चंडीगढ़

क्या कांग्रेस झुक जाएगी कुलदीप बिश्नोई के आगे ? मान लेगी उसकी शर्तें ?

Special Coverage News
1 April 2019 4:11 PM IST
क्या कांग्रेस झुक जाएगी कुलदीप बिश्नोई के आगे ?  मान लेगी उसकी शर्तें ?
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तो क्या कुलदीप बिश्नोई अपने कांग्रेस में विलय पर पुनर्विचार करेंगे या यों ही कांग्रेस के पिछलग्गू नेताओं की श्रेणी में लामबद्ध होकर अपना शेष राजनैतिक करियर वनवास के रूप में काट देंगे ?

चंडीगढ़ से जग मोहन ठाकन


काफी अरसे से गुटों में बंटी कांग्रेस को एक करने तथा लोगों में एकता का सन्देश देने हेतु आयोजित की गयी कांग्रेस की छह दिवसीय परिवर्तन बस यात्रा का 31 मार्च को सुखद समापन हो गया ,जिसका श्रेय काफी हद तक यात्रा के संयोजक एवं हरियाणा में कांग्रेस प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद को जाता है । इस यात्रा में छह गुटों में से पांच गुटों के नेताओं को लगभग हर मोड़ पर एक साथ देखकर जनता में जहाँ कांग्रेस के प्रति जहाँ रुझान बढ़ा है ,वहीँ कुलदीप बिश्नोई द्वारा बस यात्रा से कन्नी काटना तथा अपने को काग्रेस यात्रियों के साथ न बताकर केवल राहुल गाँधी के साथ बताना लोगों में एक नई बहस को जन्म दे गया है ।

गैर जाट की राजनीति के प्रणेता चौधरी भजनलाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई 2016 में कांग्रेस में आये तो थे पिता की राह पर चलकर पुनः गैर जाट की राजनीति के पुरोधा बनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी लेने ,परन्तु कांग्रेस में पहले से ही इतने दावेदार हैं कि उन्हें अब मलाल हो रहा होगा अपने फैसले पर ।

तो क्या कुलदीप बिश्नोई अपने कांग्रेस में विलय पर पुनर्विचार करेंगे या यों ही कांग्रेस के पिछलग्गू नेताओं की श्रेणी में लामबद्ध होकर अपना शेष राजनैतिक करियर वनवास के रूप में काट देंगे ? या कांग्रेस को इस कद्र बाध्य कर देंगे कि कांग्रेस मजबूर होकर मान लेगी बिश्नोई की शर्तें ? इन सवालों के जवाब ढूँढने से पहले हमें देखना होगा कुलदीप बिश्नोई के पुराने पारिवारिक एवं व्यक्तिगत राजनैतिक इतिहास को ।

हरियाणा को दल बदल के लिए कुख्यात होने के कारण 'आया राम –गया राम' का प्रदेश होने का गौरव भी प्राप्त है । अपनी जोड़तोड़ की कला की बदौलत राजनीति के पी एच डी कहलाने वाले चौधरी भजन लाल 1977 में कांग्रेस से पाला बदलकर जगजीवन राम की कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी की मार्फत जनता पार्टी में शामिल हो गए तथा वहां अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल को हटाकर 1979 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए । और बाद में 1980 में जब केंद्र में इंदिरा गाँधी सत्ता में आ गयी तो भजन लाल ने 40 विधायकों समेत पूरे जनता पार्टी विधायक दल का कांग्रेस आई में दलबदल करा दिया । इसी तरह 1982 के चुनाव में कांग्रेस के कम विधायक होते हुए भी तत्कालीन गवर्नर जी डी तपासे के आशीर्वाद से ज्यादा विधायक वाले नेता देवीलाल को दुबारा पटकनी देकर भजन लाल ने सरकार बना ली जो जुलाई 5 , 1985 तक चली ।

जोड़ तोड़ में माहिर चौधरी भजन लाल 1991 से 1996 तक पुनः मुख्यमंत्री रहे । परन्तु जब 2005 में कांग्रेस को दुबारा बहुमत मिला तो कांग्रेस हाई कमान ने भजन लाल के पर कुतरने हेतु भजन लाल की बजाय भूपेन्द्र सिंह हूड्डा को मुख्यमंत्री बना दिया , जिससे क्षुब्ध होकर भजन लाल के पुत्र कुलदीप बिश्नोई ने हरियाणा जनहित कांग्रेस (बी एल ) के नाम से अपनी नई पार्टी का गठन कर लिया । वर्ष 2009 में भजनलाल ने अपनी हरियाणा जनहित कांग्रेस (ह ज का ) के बैनर तले चुनाव जीतकर हिसार से सांसद की सीट हासिल की । इसी वर्ष 2009 में कुछ दिन बाद हुए विधानसभा चुनावों में ह ज का ने छह विधायक जिताए परन्तु शिथिल हो चुके भजनलाल और कमजोर मुखिया कुलदीप सिंह बिश्नोई उन्हें सम्हाल नहीं पाए और खुद को छोड़कर शेष पांच विधायक पाला बदल कर कांग्रेस में चले गए । कमजोर उतराधिकारियों के कारण यहाँ भजनलाल की पी एच डी फ़ैल हो गयी ।

