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विश्व किडनी दिवस 2024 - 14 मार्च अनहैल्दी लाइफस्टाइल से बढ़ रहे किडनी रोग
स्वाति चौहान
नोएडा।क्रॉनिक किडनी डिजीज़ (सीकेडी) यानी किडनी के पुराने और गंभीर रोगों से आशय है समय के साथ किडनी फंक्शन में खराबी आना।मौजूदा समय में डायबिटीज़, हाइपरटेंशन और अनहैल्दी लाइफस्टाइल के अलावा बार-बार पैदा होने वाली पथरी की शिकायत जैसी वजहों से इस बीमारी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। सीकेडी के कारण कई तरह की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं, जैसे कि उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन), एनीमिया (खून की कमी), हड्डियों का कमज़ोर होना, नसों को नुकसान और हृदय व खून की नसों संबंधी बीमारियां। चिंता की बात यह है कि जहां एक ओर सीकेडी के मामले तो बढ़ रहे हैं, वहीं इस रोग के बारे में जानकारी की बहुत कमी है। इसके अलावा, मरीज़ों की देखभाल के लिए उचित हैल्थकेयर सुविधाओं का भी अभाव है। साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर रजिस्ट्री के न होने से भी यह समस्या लगातार बढ़ रही है। इस समस्या का समाधान करने और जागरूकता बढ़ाने के लिए फोर्टिस नोएडा ने एक प्रेस वार्ता का आयोजन किया, ताकि सीकेडी के बढ़ते मामलों की ओर ध्यान दिलाया जा सके और उन मरीज़ों के मामलों को सामने लाया जा सके जो अंतिम चरण की किडनी की बीमारी को हराकर आज स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।
ऐसा पहला मामला 29 वर्षीय महिला का था जो स्टेज 5 की किडनी की गंभीर बीमारी थीं। शुरुआत में उन्हें डायलिसिस पर रखा गया, इसके बाद उनकी तबियत तेज़ी से बिगड़ने लगी। उनमें उच्च रक्तचाप, बार-बार उल्टी जैसा महसूस होने, भूख न लगने और नींद न आने जैसे लक्षण दिखने लगे। इसके अलावा, उनके फेफड़ों में ट्यूबरकुलोसिस भी हो गया और नियमित तौर पर होने वाले डायलिसिस के साथ-साथ टीबी की दवाइयां भी दी जानेलगीं।
हालांकि, डायलिसिस से कुछ हद तक ही खून की सफाई हो पाती है और इसकी वजह से मरीज़ के खानपान पर भी रोक लगा दी गई जिसके चलते वह और भी कमज़ोर हो गईं और संक्रमण का खतरा भी बढ़ गया। डायलिसिस की वजह से मरीज़ के गर्भवती की संभावनाएं भी कमज़ोर पड़ने लगीं, ऐसे में परिवार शुरू करने के लिए किडनी ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपाय था। इस बारे में मरीज़ के परिवार से चर्चा की गई और उनके पिता ने अपनी किडनी दान की। ट्रांसप्लांट के बाद उनकी तबियत में सुधार हुआ और अब वह सेहतमंद जीवन जी रही हैं।
दूसरे मामले में 38 वर्षीय पुरुष में किडनी संबंधी कुछ सामान्य समस्या हुई जो बाद में बिगड़ने लगा और इसका काफी बुरा असर किडनी पड़ने लगा था। मरीज़ को काफी तेज़ बुखार रहने लगा और उनका कैरेटनाइन 8.2 के स्तर पर पहुंच गया। इससे जुड़ी हर तरह की जांच की गई और सीटी चेस्ट करने पर बड़े लिम्फ नॉड्स का पता चला। इसके बाद उनकी ब्रॉन्कोस्कोपी की गई जिससे ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) संक्रमण होने की जानकारी मिली। इसके बाद स्टेरॉयड के साथ-साथ उनका एंटी-ट्यूबरकुलर उपचार शुरू किया गया। टीबी का असर सिर्फ उनके फेफड़ों पर ही नहीं पड़ रहा था, बल्कि इस वजह से उनकी किडनियों में जलन भी हो रही थी और उनकी डायबिटिक किडनी बीमारी बढ़ रही थी। उनकी किडनी ने मूल काम करने बंद कर दिए थे और तीन हफ्तों की अवधि स्थिति खराब होती चली गई। अचानक से सामने आए टीबी संक्रमण की वजह से उनकी किडनी की गंभीर बीमारी (सीकेडी) और भी गंभीर हो गई। फोर्टिस में कम डोज़ वाले स्टेरॉयड के साथ-साथ एंटी-ट्यूबरकुलर थेरेपी की मदद से उनका कैरेटनाइन सामान्य स्तर पर आ गया।