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कोरोना में प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर ICMR अपनी स्टडी के परिणाम को सार्वजनिक क्यो नही कर रहा है ?
समझ मे नही आ रहा कि कोरोना में प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर ICMR अपनी स्टडी के परिणाम को सार्वजनिक क्यो नही कर रहा है ?....सितम्बर की शुरुआत में खबर आयी थी कि प्लाज़्मा थेरेपी पर पिछले 4 महीने से चल रहा परीक्षण अब पूरा हो चुका है। आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने बताया कि 39 अस्पतालों में हुए परीक्षण में शामिल 450 मरीजों को दो समूहों में बांटा गया था। एक समूह के 225 मरीजों को प्लाजमा थेरेपी तो दूसरे समूह को दूसरे तरीके से उपचार दिया गया है। यह एक बड़ी स्टडी है
तो आखिर इसके समीक्षा परिणाम को घोषित करने में देर क्यो की जा रही है ? अगर आप यह खोजने का प्रयास करे कि WHO प्लाज़्मा थेरेपी के बारे क्या राय रखता है तो आपको निराशा हाथ लगेगी ........उसने अब तक कोई स्पष्ट राय इलाज की इस प्रणाली के बारे में दी ही नही है
हमे तो लगता है WHO कोरोना का इलाज खोजना चाहता ही नही है और ICMR भी इसी ट्रेक पर चल रहा है प्रेसकांफ्रेन्स में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'प्लाज्मा थेरेपी पर आईसीएमआर (ICMR) द्वारा की गई स्टडी के प्रारंभिक नतीजों से यह पता चला है कि ये कोविड में होने वाली मौतों से बचाने में कम सार्थक है. लेकिन यह स्टडी अभी और भी पहलुओं पर अपने नतीजों का आकलन करेगी और अंतिम नतीजे पर पहुंचेगी.
आखिर इस स्टडी की रिपोर्ट कब सार्वजनिक करेंगे ?
वैसे जब वेक्सीन की बात आती है तो ऐसा लगता है कि ICMR, बिग फार्मा ओर WHO का गुलाम सरीखा व्यहवार करता है लगता है यहाँ के विशेषज्ञों ने वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से सोचना बिल्कुल बन्द कर दिया है
पिछले दिनों ICMR ने WHO की हा में हा मिलाते हुए यह बयान जारी किया कि 50% प्रभावोत्पादकता वाली वैक्सीन मंजूर की जा सकती है।
यह तब हुआ जब Astrazeneca ने वैक्सीन से जुड़ा 111 पन्नों का ब्लूप्रिंट रिलीज़ किया है. और इस ब्लूप्रिंटके हिसाब से अगर ये वैक्सीन 50 प्रतिशत ही काम कर पाती है, तो भी इसे जनता के इस्तेमाल के लिए रिलीज़ कर दिया जाएगा.
इस पर भारत के ड्रग रेगुलेटर, सेंट्रल ड्रग्स ऐंड स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) के कोरोना वैक्सीन को लेकर जारी ड्राफ्ट गाइडेंस नोट में कहा है कि वह कोविड-19 के उन टीकों को अप्रूवल देने की योजना बना रहा है जो फेज 3 ट्रायल में कम से कम 50% लोगों पर असरदार साबित हो।
भारत के वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने इस पर सवाल खड़े नही किये लेकिन ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के विशेषज्ञों ने इस 50 प्रतिशत संभाव्यता पर अवश्य सवाल उठाए वे कहते है कि अगर दिग्गज कंपनियों की वैक्सीन सिर्फ कोरोना के मामूली लक्षण वाले मरीजों को ही सुरक्षा कवच दे पाएंगी और मौत के मुंह में जा रहे गंभीर मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा तो अरबों डॉलर फूंकने का क्या फायदा। वैक्सीन का मतलब ही है कि गंभीर मरीजों को इलाज मुहैया कराया जाए।.......
मॉलीक्यूलर मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. एरिक ट्रिपोल ने कहा है कि जब बिना टीके के ही मामूली लक्षण वाले और पहले किसी बीमारी से नहीं पीड़ित लोग ठीक हो रहे हैं तो क्या कंपनियां सिर्फ मुनाफे के लिए वैक्सीन का ढोल पीट रही हैं ?
साफ है कि जहाँ एक तरफ तो प्लाज्मा थेरेपी को इसलिए स्वीकार नही किया जा रहा है कि वह गंभीर मरीजो के इलाज में सफल नही है लेकिन जहाँ वेक्सीन की बात आती है फार्मा कंपनियों के मुनाफे की बात आती है 50 प्रतिशत सफलता को भी खुशी खुशी स्वीकार किया जा रहा है
स्पष्ट दिख रहा है कि WHO ओर भारत मे ICMR जैसे संस्थान फार्मा कंपनियों के गुलाम की भांति व्यहवार कर रहे हैं