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गुजरात में लगेगा मोदी का सिक्सर? और राहुल होंगे क्रीज के बाहर, जानिए कैसे!

गुजरात में लगेगा मोदी का सिक्सर? और राहुल होंगे क्रीज के बाहर, जानिए कैसे!
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गुजरात चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है वैसे वैसे सस्पेंस बढ़ता जा रहा है. एबीपी न्यूज-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक बीजेपी की जीत पक्की है, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत-हार का फासला घटता जा रहा है. 3 महीने पहले के सर्वे में 30 फीसदी का फासला था, वो अब सिर्फ 6 फीसदी रह गया है. वोटों के फासले की रफ्तार देखें तो लगता है कि चुनाव आते आते कांटे की टक्कर हो सकती है, जबकि दोनों पार्टियों के उम्मीदवार की घोषणा और चुनावी घोषणा पत्र जारी नहीं हुए हैं. ये भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री का जब तूफानी चुनाव प्रचार शुरू होगा तो राजनीतिक हवा बीजेपी के पक्ष में बदल सकती है. ये भी सच है कि मोदी के करिश्मे को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

दरअसल देश में नरेन्द्र मोदी की राजनीति को समझना एक पहेली ही है, क्योंकि वो हर खेल में एक नई चाल चलते हैं, जिसकी चक्करघिन्नी में राजनीतिक विश्लेषक से लेकर नेता तक चकरा जाते हैं. उनके बारे में कहा जाता है कि वे राजनीतिक खतरों के खिलाड़ी हैं यानि बाजी पलटने की ताकत रखते हैं. यही वजह है कि हर बार अपनी ही पुरानी लकीर पर नई लकीर खींचकर मुश्किल से मुश्किल चक्रव्यूह को भेद देते हैं.

फिलहाल सर्वे के मुताबिक बीजेपी को 113 से 121 सीटें मिलने का अनुमान है वहीं कांग्रेस को 58 से 60 सीटें मिल सकती हैं, जबकि महज तीन महीने पहले कांग्रेस को सिर्फ 26 से 32 सीट मिलने की संभावना थी. सर्वे की खास बात ये भी है कि कांग्रेस बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है. तेजी से इसीलिए बढ़ रही है क्योंकि मोदी पहली बार राज्य की राजनीति से दूर हैं, राज्य सरकार के खिलाफ भी नाराजगी है वहीं हार्दिक पटेल की वजह से पाटीदार वोटरों में सेंध लगने की भी आशंका है और जीएसटी से भी व्यापारी वर्ग नाराज चल रहे हैं. सच ये भी है कि हर चुनाव में मोदी की जीत पर सवाल उठते हैं फिर भी जीत उन्हीं की हो जाती है.
सर्वे के ट्रेंड से फिर सवाल खड़ा हो गया है कि क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी गुजरात में सिक्सर लगा पाएगी. 1995 से बीजेपी लगातार गुजरात में पांच बार चुनाव जीत चुकी है और अब देखा जा रहा है कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच फासला कम होता जा रहा है. ऐसे में बीजेपी का सारा दारोमदार मोदी पर ही है और सबकी जुबां पर यही जवाब है उनके चुनावी रंग में रंगने पर सारे सवालों पर विराम लग सकते हैं. नरेन्द्र मोदी के होते गुजरात कांग्रेस की झोली में चला जाए ये बात न तो बीजेपी पचा पा रही है और न ही मोदी को जानने वाले और समझने वाले इसे पचा पा रहे हैं. कहा जा रहा रहा कि प्रधानमंत्री गुजरात में एड़ी चोटी की मेहनत करने वाले हैं और ऐसी खबर आ रही है कि वो गुजरात चुनाव में 50 रैलियां या रोड शो कर सकते हैं.

