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पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट यानि बच्चों से यौन हिंसा के मामले में मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि बच्चों से यौन हिंसा के आरोपी का पीड़ित या उसके परिजनों से समझौता मान्य नहीं होगा। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करने की आरोपी की अपील को लेकर दाखिल याचिका खारिज कर दी।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने कहा कि बच्चे या उसके माता-पिता द्वारा किया गया समझौता, बच्चे की गरिमा से समझौता, उस स्थिति तक नहीं उठाया जा सकता है जहां यह कानून को खिलाफ हो जाए। सीआरपीसी धारा 482 अर्थात एक प्राथमिकी रद्द करने के लिए हाईकोर्ट की शक्तियों के तहत दी गई शक्ति का प्रयोग संवैधानिक जनादेश के खिलाफ नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने कहा कि कानून यौनिक अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया था। समझौते से कानून ही खत्म होने का डर है इसलिए बच्चे के माता-पिता बच्चे की गरिमा से समझौता नहीं कर सकते।
दरअसल, हरियाणा के सुरिंदर कुमार के खिलाफ 2021 में एक नाबालिग से दुष्कर्म के आरोप में पॉक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। बाद में आरोपी ने चंडीगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए कहा था कि उसका पीड़ित पक्ष के साथ समझौता हो गया है। अदालत से अपील की थी कि उसके खिलाफ दर्ज इस एफआईआर को रद्द किए जाए। वहीं जस्टिस पंकज जैन ने याचिका को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इस एक्ट के तहत पीड़िता और उसके परिजनों से समझौता होने पर एफआईआर को रद्द करना इस एक्ट की मूल भावना को आहत करने जैसा होगा।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज जैन ने कहा कि इस एक्ट को बनाने के पीछे मकसद यह था कि मासूम बच्चों को स्वस्थ माहौल दिया जा सके और उन्हें किसी भी किस्म के उत्पीड़न से बचाया जा सके। मासूम बच्चों को उनके अधिकार मिले। यह सुनिश्चित किया जाए की उनका यौन या अन्य तरह से शोषण न हो। साथ ही शोषण के दोषी को कड़ी सजा मिल सके। अब इस मामले में उल्टा हो रहा है। बच्चों से यौन शोषण के आरोपी पीड़ित पक्ष से समझौता कर लेते हैं। ऐसे में बच्चों को न्याय नहीं मिलता। इस बात को ध्यान में रखतो हुए हाईकोर्ट ने पोक्सो एक्ट मामले में दोनों पार्टियों के बीच समझौते पर रोक लगा दी है।
जस्टिस पंकज जैन ने कहा है कि इस एक्ट में आरोपी कैसे समझौता कर सकता है। पीड़ित नाबालिग है। वह समझौता नहीं कर सकती। उसके परिजनों को उसकी तरफ से कोई समझौता करने का अधिकार नहीं है। ऐसे में यह समझौता अवैध होगा। लिहाजा हाईकोर्ट ने एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका को आधारहीन करार देकर इसे खारिज कर दिया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को आदेश दिया है कि इस मामले का छह महीने में निपटारा करे।