अपनी कमजोर होती ताकत को भांपकर कुलदीप बिश्नोई ने वर्ष 2014 में भाजपा से गठबंधन कर लिया परन्तु गठबंधन के बावजूद कुलदीप बिश्नोई लोकसभा चुनावों में अपने पिता की हिसार की सीट भी देवीलाल के पौत्र दुष्यन्त चौटाला से हार बैठे थे । इसी वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा से मुंह मोड़कर अपना वजूद दिखाने हेतु ह ज का ने 90 में से 65 सीटों पर चुनाव लड़ा जहाँ केवल दो सीटों पर जीत दर्ज की तथा पार्टी के 58 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा पाए ।

इस चुनाव परिणाम से कुलदीप बिश्नोई को अपनी ह ज का पार्टी की खोखली जड़ें दिखाई दे गई और उन्हें आभास हो गया कि वे अकेले अपने दम पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने का सपना पूरा नहीं कर पाएंगे इसलिए मौका पाकर 2016 में पार्टी के दोनों विधायको ( खुद कुलदीप बिश्नोई तथा पत्नी रेणुका बिश्नोई ) ने कांग्रेस का दामन थाम लिया । 2019 के चुनाव सर पर आते आते यहाँ भी गुटों में विभाजित कांग्रेस के किसी भी गुट ने कुलदीप बिश्नोई को हवा नहीं दी ,जिसके कारण कुलदीप को लगने लगा कि शायद उनकी यहाँ भी मन वांछित दाल नहीं गलेगी और वे पार्टी से कटे कटे से रहने लगे ।

ताज़ा घटनाक्रम के मुताबिक छह गुटों में बंटे हरियाणा के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं को एक प्लेटफार्म पर लाकर जनता को कांग्रेस की एकता प्रदर्शित करने हेतु राहुल गाँधी के निर्देश पर हरियाणा में कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद की अध्यक्षता में 19 मार्च मंगलवार को नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में हरियाणा चुनाव समन्वय समिति की बैठक हुई। इसमें फैसला लिया गया कि प्रदेश के सभी बड़े कांग्रेस नेता एक बस पर सवार होकर सभी दस लोकसभा क्षेत्रों में यात्रा करेंगे और 90 में से लगभग 70 विधान सभा क्षेत्रों को कवर करेंगे । यात्रा के जरिए कांग्रेस एकजुटता का संदेश देने के साथ ही सत्तारूढ़ दल पर ज्वलंत मुद्दों को लेकर हमला भी बोलेगी। समिति के चेयरमैन पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा सहित चौदह सदस्य इसमें उपस्थित रहे, जबकि समिति की पहली ही बैठक में 2016 में हजकां से दल बदल कर आये कांग्रेस विधायक व समिति सदस्य कुलदीप बिश्नोई शामिल नहीं हुए ।

इस बैठक में यह फैसला लिया गया था कि 26 मार्च से शुरू होकर 31 मार्च तक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस पूरे हरियाणा में रोड शो करेगी। सभी नेता एक साथ यात्रा में शामिल होकर प्रचार करेंगे।

बस यात्रा शुरू करने से पहले 23 मार्च को कांग्रेस की बैठक एआईसीसी मुख्यालय नई दिल्ली में दोबारा हुई ,जिसमे कुलदीप बिश्नोई फिर उपस्थित नहीं हुए। उल्लेखनीय है कि हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के छह दावेदारों में कुलदीप बिश्नोई भी अपने आप को एक प्रबल दावेदार मानते हैं और कहा जा रहा है कि हरियाणा चुनाव समन्वय समिति के चेयरमैन पद पर पूर्व सी एम भूपेन्द्र सिंह हूडा की ताजपोशी से अपनी नाराज़गी जाहिर करने हेतु वे इन मीटिंगों में भाग नहीं ले रहे हैं । 2005 में कुलदीप के पिता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल को किनारे कर भूपेन्द्र हूड्डा खुद मुख्यमंत्री बन गए थे , इस बात को कुलदीप लाख प्रयास के बावजूद भुला नहीं पा रहे हैं ।

खैर , कांग्रेस की परिवर्तन बस यात्रा निर्धारित 26 मार्च को ही चली , इसमें जहाँ कांग्रेस के सभी गुटों के नेता शामिल हुए वहां कुलदीप बिश्नोई पहले तीन दिन तक कहीं भी दिखाई नहीं दिए । मीडिया और राजनैतिक गलियारों में कयास लगाए जाने लगे कि कुलदीप बिश्नोई दोनों हाथों में लड्डू रखते हुए अपने पुत्र भव्य बिश्नोई को हिसार से लोकसभा चुनाव में टिकेट दिलाने हेतु भाजपा से भी तालमेल कर रहे हैं और किसी भी समय कांग्रेस को टाटा बाय कह सकते हैं , अन्यथा इस चुनाव के नाजुक अवसर पर वे राहुल गाँधी के निर्देश पर हो रही बस यात्रा में शामिल न होकर उनकी नाराजगी मोल लेने का रिस्क कैसे उठा सकते हैं ?

