क्या हम पॉज़िटिव स्टोरीज़ शेयर नहीं कर सकते? डॉ पश्यन्ति शुक्ला ने कही ये बड़ी बात और बोलीं
कई दिन से सोच रही थी, इसलिए लिख रही हूं. जो सहमत न हों असहमति ज़ाहिर कर सकते हैं. समय कठिन है यह सच है लेकिन सकारत्मकता बनानी होगी, कम से कम उन लोगों को तो जो या तो कोरोना से उबर चुके हैं या फिर ईश्वर की कृपा से बचे हुए हैं. पिछले एक हफ्ते में देखा है कि कोरोना के लक्षणों से ज़्यादा लोगों में पैनिक है.
-क्या हम पॉज़िटिव स्टोरीज़ शेयर नहीं कर सकते?
-क्या हम इस मुश्किल परिस्थिति में कम से कम अपने पोस्ट्स और ट्वीट्स के ज़रिए ही दूसरों की ज़िंदगी में एक पल के लिए ही सही पॉज़िटिविटी नहीं ला सकते?
-क्या यह ज़रूरी है कि कोरोना बम फूटा, बच्चों की हो सकती है कोरोना से मौत टाइप्स न्यूज़, अगर चैनलों से अगर बच जाएं तो हमारे हैंडिल्स पर भी शेयर की जाएं?
- क्या यह ज़रूरी है कि सबसे आगे, तेज़ बनने के चक्कर में हम लोगों को कोरोना से पहले डिप्रेशन का मरीज़ बना दें.
भगवान कृष्ण ने कहा था कि युद्ध हथियारों से ज़्यादा दिमाग़ से जीते जाते हैं, यह बीमारी भी कुछ ऐसी ही है जहां दवाई से ज़्यादा willpower की ज़रूरत है औऱ दोस्तों केवल और केवल negative news शेयर कर कर के हम उन लोगों की willpower को क़मज़ोर कर रहैं हैं जो खुद या तो उनका परिवार इस महामारी से जूझ रहा है.
क्या हम अस्पताल में साथ खड़े नहीं हो सकते सबके तो अपने शब्दों को संयमित भी नहीं कर सकते?