चंडीगढ़

क्या हरियाणा 'आप' को तलाश है कद्दावर नेता की ?

Special Coverage News
7 Oct 2018 12:07 PM GMT
क्या हरियाणा आप को तलाश है कद्दावर नेता की ?
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चंडीगढ़ से जग मोहन ठाकन

ज्यों ज्यो वर्ष 2019 नजदीक आता जा रहा है , त्यों त्यों हरियाणा की राजनैतिक पार्टियों की डफलियां तेज होती जा रही हैं . भले ही डफली बजाने वाले अलग अलग हों , भले ही आवाज कम ज्यादा हो , परन्तु राग सभी एक ही अलाप रहे हैं –कुर्सी राग .वर्ष 2014 में कांग्रेस के शासन से आजिज आ चुके लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय पटल पर नये उभरे नेता नरेंद्र मोदी की बातों और लोभ भरे आश्वासनों पर इतना भरोसा कर लिया कि केंद्र तथा हरियाणा प्रदेश दोनों जगह भाजपा को सत्तासीन कर दिया . पांच साल पूरे होते होते मतदाताओं का तो पता नहीं मोह- बिछोह हुआ है या नहीं हुआ है , परन्तु आज हरियाणा में राजनेताओं की यह स्थिति हो गयी है कि उन्हें सत्ता का ताज रात को स्वप्न में भी अपने ही सिर पर सजता दिखाई देने लगा है . खुद भाजपा में वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह कई कद्दावर तो क्या बौने बौने नेता लोग भी मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपने कब्जे में करने को आतुर लग रहे हैं . भाजपा की इसी 2019 में आयोजित होने वाली कुर्सी रेस में कई घोड़े अपनी लगाम को त्याग बेलगाम हो रहे हैं . और समय समय पर खट्टर के चाबुक की परवाह किये बिना पार्टी लाइन से हटकर ब्यान बाजी करते रहते हैं . छोटी छोटी बातों पर अपनी सुपरेमेसी सिद्ध करने को तैयार रहते हैं . मोदी को हरियाणा में बुलाने के लिए भी अलग अलग तिथियों के कार्यक्रमों को अपने अपने हिसाब से तय कर अपना आधिपत्य दिखाना चाहते हैं .

भाजपा की इसी खींचतान व घटती दिखाई दे रही साख को भांपकर हरियाणा में अन्य प्रभावशाली दल कांग्रेस तथा इनेलो जैसी पार्टियां तो क्या चुनाव के बरसाती माहौल की नमी महसूस कर कुकरमुत्तों की तरह जन्म ले रहे अन्य नये नये दल भी ताजपोशी की कल्पना करने लगे हैं .जहाँ आम आदमी पार्टी जगह जगह 'हमारा परिवार – आम आदमी पार्टी के साथ' के पोस्टर चिपका कर लोगों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही है , वहीँ कांग्रेस को भी गाँव स्तर पर युवाओं की हताशा दिखाई देने लगी है . पांच अक्टूबर को जींद में कांग्रेस पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी की मीटिंग में प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को युवाओं की इसी हताशा को पार्टी से जोड़ने का विकल्प नज़र आया . "पिछले चुनाव में भाजपा ने जिस यूथ को टारगेट कर सत्ता हासिल की थी , वह यूथ अब पूरी तरह से उससे खफा है , अब कांग्रेस का आगामी चुनाव में इसी यूथ पर फोकस रहेगा . 'हर घर तक कांग्रेस' अभियान के तहत एक बूथ पर दस सहयोगी बनाए जायेंगे ."

परन्तु किसी के पास आसमां नहीं है तो किसी के पास ज़मीं . दिल्ली में प्रचण्ड बहुमत पाकर गद गद हुई आम आदमी पार्टी को भी लगने लगा है कि यदि हरियाणा में भी खेत जोत किया जाए तो बम्पर फसल पाई जा सकती है .परन्तु हरियाणा में आम आदमी पार्टी के पास टोरा फोरी करने वाले टोपीधारी सर्वेयर तो दिखाई दे रहे हैं , सूड़ ( झाड़ झंखाड़ ) काटने वाले वर्कर तथा खेत जोतने वाला मुख्य 'हाली' नदारद लगता है .पार्टी के पास ग्रामीण क्षेत्र की नब्ज पहचानने वाले नेता का अभाव लगता है . देहात में जातीय तथा गौत्रीय कारक वोट बैंक को प्रभावित करते हैं तथा ग्रामीण एवं किसान के मुद्दों की अनदेखी किसी भी पार्टी को गाँव के मतदाता से जुड़ने से रोकती है . केजरीवाल द्वारा पंजाब के चुनाव के समय एस वाई एल पर दिया गया बयान भी किसान के वोट लेने में बाधक रहेगा . उल्लेखनीय है कि पंजाब चुनाव में केजरीवाल ने एस वाई एल पर हरियाणा के हक़ को सिरे से नकार दिया था .