परन्तु चौथे दिन ,जब खुद राहुल गाँधी को बस यात्रा में शामिल होना था , ठीक उसी दिन कुलदीप बिश्नोई बस यात्रा में शामिल भी हुए और जब तक राहुल रहे तब तक राहुल की शान में शेरो-शायरी से उनके चारों और फेरी लगाकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास भी करते रहे । यात्रा के अगले व अंतिम दो दिन कुलदीप फिर नदारद हो गए । हालाँकि उन्होंने यात्रा के चौथे दिन के अवसर पर मीडिया से बात करते हुए दो बात स्पष्ट कर दी थी कि वे भाजपा में नहीं जा रहे हैं तथा वे कांग्रेस की यात्रा में शामिल नहीं हैं ,अपितु राहुल की यात्रा में शामिल हो रहे हैं । उन्होंने स्पष्ट कहा –"जहाँ राहुल –वहां कुलदीप" ।

इस प्रकार उन्होंने बता दिया कि वे हरियाणा कांग्रेस के नेताओं से कोई तारतम्य नहीं बैठाएंगे और केवल राहुल गाँधी को ही अपना नेता मानेगें । इस बात से स्पष्ट हो गया कि अभी भी उनका प्रदेश के स्थानीय नेताओं से कोई सामंजस्य नहीं हुआ है और वे अपनी डफली अलग बजाते रहेंगे । कुलदीप की इस बात को शायद प्रदेश के प्रमुख नेता एवं केन्द्रीय नेता भी बखूबी समझते है और इसीलिए पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हूड्डा ने राहुल की मौजूदगी में ही अपने संबोधन में राहुल को विश्वास दिलाने की कोशिश की कि अलबत्ता तो कांग्रेस लोकसभा की दस की दस सीट जीतेगी और नहीं तो नो सीटें तो पक्की ही हैं । इसका जनता में सीधा सन्देश गया कि पूर्व मुख्यमंत्री हूड्डा का इशारा था कि वे कुलदीप की सीट को कच्चा मान कर चल रहे हैं ।

यहाँ यह उल्लेख करना ठीक रहेगा कि गत 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन को कुलदीप बिश्नोई अपनी पराजय के बाद अपने स्वभाव के मुताबिक ज्यादा दिन नहीं चला पाए थे और केवल छह माह के भीतर ही विधानसभा चुनावों में अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ कर केवल दो विधानसभा सीटों पर सिमट गए थे । कुलदीप बिश्नोई की भाजपा में जाने की हवा भी शायद किसी सुनियोजित योजना का ही हिस्सा ना हो , ताकि कांग्रेस पर मनमाफिक दवाब बनाया जा सके ।

अब कुलदीप बिश्नोई अपनी शर्तों पर कांग्रेस में अपनी जगह बनाना चाहते हैं । कुलदीप चाहते हैं कि हिसार लोकसभा का चुनाव उनका पुत्र भव्य बिश्नोई लड़े ताकि वह विधानसभा का चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा जाता सकें । परन्तु कांग्रेस इस मुख्यमंत्री की रेस को फिलहाल ख़त्म करना चाहती है और वो अपने सभी धुरंधर नेताओं को लोकसभा के चुनाव में खड़ा करना चाहती है ताकि केंद्र में सत्ता हथिया सके । बाकी सभी गुटों के धुरंधर इन उपरी निर्देशों से सहमत हैं ,परन्तु कुलदीप बिश्नोई अभी अपनी असहमति जताने हेतु टेढ़ी चाल चल रहे हैं और बस यात्रा से कन्नी काटते रहे हैं ।

बस यात्रा में साथ चल रहे हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आज़ाद ने कुलदीप की बस यात्रा में साथ न चलने को गंभीरता से लिया है और कहा है –"यदि अब भी कोई नेता साथ नहीं आता है तो वह अपना नुक्सान खुद करवा रहा है" ।

देखना यह है कि क्या कांग्रेस कुलदीप के दवाब में आकर उसकी शर्तों को मानेगी या कुलदीप की चाल को समझते हुए उसे कोई जोर का झटका देगी ?

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