लाइफ स्टाइल

रिया से अपेक्षा क्यों ? जो लडकी बिन ब्याही पत्नी की तरह रहना स्वीकार करे उससे चारित्रिक उम्मीद क्यों ?

Shiv Kumar Mishra
28 Aug 2020 10:23 AM IST
रिया से अपेक्षा क्यों ? जो लडकी बिन ब्याही पत्नी की तरह रहना स्वीकार करे उससे चारित्रिक उम्मीद क्यों ?
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सिर्फ एक फोन कि " पापा मै परेशान हूँ " न केवल सुशान्त की जिंदगी बचा सकता था बल्कि उन्हें उन तमाम परेशानियों से निजात दिला सकता था जिसकी वजह से उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी या उनकी हत्या हुई।

जब आप परेशानी में होते है तो इस दुनिया मे सिर्फ एक बाप ही ऐसा होता है जो चाहे कितना भी अक्षम क्यो न हो अपने बेटे की सुरक्षा के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा सकता है। पर सुशान्त के पिता के पास अपने बेटे का फोन नम्बर नही था। मतलब साफ है सुशान्त बाप की खैरियत के लिए कभी फिक्रमंद नही थे अलबत्ता बाप जरूर अपने बेटे की खैरियत के लिए फिक्रमंद था इस लिए वो रिया को व्हाट्सप मैसेज भेज कर बेटे से एक बार बात कराने की गुहार लगाता था। बेटे का बाप के प्रति इतना गैरजिम्मेदाराना रवैया उनके जहनियत को दर्शाने के लिए काफी है। परेशानियों के पल में मन का यही चोर उन्हें बाप से सम्पर्क करने और अपनी व्यथा बताने से रोक रहा होगा।

रिया एक बुरी लड़की है यह न मानने का कोई कारण नही है पर रिया से अपेक्षा ही क्यो ? जो लड़की बिना शादी ब्याह के पत्नी की तरह रहना स्वीकार करे उससे चारित्रिक उम्मीद ही क्यो ? हमारा भारतीय समाज जिस नजर से ऐसे सम्बन्धो को देखता है उससे अलग रिया और सुशान्त के सम्बन्धो को क्यो देखा जाना चाहिए ? पर ऐसे सम्बन्ध के लिए केवल रिया ही जिम्मेदार क्यो ? सुशांत क्यो नही। अगर एक लड़की आपके पैसे की चमक दमक के आगे बिन ब्याही बीबी बन कर रहने को तैयार है तो यह स्वाभाविक है कि वो आप के पैसे को ही प्राथमिकता देगी जो रिया ने दिया।

चलो माना कि रिया ने आप को ड्रग्स दिया और आप की आदत लगा दी पर जब आप को पता चला यब आप ने क्या किया ? जब आप के एकाउंट से करोड़ो रूपये निकल रहे थे तब आप ने क्या किया ?कोई अरबपति परिवार से तो आप हो नही। साधारण मध्यम वर्गीय परिवार से आप हो और कमाने सफल होने मुम्बई गए हो। इतने पैसे जब एकाउंट से निकल रहे थे तब सतर्क क्यो नही हुए ?

चलिए यह भी मान लेते है कि आप साजिश के शिकार हो गए थे और जब तक आप को पता चला तब तक आप लूट चुके थे ,बर्बाद हो चुके थे पर आप के एकाउंट में फिर भी इतने पैसे थे जितने जीवन भर में कमाने के लिए आज का युवा सपना देखता है। सब छोड़ कर बिहार की ट्रेन क्यो नही पकड़ लिए। पर पकड़ते कैसे यदि सफलता के समय बाप को इग्नोर किया तो अब शर्म तो आनी ही थी। नतीजा सारा समुंदर सामने था पर पीने को एक बूंद पानी न था। जिनको सबकुछ माना वो समुंदर के पानी की तरह खारे हो गए थे और जिन रिश्तों की डोर की मिठास जिंदगी बचा सकती थी उसे खुद ही सुशान्त ने दूर किया था। बहन जीजा भांजी रिश्तेदार बचपन के मित्र कोई तो ऐसा होना था न जो ऐसे समय मे आप की व्यथा का राजदार बन उसका हल ढूंढे मगर माया नगरी में मिली सफलता ने सुशांत का दिमाग खराब कर दिया था। रिया जैसी लड़की, ड्रग्स और वालीवुड की रंगीन जिंदगी में डूबे सुशांत का अपने घर परिवार और बूढ़े पिता को हासिये पर डालना ही उन्हें एक ऐसे चक्रव्यूह तक ले गया जहां उन्हें ऐसी मौत मिली जिसके हकदार वो शायद नही थे ...

इसी लिए कहा है सफल होना और सफलता को पचाना दोअलग -अलग बातें है। सुशांत सफल तो हुए पर सफलता पचा नही पाए और अपनो का अपनापन बचा नही पाए इस लिए जब परेशानियों से घिरे तो अकेले थे...

इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि अपनो की कद्र कीजिये और अपनो की परिभाषा माँ बाप से शुरू होती है।

(साभार आलोक भैया जी)

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