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जब कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं तो शोषण और भेदभाव क्यों?
![जब कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं तो शोषण और भेदभाव क्यों? जब कुष्ठ रोग लाइलाज नहीं तो शोषण और भेदभाव क्यों?](https://www.specialcoveragenews.in/h-upload/2025/02/10/395705-01.webp)
विश्व कुष्ठ दिवस 2025 के उपलक्ष्य में, कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के प्रति भेदभाव को समाप्त करने के लिए भारत के ओडिशा प्रांत की राजधानी भुवनेश्वर से एक वैश्विक अपील जारी की गई। ज्ञात हो कि विश्व कुष्ठ दिवस हर साल जनवरी के अंतिम रविवार को मनाया जाता है परंतु भारत में इसे महात्मा गांधी (जिन्होंने कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बहुत मदद करी) की पुण्य तिथि 30 जनवरी को मनाया जाता है।
इस अवसर पर भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ जेपी नड्डा ने अपने संदेश में कहा कि कुष्ठ रोग केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है। यह एक सामाजिक मुद्दा भी है। शोषण और भेदभाव इस बीमारी को खत्म करने की दिशा में होने वाली प्रगति में बाधा डालते हैं और इससे पीड़ित लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। यदि कुष्ठ रोग का शीघ्र निदान हो जाए तो व्यक्ति सामान्य स्वास्थ्य जीवन जी सकता है। लोगों को कुष्ठ रोग के लक्षणों को पहचानना सीखना चाहिए तथा निदान और उपचार के लिए स्वेच्छा से आगे आना चाहिए। हम सभी को कुष्ठ रोग से संबंधित शोषण और भेदभाव को रोकने में एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए नियुक्त सद्भावना राजदूत योहेई सासाकावा ने 2006 में इस वैश्विक अपील की शुरुआत, कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के खिलाफ शोषण और भेदभाव को खत्म करने के लिए, भारत में दिल्ली से की थी। इसलिए इस वर्ष की वैश्विक अपील इस कड़ी की 20वीं वार्षिक घोषणा है।
यदि कुष्ठ रोग की जल्दी जाँच हो, सही इलाज बिना-विलंब मिले, तो शारीरिक विकृति भी नहीं होती और सही इलाज शुरू होने के 72 घंटे बाद से रोग फैलना भी बंद हो जाता है।
श्री सासाकावा जापान से स्वयं इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए ओडिशा आए थे। वह निप्पॉन फाउंडेशन के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने बताया कि इस 20वीं वैश्विक अपील को दुनिया के 56 देशों के स्वास्थ्य मंत्रालयों ने समर्थन दिया है। उन्होंने कुष्ठ रोग मुक्त विश्व के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता की भी सराहना की। उन्होंने कहा, "अगर हम सब अपने प्रयासों को एकजुट करते हैं तो कुष्ठ रोग मुक्त दुनिया के सपने को असंभव से संभव बना सकते हैं।"
कुष्ठ रोग, जिसे "हैनसेन रोग" के नाम से भी जाना जाता है, एक पुरानी बीमारी है जो सदियों से मानव इतिहास का हिस्सा रही है और कलंक तथा गलत धारणाओं में लिपटी हुई है। यह एक दीर्घकालिक संक्रामक रोग है जो माइको-बैक्टीरियम लेप्री नामक जीवाणु के कारण होता है।कुष्ठ रोग के मुख्य लक्षण हैं: त्वचा पर धब्बे या घाव होना जिनमें ठंड और गर्म का एहसास नहीं होता, त्वचा का मोटा होना या उसका रंग बदल जाना, मांसपेशियों में कमज़ोरी होना, नाक बंद होना या नाक से खून आना। कुष्ठ रोग के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं।
कुष्ठ रोग का इलाज मल्टी-ड्रग थेरेपी (बहु-औषधि चिकित्सा) से संभव है। रोग की गंभीरता को देखते हुए यह इलाज 1 से लेकर 2 वर्षों तक चल सकता है। लेकिन अगर इस रोग का शुरुआती चरण में पता नहीं लगाया जाता और इलाज नहीं किया जाता है, तो प्रभावित व्यक्ति में स्थायी विकलांगता और विकृति हो सकती है, जिनके चलते समुदाय में ऐसे व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों के प्रति भेदभाव व्याप्त होता है।
