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सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे को ‘रूटीन’ प्रक्रिया के तहत सुनवाई से हटा दिया
गुजरात के जाने माने सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे को 'रूटीन' प्रक्रिया के तहत सुनवाई से हटा दिया गया है. उन्होंने तीन महीने पहले इस मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी. तीन सप्ताह से वह इस मामले पर रोज सुनवाई कर रही थीं. उनकी जगह जस्टिस एन.डब्ल्यू. साम्बरे को यह मामला सौंपा गया है.
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 24 जनवरी को वेबसाइट पर डाली गई नोटिस के अनुसार जस्टिस रेवती अब अग्रिम जमानत के आवेदनों से जुड़े मामलों देखेंगी, जबकि उनकी जगह जस्टिस साम्बरे सभी आपराधिक संशोधन के आवेदनों पर गौर करेंगे. पिछले सप्ताह (21 फरवरी) को जस्टिस रेवती ने सीबीआई को लताड़ लगाते हुए कहा था कि जांच एजंसी अदालत की पर्याप्त सहायता नहीं कर पा रही है. जस्टिस रेवती ने यह भी कहा था कि सीबीआई इस मामले में आरोप-मुक्त किए गए लोगों के खिलाफ सभी सबूतों को रिकॉर्ड में रखने में नाकाम रही.
जज रेवती मोहिते-डेरे ने कहा था, "आरोप लगाने वाली एजंसी का पहला कर्त्तव्य है कि वह अदालत के सामने सभी सबूत रखे, लेकिन इस मामले में अदालत की ओर से कई बार पूछे जाने के बावजूद सीबीआई ने केवल उन्हीं दो अधिकारियों की भूमिका पर जिरह की, जिन्हें दोष-मुक्त करने को उसने चुनौती दी है." यह मामला नवंबर, 2005 का है जब गुजरात पुलिस ने कथित फर्जी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन व उनकी पत्नी कौसर बी को मार गिराया गया था.
सोहराबुद्दीन मामले की दैनिक सुनवाई 9 फरवरी से शुरू हुई थी. इसके बाद जब भी अदालत ने आरोप-पत्र, गवाहों के बयान, मामले से संबधित पत्र मांगे, तब-तब सीबीआई ने यही कहा कि उनके पास यह कागजात नहीं हैं. सीबीआई की ओर से बार-बार दस्तावेज जुटाने को अदालत से वक्त मांगा गया.
सोहराबुद्दीन के एक सहयोगी तुलसीराम प्रजापति को गुजरात-राजस्थान पुलिस ने दिसंबर 2006 में एक अन्य कथित फर्जी मुठभेड़ में मार गिराया गया था. मुंबई की विशेष सीबीआई दालत ने अगस्त 2016 से सितंबर 2017 के बीच 15 आरोपियों को आरोप-मुक्त कर दिया था. इनमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, वरिष्ठ आईपीएस डीजी वंजारा, राजकुमार पांडियान का नाम शामिल है.
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