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नई दिल्ली। कई बार आपने लोगों को कहते सुना होगा कि सोने से थकान तो दूर होती ही है साथ ही साथ दिमाग भी तरोताज़ा हो जाता है। कुछ लोग ऐसे भी होते है जिन्हें नींद बहुत आती है और वे सोते भी बहुत हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते है जो रात में बारबार जागते रहते है, एक स्टडी में पाया गया है कि जो महिलाएं रात में बार-बार जागती हैं, उनके कम उम्र में मरने की संभावना दोगुनी होती है।
8000 पुरुषों और महिलाओं पर शोध करने पर पता चला है कि रात में जागने के कई कारण हो सकते हैं. ये मस्तिष्क की एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया होती है. हाथ-पैरों में अचानक से दर्द होना, किसी प्रकार का ट्रॉमा या सांस लेने में दिक्कत भी व्यक्ति को नींद में से अचानक उठने पर मजबूर कर देती है. इस कारण कई बार लोग पर्याप्त नींद नहीं ले पाते. इस स्थिति को unconscious wakefulness कहते हैं.
ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए इस शोध में पाया गया कि यदि ये समस्या बार-बार हो रही है तो इसके पीछे हाई ब्लड प्रेशर के साथ कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. उन्होंने तीन अलग-अलग अध्ययनों के डेटा का इस्तेमाल किया जिसमें पार्टीसिपेंट्स ने एक रात की नींद के दौरान स्लीप ट्रैकर पहना था. हर एक को अराउजल बर्डन (arousal burden) के तहत मॉनिटर करने को कहा कि वे रात में कितने समय तक सोने की तुलना में कितनी बार और कितनी देर के लिए जागते थे. पार्टीसिपेंट्स ने लगभग 6 वर्षों से लेकर 11 वर्षों तक इस प्रक्रिया को मॉनिटर किया.
अध्ययन के प्रमुख लेखक, एसोसिएट प्रोफेसर माथियास बॉमर्ट और उनके सहयोगियों ने पाया कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में रात में कम जागती हैं. हालांकि, विशेष रूप से हृदय रोग के कारण महिलाओं के मरने की संभावना अधिक है. जो महिलाएं रात में सबसे अधिक जागती हैं, उनमें हृदय रोग से मरने का खतरा उन महिलाओं की तुलना में 60 से 100 प्रतिशत (दोगुना) अधिक होता है, जो रात में अच्छी नींद लेती हैं।
शोध के अनुसार, हृदय रोग से उन महिलाओं की मृत्यु की संभावना 6.7 प्रतिशत की तुलना में 12.8 प्रतिशत थी. कुल मिलाकर, महिलाओं की सामान्य आबादी में ये संभावना 21 प्रतिशत से बढ़कर 31.5 प्रतिशत हो गई.
मास्ट्रिच यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (नीदरलैंड) में कार्डियोलॉजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, सह-लेखक डोमिनिक लिंज ने कहा कि ये स्पष्ट नहीं है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच यह अंतर क्यों है. लेकिन उन्होंने कहा कि इस बात को समझाया जा सकता है कि रात में जागने पर शरीर कैसे प्रतिक्रिया करता है. उन्होंने कहा कि महज बड़े होने से, मोटापा या खर्राटें लेने से कुछ इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता है. जहां उम्र को बदला नहीं जा सकता है वहीं बीएमआई और स्लीप एपनिया को मोडिफाई किया जा सकता है. इससे अराउजल बर्डन को कम करने में सहायता मिल सकती है।
एक्सपर्ट के अनुसार, ऐसे मरीजों को अपनी नींद लेने की प्रक्रिया में सुधार लाना चाहिए ताकि वे अच्छी और पर्याप्त नींद ले सकें. इसके अलावा, रात के दौरान ध्वनि प्रदूषण को कम करने, वजन कम करने और स्लीप एपनिया को ठीक करने के उपाय भी अराउजल बर्डन को कम करने में मदद कर सकते हैं. अच्छी और पर्याप्त नींद है आवश्यक: ऐसा पहली बार नहीं है जब खराब नींद के कारण हृदय संबंधी समस्याएं जैसे स्ट्रोक या हार्ट फेलियर और अन्य कारणों से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है. मैड्रिड के Centro Nacional de Investigaciones Cardiovasculares Carlos III में क्लिनिकल रिसर्च डायरेक्टर प्रोफेसर बोरजा इबनेज ने कहा कि नींद, हृदय को क्यों प्रभावित करती है, इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं.
उन्होंने कहा कि "बॉडी क्लॉक" में रुकावट, जिसे सर्कैडियन रिदम कहा जाता है, धमनियों में वसा का निर्माण कर सकता है. प्रो इबनेज ने अध्ययन से जुड़े एक पेपर में लिखा है कि इससे खराब क्वालिटी की नींद वाले लोगों में हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. उन्होंने और उनके सहयोगियों ने लिखा कि भले ही आने वाले वर्षों में नींद और कार्डियोवैस्कुलर बीमारी के बीच संबंधों पर कई रिसर्च की जाना बाकी है. लेकिन इस अध्ययन से ये साबित होता है कि हृदय संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए अच्छी और पर्याप्त नींद लेना आवश्यक है।