ध्यान देने योग्य बात है कि यह बीमारी अनुपचारित रोगियों के साथ निकट और लगातार संपर्क से फैलती है- रोगी से आकस्मिक संपर्क (जैसे हाथ मिलाना या गले लगना, भोजन साझा करना या एक-दूसरे के बगल में बैठना) से नहीं फैलती है। सही इलाज शुरू करने के 3 दिन बाद से ही रोगी संक्रामक नहीं रह जाता।
कुष्ठ रोग का इलाज संभव होने के बावजूद यह रोग अभी भी 120 से अधिक देशों में पाया जाता है, तथा हर वर्ष इसके 2 लाख से अधिक नए मामले सामने आते हैं, जिनमे से अधिकांश भारत में होते हैं। 2023 में इस बीमारी के वैश्विक बोझ का 57% हिस्सा अकेले भारत में था और दुनिया भर में दर्ज दृश्यमान विकलांगता के 25% मामले भी भारत में ही दर्ज किए गए है। "सासाकावा इंडिया लेप्रोसी फाउंडेशन" के अनुमान के अनुसार भारत में 760 लेप्रोसी कॉलोनियों में 1.27 लाख से अधिक कुष्ठ रोग से पीड़ित लोग रहते हैं।
कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों की संस्था ("एसोसिएशन ऑफ पीपल अफेक्टेड बाय लेप्रोसी") की अध्यक्षा माया रानावरे ने कहा कि उनके माता-पिता भी इस बीमारी से पीड़ित थे। "कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए शोषण और भेदभाव को समाप्त करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, चाहे वह सामाजिक स्थिति हो, या रोजगार, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच हो। दुर्भाग्य से,चिकित्सा और प्रौद्योगिकी में प्रगति के बावजूद, कुष्ठ रोग से संबंधित कलंक अभी भी मौजूद है। इस दुष्चक्र को तोड़ने के लिए जागरूकता और शिक्षा को बढ़ावा देना आवश्यक है।"
सासाकावा जी ने अपना सारा जीवन कुष्ठ रोग उन्मूलन के लिए समर्पित कर दिया है। उन्होंने न केवल इस रोग की मल्टी-ड्रग थेरेपी दवाओं की खरीद और वितरण के लिए 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान दिया है,बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से कुष्ठ रोग को मानवाधिकार मुद्दे के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भुवनेश्वर में उन्होंने इस बात पर क्षोभ प्रकट किया कि कुष्ठ रोग अभी भी मौजूद है।
“कुछ देशों में ऐसे लोग हैं, जिन्हें बेहद ज़रूरी उपचार नहीं मिल पाता। कुष्ठ रोग के कारण उत्पन्न हुई विकलांगता के साथ जी रहे लोगों को आजीवन सहायता की ज़रूरत होती है, और कुष्ठ रोग से प्रभावित कई लोग और उनके परिवार को, अभी भी पुरानी रूढ़ियों और अंधविश्वासों के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। भेदभाव के डर से कुछ लोग उपचार लेने से कतराते हैं और कुछ का गलत निदान किया जाता है क्योंकि स्वास्थ्य कार्यकर्ता कुष्ठ रोग के लक्षणों को जल्दी पहचान नहीं पाते हैं। कुछ को उचित उपचार नहीं मिल पाता है। हमें यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए कि स्वास्थ्य सेवाएं प्रत्येक रोगी के साथ उचित तरीके से निपटने में सक्षम हों, तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आम जनता कुष्ठ रोग के बारे में जागरूक हों। हमें उपेक्षा, अज्ञानता या उदासीनता को आड़े नहीं आने देना चाहिए। विश्व कुष्ठ रोग दिवस2025 पर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ "टूवर्ड्स जीरो लेप्रोसी" (शून्य लेप्रोसी की ओर) के अभियान के तहत एकजुट हों और भेदभाव को समाप्त करने के लिए मिलकर काम करें और सुनिश्चित करें कि कुष्ठ रोग से प्रभावित हर व्यक्ति को वह उपचार और सहायता मिले जिसकी उसे ज़रूरत है।"
शोभा शुक्ला - सीएनएस (सिटीज़न न्यूज़ सर्विस)
(शोभा शुक्ला, लखनऊ के लोरेटो कॉलेज की भौतिक विज्ञान की सेवा-निवृत्त वरिष्ठ शिक्षिका रहीं हैं और सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं।