
गुजरात चुनाव का सच, पाटीदार, OBC, दलित, आदिवासी और सवर्ण में सिमटा है चुनाव

विजय विद्रोही की कलम से
गुजरात में भले ही विकास बनाम वंशवाद के नाम पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही हो, भले ही कांग्रेस विकास को गंदा बता 22 साल की बीजेपी सरकार की एंटीइन्कम्बैसी को चुनावी हथियार बना रही हो लेकिन सच तो यही है कि गुजरात इस बार बिहार की राह पर है. पूरा चुनाव जातियों के इर्द गिर्द सिमट कर रह गया है. यही वजह है कि दोनों प्रमुख दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा करने से पहले एक दूसरे के उम्मीदवारों की जात देखते रहे.
दूसरे चरण के लिए तो नाम दाखिल करने के आखिरी दिन उम्मीदवारों के नाम तय किए गये. इसी से साफ हो जाता है कि गुजरात में इस बार टिकट वितरण में जातिवाद किस तरह हावी रहा है. कुल मिलाकर बीजेपी और कांग्रेस ने पाटीदार और ओबीसी वोटबैंक पर अपना दांव लगाया है. गुजरात में चालीस फीसद ओबीसी और 15 प्रतिशत पाटीदार है. इनका जोड़ 55 प्रतिशत बैठता है. हैरानी की बात है कि दोनों दलों ने करीब करीब 55 फीसद सीटें ही पाटीदार और ओबीसी को दी है. अब यह संयोग की बात है या जातिवादी समीकरणों को साधने की रणनीति.