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फ़ाइज़र ने भारत में अपनी कोविड वैक्सीन के इस्तेमाल की अनुमति माँगी, जानें- कितनी कीमत और क्या हैं चुनौतियां?
नई दिल्ली : ब्रिटेन में मिली मंजूरी के बाद अमेरिकी दवा कंपनी फाइजर ने अपनी कोरोना वैक्सीन को भारत में भी इमरजेंसी उपयोग करने के लिए अर्जी डाल दी है. फाइजर की भारतीय इकाई ने उसके द्वारा विकसित कोविड-19 टीके के आपातकालीन इस्तेमाल की औपचारिक मंजूरी के लिए भारतीय औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) के समक्ष आवेदन किया है. फाइजर के टीके को ब्रिटेन और बहरीन में इसके लिए मंजूरी मिल चुकी है. ब्रिटेन में अगले सप्ताह फाइजर-बायोएनटेक की कोरोना वैक्सीन का पहला डोज दिया जाएगा. फाइजर-बायोएनटेक द्वारा विकसित कोरोना वैक्सीन आखिर इतनी खास क्यों है.
पहली एमआरएनए वैक्सीन को मंजूरी
फाइजर कंपनी ने हाल ही में ऐलान किया था कि उसकी कोरोना की वैक्सीन 95 फीसदी तक असरदार है. ये दुनिया की सबसे तेजी से विकसित वैक्सीन है, जिसे बनाने में 10 महीने लगे. आम तौर पर ऐसी वैक्सीन के तैयार होने में एक दशक तक का वक्त लग जाता है. फाइजर की यह वैक्सीन एक नई जेनेटिक तकनीक से विकसित की गई है, जो विज्ञान में सबसे आगे है.
ये एक नई तरह की एमआरएनए कोरोना वैक्सीन है, जिसमें महामारी के दौरान इकट्ठा किए कोरोनावायरस के जेनेटिक कोड के छोटे टुकड़ों को इस्तेमाल किया गया है. इससे पहले कभी भी इंसानों में इस्तेमाल के लिए एमआरएनए वैक्सीन को मंज़ूरी नहीं दी गई है. मगर क्लीनिकल ट्रायल के दौरान लोगों को इस तरह की वैक्सीन के डोज पहले भी दिए गए हैं.
कैसे करती है यह काम
एमआरएनए वैक्सीन खास होती है. सिंथेटिक एमआरएनए के इस्तेमाल से इम्यून सिस्टम सक्रिय हो जाता है और वायरस से लड़ता है. पारंपरिक रूप से वैक्सीन बीमारी फैलाने वाले जीवाणु का एक छोटा हिस्सा इंसान के शरीर में डालती हैं. लेकिन एमआरएनए वैक्सीन हमारे शरीर से ट्रिक या यूं कहें कि चालाकी से अपने आप कुछ वायरल प्रोटीन बनवाती है.
कितने तरह से तैयार होती हैं वैक्सीन
वैक्सीन कुल चार तरह से तैयार होती हैं. पहली एमआरएनए वैक्सीन, जिसमें वायरस का जेनेटिक मटीरियल का एक कंपोनेंट लेकर उसे इंजेक्ट कर देते हैं, जिससे इम्यून तैयार हो जाता है और वो वायरस से लड़ता है. दूसरी होती है स्टैंडर्ड वैक्सीन, जिसमें किसी वायरस का वीक वर्जन लेकर उसे लोगों में इंजेक्ट कर के इम्यून तैयार कराया जाता है. तीसरी तरह की वैक्सीन में किसी और वायरस के बैकबोन में इस वायरस की कुछ कोडिंग को लगाकर वैक्सीन तैयार किया जाता है. चौथे प्रकार की वैक्सीन में वायरस का प्रोटीन लैब में बनाकर उसे दूसरे स्टिमुलस के साथ लगाया जाता है.
भारत में क्या हैं चुनौतियां
भारत में फाइजर की वैक्सीन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती है उसका स्टोरेज. वैक्सीन 6 महीनों तक चल सके, इसके लिए इसे -70 डिग्री सेल्सियस या इससे कम तापमान पर रखना होगा, जिसमें ढ़ेर सारी ऊर्जा और पैसा लगेगा. उसके लिए एक मजबूत कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किए जाने की जरूरत है. भारत सरकार इसके रखरखाव की चुनौतियों से निपटने के लिए काम कर रही है.
कितनी होगी कीमत
फाइजर-बायोएनटेक के इस टीके को करीब 44 हजार स्वयंसेवकों पर परीक्षण किया जा चुका है. इसके एक टीके की अनुमानित कीमत 20 डॉलर (1476 रुपये) बताई जा रही है. लोगों को टीके की दो डोज देनी होती हैं और दोनों खुराकों के बीच 21 दिन का अंतराल रखना पड़ता है. फाइजर ने अपने टीके का सौदा कई देशों के साथ किया है. इनमें ब्रिटेन के अलावा अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू), जापान को टीके की खुराकें उपलब्ध कराई जाएंगी.
भारत में इसको लेकर संशय
भारत में कोरोना की वैक्सीन को लेकर संशय बना हुआ है. फाइजर ने अभी तक भारत में अपनी वैक्सीन का ट्रायल नहीं किया है. जब तक भारत की आबादी पर उसकी वैक्सीन का ट्रायल नहीं होता, तब तक मंजूरी नहीं दी जा सकती है. साथ ही भारत ने अभी तक कंपनी से वैक्सीन खरीद के लिए कोई समझौता नहीं किया है. भारत में कोई भी वैक्सीन को तभी आमजनों को देने की अनुमति मिलेगी जब वह कंपनी क्लीनिकल ट्रायल पूरी कर लेगी.