वर्तमान में पार्टी के पास ऐसा कोई नेता नहीं है जो वोट खींच सके .हल्का वाइज तो ऐसे नेताओं तथा वर्कर्स का अभाव है ही , प्रदेश स्तर पर भी कोई कद्दावर तथा करिश्माई नेता न होने की वजह से धरातल पर केवल पोस्टरबाजी ही दिखाई दे रही है . वोटर का अभी आम आदमी पार्टी से जुड़ाव न देख शायद पार्टी के कर्णधारों को भी लगने लगा है कि बिना मजबूत खेवैये के अकेले कुछ सवारियों द्वारा हाथ से पानी पीछे धकेलने से नाव को नहीं खेया जा सकता है . क्या इसी हालात को देखते हुए प्रदेश पार्टी किसी बाहरी दमदार नेता को इम्पोर्ट करने की सोच रही है ? अभी आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवीन जय हिन्द द्वारा अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक प्रेस कांफ्रेंस में इनेलो के मीडिया में उछले या उछाले गए तथाकथित चाचा –भतीजा विवाद पर टिप्पणी करते हुए दुष्यंत चौटाला को आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने हेतु आमन्त्रण देना और दुष्यंत चौटाला को एक स्वच्छ छवि का नेता बताकर उसकी बड़ाई करना कहीं न कहीं पार्टी की किसी दबंग नेता को पार्टी में शामिल कर पार्टी के ज़मीनी स्तर के दुराव को जुड़ाव में तबदीली करने का प्रयास माना जा रहा है . हालांकि दुष्यंत चौटाला ने इनेलो में किसी प्रकार के मनमुटाव से साफ़ इनकार कर आम आदमी पार्टी द्वारा इनेलो नेता को अपनी पार्टी के साथ जोड़ने के स्वप्न को नींद खुलने से पहले ही चकनाचूर कर दिया है . वैसे भी राजनैतिक विचारक मानते हैं कि खुद दुष्यंत चौटाला भी जानते हैं कि इनेलो के ब्रांड नेम से बाहर निकल कर उनका अपना अभी कोई अस्तित्व नहीं बना है . अगर वे इस कदम बारे जरा सा सोचते भर भी हैं तो पहले उन्हें अपने ही परिवार के उस घटना क्रम को याद कर लेना चाहिए जब उनके दादा के छोटे भाई रणजीत सिंह इसी तरह के राजनैतिक उतराधिकार को लेकर चौधरी देवीलाल को छोड़कर कांग्रेस के दामन में जा विराजे थे और अभी तक गत तीस वर्षों से अधिक समय से अपनी पहचान के लिए हाथ पैर मार रहे हैं .

राजनैतिक विश्लेषकों का एक वर्ग मानता है कि आम आदमी पार्टी द्वारा दुष्यंत चौटाला को स्वच्छ छवि का नेता बताकर बड़ाई करना 'आप' पार्टी की एक गहरी सोची समझी राजनैतिक चाल है . इतना तो तय है कि पार्टी न तो भाजपा के साथ समझौता कर सकती है और न ही कांग्रेस के साथ . क्योकि इनमे से किसी के साथ भी गलबहियां उसकी दिल्ली की गद्दी पर पानी फेर सकती हैं . इसलिए पार्टी की मजबूरी है तथा पार्टी को इतना तो साफ़ विदित है कि हरियाणा में अकेले अपने दम पर सत्ता हासिल करना लगभग नामुमकिन है . पार्टी का बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन का रास्ता इनेलो ने पहले ही रोक दिया है . अब पार्टी के समक्ष एक ही रास्ता बचा है कि किसी तरह थर्ड फ्रंट के नाम पर इनेलो –बसपा गठबंधन में हिस्सेदारी कर ली जाए ताकि हरियाणा में भाजपा तथा कांग्रेस दोनों को सत्ता में आने से रोका जा सके . कहीं दुष्यंत चौटाला का यशोगान इसी कड़ी में गठबंधन में लॉग इन करने का पास वर्ड क्रिएट करना तो नहीं है ? पूरी स्थिति तो हालात के मुताबिक ही साफ़ होती जायेगी ,परन्तु अभी तो इतना ही लग रहा है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा में किसी आसरे की तलास में अवश्य है .

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