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महिला कांस्टेबल पर कथित हमले को लेकर असम की बारपेटा की अदालत ने गुजरात के विधायक व दलित नेता जिग्नेश मेवाणी (Jignesh Mewani) को जमानत दे दी। अदालत ने जिग्नेश को इस मामले में फंसाने की कोशिश करने के लिए राज्य पुलिस (Assam Police) कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अगर पुलिस की मनमानी नहीं रोकी गई तो हमारा राज्य एक पुलिस स्टेट बन जाएगा।
जिग्नेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर ट्वीट करने के मामले में एक अन्य अदालत से जमानत मिली ही थी कि ठीक दूसरे दिन महिला कांस्टेबल पर कथित हमले को लेकर 25 अप्रैल को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। अदालत ने यह टिप्पणी महिला कांस्टेबल पर कथित हमले के मामले को लेकर की।
अदालत ने मेवाणी को जमानत देने के अपने आदेश में गुवाहाटी हाईकोर्ट से राज्य में हाल ही में पुलिस की ज्यादतियों के खिलाफ दायर एक याचिका पर विचार करने का अनुरोध किया और कहा कि वह असम पुलिस को बॉडी कैमरा पहनने और अपने वाहनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दें ताकि किसी भी आरोपी को हिरासत में लिए जाने पर घटनाओं को कैद किया जा सके।
जस्टिस अपरेश चक्रवर्ती ने अपने आदेश में कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज महिला के बयान के मद्देनजर अगर तत्काल मामले को सच मान लिया जाए, जो सच नहीं है, तो हमें देश के आपराधिक न्यायशास्त्र को फिर से लिखना होगा। अदालत ने कहा कि महिला ने एफआईआर में कुछ और कहा है और मजिस्ट्रेट के सामने एक अलग कहानी बताई है। महिला की गवाही को देखते हुए लग रहा है कि जिग्नेश मेवाणी को हिरासत में रखने के उद्देश्य से तत्काल मामला बनाया गया है।
अदालत ने यह भी कहा कि पुलिसकर्मियों की ओर से ऐसे आरोपियों को गोली मारकर हत्या करने या उन्हें घायल करने के मामले राज्य में नियमित बन गए हैं। हाईकोर्ट असम पुलिस को कुछ उपाय करके खुद को सुधारने का निर्देश देने पर विचार कर सकता है।
वहीं रिहा होने के बाद मेवाणी ने कहा कि असम में भाजपा सत्ता में है। पीएम मोदी के खिलाफ ट्वीट पर उनकी गिरफ्तारी और महिला कांस्टेबल पर कथित हमले के मामले के पीछे सत्ताधारी पार्टी का हाथ है। भाजपा ने एक महिला का उपयोग करके उनके खिलाफ कहानी गढ़ी जो कायरतापूर्ण काम किया है।