क्या है मोदी की मजबूती
नरेन्द्र मोदी की चाल को समझना मुश्किल नहीं है बल्कि नामुमकिन है. खासकर उनपर जब सवाल उठते हैं और उन्हें कम आंका जाता है, तब खासकर वो मजूबत होकर उभरते हैं. खासियत ये है हर एक रणनीति के बाद वे अपनी छवि और चाल बदल लेते हैं, जिसकी भनक शायद पहले किसी को नहीं लगती है. गुजरात दंगे के बाद उनपर सवालों की बौछार लग गई थी, लेकिन वो अपनी छवि बदलकर विकास पुरूष बन गए और फिर निर्णायक नेता बन गए. तभी तो एक अदना से राज्य के मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री बन बैठे, जबकि 2002 के विधानसभा चुनाव में उनका राजनीतिक भविष्य खत्म होने की भविष्यवाणी की गई थी. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनके तीन फैसले याद करने वाले हैं. ये अलग बात ये है कि उन फैसलों की निंदा भी हो रही है, लेकिन ये फैसले सबके बूते की बात नहीं थी. पहला, आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राईक, दूसरा, काले धन पर लगाम लगाने के लिए नोटबंदी और तीसरा, एक देश और एक टैक्स के तहत जीएसटी का फैसला. जाहिर है कि इतने बड़े फैसले में निंदा भी होगी और लोगों को परेशानियों का सामना भी करना पड़ेगा, लेकिन इसके दूरगामी प्रभाव क्या होंगे इसके लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा.
अब सवाल उठता है कि ऐसे निर्णायक नेता को क्या गुजरात में हराया जा सकता है. जरूर हराया जा सकता है, लेकिन वो कभी हारने की कोशिश नहीं करेंगे क्योंकि सबसे पहली बात ये है कि गुजरात इकलौता राज्य है जहां पर बीजेपी सबसे ज्यादा जीतने का रिकॉर्ड बना चुकी है. दूसरी बड़ी बात ये है कि मोदी तन मन से चुनाव लड़ते हैं और चुनाव के लिए सूक्ष्म रणनीति बनाते हैं और उसे हासिल करने के लिए खुद को झोंक देते हैं. यही वजह है कि जोश, जुनून, जज्बे और मेहनत में कभी कोताही नहीं बरतते हैं. कहा जाता है कि गुजरात हमेशा सेंटर टू राईट रहा है, जिसकी वजह से बीजेपी को गुजरात में फलने फूलने का मौका मिला. गुजरात के लोग और व्यापारी स्थिर सरकार पसंद करते हैं. सरकार तभी बदलती है जब राज्य में राजनीतिक भूकंप आता है.

क्या है मोदी की रणनीति?
बीजेपी और नरेन्द्र मोदी को मालूम है कि हार्दिक पटेल की वजह से कुछ पाटीदार वोटर बीजेपी से बिदक गए हैं और जीएसटी की वजह से व्यापारी वर्ग नाराज है. अब बीजेपी की कोशिश है कि पाटीदार के प्रभाव को कम किया जाए. इस पर बीजेपी काम शुरू कर चुकी है. हार्दिक पटेल की कोर कमिटी में करीब 14 सदस्य थे, जिसमें से करीब 10 को बीजेपी तोड़ चुकी है. ये अलग बात है कि हार्दिक पटेल फिर नई कमिटी बना लेते हैं. पाटीदार जाति में मोदी और बीजेपी का भी खास प्रभाव है क्योंकि पाटीदार जाति पहले से ही आरएसएस और बीजेपी से जुड़ी हुई है.
बीजेपी की कोशिश ये भी है कि आरक्षण के मुद्दे पर हार्दिक पटेल कांग्रेस के समर्थन में खुल कर आते हैं, तो पाटीदार जाति को बताने में ये आसानी होगी कि पहले से हार्दिक की कांग्रेस से सांठगांठ थी क्योंकि कांग्रेस की तरफ से पुख्ता तौर पर पाटीदार को ओबीसी में शामिल करने का आश्वासन नहीं मिला है. पाटीदार ही नहीं बल्कि जीएसटी से नाराज चल रहे व्यापारी वर्ग को भी मनाना है. यही वजह है कि नरेन्द्र मोदी सरकार करीब एक महीने में ही जीएसटी की दरों में दो बार बदलाव कर चुकी है. इस दो फ्रंट पर अगर बीजेपी नुकसान को कम करने में सफल हो जाती है तो उनके पास सफलता गिनाने के लिए पिटारा भरा हुआ है. अब सवाल यही है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात की राजनीति की फिजा को बदलने में कितने कामयाब होते हैं.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह राजनीतिक-चुनाव विश्लेषक हैं और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं.
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