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#Biparjoy के दौरान गुजरात में नहीं हुई एक भी “casualty” वहीँ 707 "safe deliveries हुई "
Nirnay Kapoor
#Biparjoy की त्रासदी को हैंडल करने के बाद अब भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडल के अनुभव और कार्यकुशलता को लेकर कम से कम अब किसी प्रकार का सवाल नहीं उठाएगा.. क्योंकि जिस तरह से मौजूदा सरकार द्वारा इस आपदा को मैनेज किया गया उसने सभी आलोचकों के मुँह पर ताले लगा दिए हैं..हर क्षेत्र में flawless planing चाहे वो चक्रवात से पहले की तैयारी ही या फिर चक्रवात के बाद का आपदा प्रबंधन हो
17 जून 2023 को मेरे प्रोफेशनल कैरियर के भी 27 साल पुरे हुए हैं और इस दौरान 1998 में कांडला में आये तूफान या फिर 2001 में कच्छ में आये भूकंप से लेकर 2021 में सौराष्ट्र में आये ताउते चक्रवात तक सभी कुदरती आपदाओं को मैं कवर कर चूका हूँ इसिलए जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ इतना अच्छा कोऑर्डिनेशन और रिसोर्स मोबिलाइजेशन पहले कभी नहीं देखा..
1 लाख से ज्यादा लोगों का महज़ 72 घंटों में सुरक्षित स्थानों पर शिफ्टिंग अपने आप में एक चैलेंजिंग टास्क था पर पहली बार मैंने प्रभावित क्षेत्रों में कहीं पर भी लोगों द्वारा शिफ्ट किये जाने को लेकर विरोध होते नहीं देखा शायद इसके पीछे सबसे बड़ी वजह थी प्रशासन द्वारा इफेक्टीफ कम्युनिकेशन वो इसलिए क्योंकि मंत्री खुद गाड़ियां लेकर लोगों के पास पहुँचते दिखे? आपदा के बाद भी रिस्टोरेशन के काम में जिस स्पीड से काम हो रहा है वो अपने आप में अकल्पनीय है, मुझे याद है ताउते के वक्त कई इलाकों में बिजली दोबारा रिस्टोर करने में तीन तीन हफ्ते लग गए थे..
लेकिन इस बार महज़ तीन दिनों में यानी सोमवार तक कच्छ जैसे विशाल ज़िले ने बिजली रिस्टोर कर ली जाएगी ( कल जब मैं कच्छ से निकला तब तक कुछ तालुकों में बिजली आनी शुरू भी हो गयी थी).. करीब 5 हज़ार से ज्यादा पेड़ गिरे पर 17 तारीख सुबह तक एक आधी सड़क को छोड़ कर सभी चक्रवात प्रभावित जिलों में हर रस्ते पर यातायात शुरू हो गया था..
तूफान से पहले पूरा मैपिंग इस प्रकार से किया गया था की सबसे जरुरतमंद लोगों तक मदद सबसे पहले पहुंचे.. पहली बार देखा की प्रभावित जिलों ने 1152 प्रेग्नेंट महिलाओं को हॉस्पिटल्स में शिफ्ट कर दिया गया जिनमे से 707 महिलाओं की #landfall के दौरान पूरी सावधानी से डिलीवरी हुई...
11 जून से ही मंत्रियों को जिले एलॉट कर दिए गए और रात होते होते मंत्री अपने जिलों में पहुँच भी गए.. उसी रात पता चला के हर्ष संघवी रात 2 बजे खंभालिया में रिव्यू मीटिंग कर रहे हैं, मैंने 3 बजे हर्ष संघवी को फोन किया तो उन्होंने बताया की जिला प्रशासन ने करीब 300 प्रेग्नेंट महिलाओं को सबसे पहले शिफ्ट करने का प्लान बनाया है और बैक-अप पावर के अलावा हॉस्पिटल की बिजली के रिस्टोरेशन को प्राथमिकता दी जाएगी..
वहीँ कच्छ में मोर्चा संभाला ऋषिकेश पटेल ने जो हर 4-5 घंटे में सिचुएशन को रिव्यू करते हुए प्लान रिवाइस कर रहे थे जिस वजह से कच्छ में. समुद्र तट से 5 किलोमीटर तक सभी गाँवों को खली करवा लिया गया ... इसीलिए कच्छ में तूफान के बाद किसी रेस्क्यू ऑपरेशन की जरुरत नहीं पड़ी और सारी रेस्क्यू एजेंसीज़ रोड क्लियरेंस में लग गयी.. उधर मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से लगातार संपर्क में रहकर प्रधामंत्री मोदी स्थिति पर नज़र रखे हुए थे और अपने सुझाव दे रहे थे.. साफ़ दिख रहा था की मोदी द्वारा स्थापित प्रोटोकॉल्स को सही पर्पस के साथ इम्प्लीमेंट किया जा रहा है जिसमे सरकारी तंत्र के अलावा गैरसरकाती संस्थाओं और सामाजिक तथा औद्योगिक संस्थाओं का रोल भी पूरी तरह डिफाइन था... मोदी ने केंद्र से दो मंत्रियों मनसुख मंडाविया और परषोत्तम रूपला को भी सबसे जयदा प्रभावित होने वाले जिलों में 72 घंटे पहले ही भेज दिया और दिल्ली में मॉनिटटिंग की बाग़डोर गृहमंत्री अमित शाह को सौंप दी ( ये वो टीम है जो दो दशकों से भी ज्यादा समय से मोदी के साथ संगठन और प्रशासनिक स्तर पर काम कर रही है) इस टीम का अनुभव और राज्य की नयी टीम का कमिटमेंट तथा डेडिकेशन एक प्रभावी कॉम्बिनेशन साबित हुआ...
