लाइफ स्टाइल

मुंबई में क्यों न हुए सौमित्र ?

suresh jangir
21 Nov 2020 9:42 AM IST
मुंबई में क्यों न हुए सौमित्र ?
x

अपनी फिल्म रचना के संसार का उल्लेख करते हुए सौमित्र चटर्जी के बारे में महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे लिखते हैं "वह 'अच्छा' अभिनेता है या नहीं क्या पता, लेकिन वह इतना 'बड़ा' अभिनेता है कि मैं उसे अपनी फिल्मों में लेने से ख़ुद को रोक नहीं पाता हूँ । इतना ही नहीं, मेरी ज़्यादातर फिल्मों में, स्क्रिप्ट गढ़ते वक़्त ही वह न जाने कहाँ से आकर मेरे मस्तिष्क पर अपना अधिकार जमा लेता है और फिर मुझे संवाद और फ़्रेम अपने हिसाब से तराशने को मजबूर करता है।"

सौमित्र चटर्जी ने सत्यजीत रे की 14 फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई। एक महान निर्देशक के साथ एक महान अभिनेता की इतनी लम्बी जुगलबंदी का इतिहास दुनिया के किसी फ़िल्म संसार में देखने को नहीं मिलता। आप हिंदी पाठक और हिंदी दर्शकों के लिए दुनिया भर में फैले ऐसे बँगला दर्शक वृंद की कल्पना कर पाना नामुमकिन है जिनके सपनों के एक छोर पर 'अपुर संसार' का अप्पू बैठा हो तो दूसरे छोर पर 'फालु दा' श्रंखला का फालु दा। 60 वर्ष के सक्रिय अभिनय संसार वाले सौमित्र चटर्जी अपनी 85 वर्ष की आयु के अंतिम महीने (1 अक्टूबर 2020) तक स्टूडिओ में शॉट देते रहे। उनके जाने के बाद अभी उनकी कई सारी फ़िल्में रिलीज़ हो ने वाली हैं (जो अधूरी रह जाएँगी, उनकी बात दरकिनार।)

क्या आप हिंदी फिल्मों के ऐसे किसी हीरो का नाम ले सकते हैं जो जितना बड़ा कमर्शियल सिनेमा का सुपर स्टार हो उतना ही बड़ा कला फ़िल्मों का भी? क्या आप अपनी फ़िल्म इंडस्ट्री में किसी ऐसे सुपर स्टार को याद कर सकते हैं जो उतना ही बड़ा कवि भी हो? मीनाकुमारी की शायरी का गाहे-बगाहे ज़िक्र होता है लेकिन वह स्वतंत्र शायरा के रूप में अपनी पहचान न बना सकीं। फिर आप मुंबई फ़िल्म संसार में ऐसे किसी महान अभिनेता को ढूंढ सकते हैं जो चित्रकार भी महान हो? या जो इन सारी महानताओं के साथ-साथ एक शानदार सामाजिक कार्यकर्ता भी हो?

आप हिंदी फ़िल्मों के ऐसे सुपर स्टार की कल्पना कैसे कर पाएंगे जो आए दिन साईकिल पर झोला लटकाए अपनी कॉलोनी के बाजार में सब्ज़ियां खरीदता दीखता हो और कोई सामने आकर खड़ा हो जाए तो मुस्करा कर ऑटोग्राफ भी दे देता हो। शर्मीला टैगोर (जो उनकी अनेक फिल्मों की हीरोइन रही हैं) ने बताया कि उनकी सादगी पर सुचित्रा सेन ने उनसे कहा कि स्टार को अपना एक 'स्टारडम' बना कर रखना चाहिए तभी वह हिट बना रहता है। सौमित्र अपने जीते जी तो 'हिट' बने ही रहे, मरने के बाद भी जिस तरह बीते रविवार ए टू ज़ेड कोलकाता उनकी शवयात्रा में उमड़ पड़ा , वह उनके मृत्यु पर्यन्त 'हिट' बने रहने की पहचान है।

दादा साहब पुरस्कार से सुशोभित और 300 से अधिक बँगला फ़िल्मों के सुपर स्टार सौमित्र चटर्जी के बारे में अब, जब आपने सोचना शुरू कर ही दिया है तो यह भी सोचिए कि हिंदी फ़िल्मों की नगरी मैं कोई ऐसा पूत क्यों नहीं पैदा होता? क्या मुंबई की मिटटी में कोई दोष है? नहीं। दोष मिटटी का नहीं। दरअसल मुंबई फ़िल्म संसार, रचनाओं का 'मछली बाजार' बन चुका है। सृजनात्मकता यहां इस हद तक व्यापारीकृत हो चुकी है कि कलात्मक संरचनाओं और मानवीय संवेदनाओं की गुंजाइशें बहुत सिकुड़ गई हैं। सौमित्र चटर्जी मुंबई में इसीलिए जन्म नहीं ले सकते।

- 'नए समीकरण'( 18 नवम्बर) में प्रकाशित मेरा आलेख

Next Story