत, अटल धीरज और आर या पार का जोखिम उठाकर शून्य से किसी शिखर तक का सफर तय किया होता है तो फिर अचानक सामने नजर आ रही बर्बादी जानलेवा साबित हो ही जाती है। दिल्ली इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई करके फिर ऑल इंडिया लेवल पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले सुशांत सिंह राजपूत एक सामान्य परिवार में जन्मे थे। फिर भी इंजीनियरिंग की अपनी पढ़ाई के आखिरी सेमेस्टर में उन्होंने यू टर्न लेकर हीरो के पीछे नाचने वाले एक्स्ट्रा से नई पारी में उतरने का आर या पार का जोखिम उठाया था।
फिर बरसों की उनकी साधना, कड़ी मेहनत, अटल धीरज और आर-पार का जोखिम रंग लाया और वह नई पारी में ऐसे शिखर पर पहुंच गए, जहां बेशुमार लोग पहुंचने का सपना ही देखते-देखते अपनी जिंदगी गुजार देते हैं। फिर अचानक उनका संपर्क हुआ, अपने जन्म के साथ ही फ़िल्म जगत की हस्ती बन गए करण जौहर नाम के एक विलेन और उसके गैंग से। अपने फिल्मी परिवार के चलते फ़िल्म इंडस्ट्री को भी अपनी बपौती समझने वाले जौहर के अहम से हुआ सुशांत का टकराव उन्हें नेपोटिज़म की उस दुनिया में ले आया, जहां जाकर हर आउटसाइडर फिर वापस फ़िल्मी दुनिया में लौट नहीं पाता ।
जाहिर है, बरसों की साधना से शून्य से शिखर पर पहुंचकर भी इसी नेपोटिज़म का शिकार होकर अचानक चंद महीनों में ही उन्हें फिर अपने सामने शून्य दिखाई देने लगा। यह सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया। जबकि अपनी जान देकर हर संघर्ष से किनारा कर लेने की बजाय, जहां से वह आये थे, यानी शून्य, वहां फिर से पहुंच जाने से खुद को बचाने के लिए उन्हें खुल कर अपने शत्रुओं से जंग के लिए रणभूमि में उतरने की जरूरत थी। बिल्कुल उसी तरह, जैसे कंगना रनौत पिछले कुछ बरसों से कर ही रही हैं।
ज्यादा से ज्यादा क्या होता, अगर इस जंग से उन्हें कुछ हासिल न भी होता तो? वैसे भी वह बिना लड़े ही सब कुछ गंवाने की कगार पर खड़े ही थे। मेरा खुद का अनुभव तो मुझे यही सिखाता है कि बर्बादी की कगार पर खड़े होने के बाद फिर दुनिया की किसी ताकत से डरना नहीं चाहिए। हारे हुए इंसान के पास खोने को होता ही क्या है, जो वह किसी से डरे।
अभी तीन- चार बरस पहले ही मुझे भी एक अलग ही तरह के नेपोटिज़म ने बर्बादी की कगार पर पहुंचा दिया था। मेरा भूतपूर्व बिज़नेस पार्टनर, जो बीजेपी के एक भूतपूर्व नेता का लड़का था, उसने दोस्ती में मुझसे दगा करके मुझे लंबे अरसे तक धोखा देकर ऐसे मोड़ पर ला दिया था, जहां से मुझे खुद आत्महत्या तक के विचार आने लगे थे। उसी दौर में उसने अपने राजनीतिक परिवेश का फायदा उठाकर मेरे सामने लगभग हर रास्ता बंद करवा दिया था। मुझे जो प्रोजेक्ट करना था, वह फ़ाइल भी अपने एक परिचित अफसर के माध्यम से उसने बरसों दबवाये रखी।
मेरे सामने या साथ में कोई नजर नहीं आता था, जो मुझे उबारने में मेरी मदद कर सके। बस एक ईश्वर का सहारा था मेरे पास और वही मेरा सबसे मजबूत सहारा भी था। महीनों या शायद साल-डेढ़ साल तक जबरदस्त डिप्रेशन से गुजरने और आत्महत्या के लिये अपने मन में आते विचारों को ईश्वर की प्रार्थना और कृपा से पूरी तरह से हटाने के बाद मैंने तय किया कि अब मैं अपने सामने आने वाली हर मुसीबत से लड़ूंगा, उससे निकलने की कोशिश करूंगा। फिर भी अगर बर्बाद हुआ तो उन सभी को मार डालूंगा और उनकी जड़ तक खोद कर मिटा दूंगा, जिन्हें मैं अपनी तबाही के लिए थोड़ा भी जिम्मेदार मानूंगा। फिर चाहे मुझे इसके लिए देश का सबसे खूंखार अपराधी बनकर जेल ही क्यों न जाना पड़े।
यानी अपनी जान देने से बेहतर मुझे उन दुश्मनों पर कहर बनकर जेल जाना या फांसी पर चढ़ना मंजूर था, जिन्होंने मुझे बर्बाद किया था। लेकिन कोई भी गैरकानूनी कदम उठाने से पहले मैंने यह भी तय किया था कि मैं खुद को बर्बाद होने से बचाने की भी पूरी कोशिश करूंगा। फिलहाल मेरा वह संघर्ष काफी हद तक रंग ले भी आया और मैंने जल्द ही वापस अपने पैर जमाकर हालात को उलट दिया।
हालांकि मेरे शत्रु अभी भी घात में हैं क्योंकि उन्हें शायद मेरे इस इरादे का ज़रा भी अदांजा नहीं है कि अगर वह मुझे बर्बाद कर लेने को अपनी जीत मानेंगे तो वह चंद दिनों से भी कम तक ही उस जीत की खुशियां मना पाएंगे। जाहिर है, उन्हें अंदाजा होता या वे इस पर यकीन करते तो मेरी बर्बादी नहीं बल्कि मेरी कामयाबी की कोशिश में जुट जाते।
बहरहाल, सुशांत ने खुद को बर्बाद कर देने वाले अपने दुश्मनों का समूल विनाश करने की बजाय खुद की जान लेकर उस नेपोटिज़म को खाद पानी ही दे दिया है, जिसका शिकार भविष्य में कौन होने वाला है, यह कोई नहीं जानता। मगर यह फ़िल्म इंडस्ट्री में अगर इसी तरह बना रहा तो जल्द ही कोई भी आउटसाइडर अभिनेता/अभिनेत्री को फिर एक बार अपनी जान से हाथ धोना पड़ सकता है...