यहाँ एक बात जरूर मेंशन करना जरुरी है कि ऑक्टोवर 2001 में मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री बने तब गुजरात और खासतौर पर कच्छ भूकंप के त्रासदी से उबर रहा था .. सत्ता सभालते ही उन्होंने अधिकारीयों से बताया की तीन महीने में उन्हें कच्छ में विज़िबल चेंज चाहिए इसके लिए उन्होंने हर वीकेंड पर गांधीनगर से अधिकारीयों को कच्छ के हर गाँव में भेजना शुरू किया, और सोमवार को उन्हें प्रोग्रेस रिपोर्ट देनी होती थी... इसका परिणाम ये हुआ की इम्पोर्टेंट पॉलिसी इशू भी स्पॉट पर ही सॉल्व होने लगे और रिहैबिलिटेशन के काम में इतनी तेज़ी आयी की जब हम भूकंप की एनिवर्सरी कवर करने भुज पहुंचे तो भुज की तस्वीर बदल चुकी थी ... Rest is हिस्ट्री
मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी यहीं नहीं रुके उन्होंने आपदाओं को हैंडल करने का नजरिया ही बदल कर रख दिया..उन्होंने disaster management की बजाय distastar mitigation की अप्रोच पर ज़ोर दिया और गुजरात ने देश में सबसे पहले disaster nanagement authority की रचना की.. यानी बेंचमार्क पहले से तैयार थे बस उन्हें इफेक्टिवली इम्प्लीमेंट करना था और भूपेंद्र पटेल सरकार ने वही किया रूलबुक को सही तरह फॉलो किया और तंत्र की जिम्मेदारी फिक्स कर दी.. रिसोर्सेज़ की भी कोई कमी नहीं रहने दी .. एक सबसे इंट्रेस्टिंग बात ये लगी की नरेंद्र मोदी के समय पर जिस तरह से उनके मंत्री ऐक्शन में दिखते थे वैसा ही नज़ारा कुछ इस बार भी देखने को मिला.. ऐसा लगा ही नहीं
के ये डेढ़ साल पुरानी अनुभवहीन सरकार के मंत्री हैं... (अधिकार और कर्मचारी तो पहले भी वही थे)
#Biparjoy की चर्चा इसलिए क्योंकि इस बार सारे प्रोटोकॉल यूज़ में दिखे, अगर 25 साल का इतिहास देखें तो इसमें भी एक विज़िबल चेंज देखने को मिलेगा
1998 में कांडला में आये चक्रवात में हज़ारों जाने गयीं थी
2021 में ताउते में भी गुजरात में 64 सहित 169 जाने गयीं थी
और इस बार मिशन थे Zero casualty जो की सफल रहा
गौरतलब है सितंबर 2021 में जब पहली बार MLA बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात की कमान सौंपी गयी तब तब गुजरात के राजनितिक हलकों में उनका नाम अनसुना सा था. साथ ही पिछला पूरा का पूरा मंत्रिमंडल भी बदल दिया गया था ..उस वक्त उन्हें गुजरात की कमान. मिलने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था "AMC की स्टैंडिंग कमेटी और AUDA के चेयरमैन के तौर पर भूपेंद्र पटेल की प्रशासनिक क्षमताओं को अनुभव किया है" साथ ही उन्होंने कहा था की उनके नेतृत्व में गुजरात और प्रगति करेगा... लेकिन तब हर कोई ये कह रहा था की ये सभी फर्स्ट टाइमर क्या कर लेंगे..जो इन्हे अनुभवहीन कहते थे वो अक्सर ये भूल जाते हैं की ये वही मंत्री मंडल है
जिसने
1. गुजरात को सबसे पहले वैक्सीनेशन का लक्ष्य पूरा करने वाले राज्यों में शामिल किया
2. 90 दिनों के अंदर अंदर नैशनल गेम्स का आयोजन किया
3. पुरे राज्य की हर तहसील में फ्री डायलिसिस का प्रोग्राम इम्प्लीमेंट किया
4. E-FIR के ज़रिये FIR रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को सरल बनाया
अनेकों उदाहरण हैं ...... बाकी चर्चा फिर कभी.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार है