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कड़वे शब्द कहे गए, हथियारों का निर्यात रोक दिया गया, लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सऊदी अरब के प्रति अपना रुख बदलते दिख रहे हैं. वजह है सुरक्षा और तेल आपूर्ति. मध्य पूर्व की यात्रा के दौरान सऊदी अरब के दौरा के अमेरिकी राष्ट्रपति के इस फैसले पर इतना विवाद हुआ कि राष्ट्रपति को एक संपादकीय लिखकर सफाई देनी पड़ी. जो बाइडेन इस्राएल से सीधे सऊदी अरब जाने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं. यात्रा से पहले अमेरिकी अखबार द वॉशिंगटन पोस्ट में उन्होंने लिखा, उन्हें पता है कि बहुत से अमेरिकी इस्राएल के बाद सऊदी अरब जाने के उनके फैसले से सहमत नहीं हैं, लेकिन "मानवाधिकारों के प्रति मेरा नजरिया स्पष्ट और पहले जैसा ही है...शुक्रवार को जब मैं सऊदी अधिकारियों से मिलूंगा तो मेरा लक्ष्य साझा मूल्यों और जिम्मेदारियों के आधार पर रणनीतिक साझेदारी मजबूत करना होगा, इस दौरान बुनियादी अमेरिकी मूल्यों के प्रति अडिग रहा जाएगा."
सऊदी अरब के राजकुमार क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से बातचीत करना बाइडेन के लिए एक यू टर्न लेने जैसा है. अतीत में बाइडेन सऊदी अरब को एक "अछूत" राष्ट्र कह चुके हैं. "अछूत" यानी ऐसा देश जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग थलग कर दिया गया हो. बाइडेन ने 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद यह बात कही थी. तब बाइडेन ने यह भी कहा था कि वे सिर्फ मोहम्मद बिन सलमान के पिता, यानि सऊदी अरब के राजा से ही बात करेंगे. इसके बाद फरवरी 2021 में बाइडेन प्रशासन ने यमन के युद्ध में सऊदी अरब की और सहायता ना करने का भी एलान किया. यमन में सऊदी अरब के नेतृत्व में सेना ईरान समर्थक हूथी उग्रवादियों से लड़ रही है. बाइडेन प्रशासन के इस फैसले के साथ ही अमेरिका ने सऊदी अरब को प्रमुख हमलावर हथियारों का निर्यात भी रोक दिया.
आज की परिस्थितियों में बाइडेन शायद ही ऐसा बयान दे सकेंगे. जर्मन शहर हैम्बर्ग में जीआईजीए इंस्टीट्यूट ऑफ मिडिल ईस्ट स्टडीज के डायरेक्टर एकार्ट वोएर्त्स कहते हैं, "निश्चित रूप से जब बात मानवाधिकारों पर आएगी तो लिप सर्विस की जाएगी." इसमें अगली पंक्ति जोड़ते हुए वोएर्त्स कहते हैं, "लेकिन भाषा अलग होगी, पहले के मुकाबले कहीं अलग." बाइडेन के पुराने बयानों के बाद से अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी है. ऐसे कई कारण हैं जो अमेरिकी राष्ट्रपति को अपना रुख बदलने पर मजबूर कर रहे हैं. बाइडेन चाहते हैं कि अमेरिका के भरोसेमंद साझेदार इस्राएल के साथ सऊदी अरब के रिश्ते बेहतर हों. इस्राएल और सऊदी अरब दोनों ईरान को लेकर परेशान रहते हैं और यह परेशानी गोंद का काम कर सकती है.
यूएई और बहरीन 2020 से ही इस्राएल के साथ संबंध सुधारने की शुरुआत कर चुके हैं. अब सऊदी अरब भी इस ट्रैक पर उतर रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति के इस्राएल दौरे के आखिरी दिन सऊदी अरब की सिविल एविएशन अथॉरिटी ने इस्राएल जाने वाले विमानों के लिए अपना एयरस्पेस खोलने का एलान कर दिया. जो बाइडेन ने इसे "ऐतिहासिक फैसला" बताते हुए सऊदी नेतृत्व की तारीफ की. हालांकि इस बात की संभावना अब भी कम है कि सऊदी अरब जल्द कथित अब्राहम संधियों में दस्तखत करेगा. इस्राएल के साथ कारोबार और कूटनीतिक संबंध बढ़ाने के लिए मध्य पूर्व के कई देश ऐसी संधियां कर रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के सऊदी अरब पहुंचने की सबसे बड़ी वजह है, यूक्रेन पर रूसी हमला. यूरोप में छिड़ा यह युद्ध पूरी दुनिया के लिए आर्थिक चुनौती बन रहा है. प्रतिबंधों के चलते रूस से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की सप्लाई बाधित हुई है और इसका असर अमेरिका समेत दुनिया भर के देशों में देखा जा रहा है. यूरोप, अमेरिका और एशिया के ज्यादातर देशों में बीते छह महीने में तेल और गैस के दाम बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं. वोएर्त्स कहते हैं कि मंहगे ईंधन का असर आने वाले अमेरिकी चुनावों में साफ तौर पर दिखाई पड़ेगा. अमेरिकी संसद कांग्रेस के चुनाव नवंबर में होने हैं.
वोएर्त्स के मुताबिक, "ऊर्जा का ऊंचा दाम विपक्ष के लिए एक तोहफा है. इसीलिए वह सऊदी अरब को तेल उत्पादन बढ़ाने के लिए रिझाने में इतनी दिलचस्पी ले रहे हैं." लेकिन क्या सऊदी अरब अमेरिकी राष्ट्रपति के खातिर ज्यादा तेल पंप करेगा. सऊदी अरब के लिए ऐसा करना आसान नहीं है. कोरोना महामारी के दौरान तेल के दामों में भारी गिरावट आई. लंबे समय बाद सऊदी अरब का बजट कम पड़ा. वोएर्त्स कहते हैं कि तेल का महंगा दाम फिलहाल सऊदी अरब की आर्थिक जरूरतों के लिहाज से एकदम फिट बैठता है.
तमाम शंकाओं के बावजूद बाइडेन का इस्राएल से सऊदी अरब जाने का फैसला, अमेरिका की सामरिक चिंताओं को भी दिखाता है. मध्य पूर्व एशिया में अमेरिका का प्रभाव तेजी से खत्म हो रहा है. बाइडेन से पहले राष्ट्रपति रह चुके बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप ने मध्य पूर्व में अमेरिकी गतिविधियों को सीमित करने वाले कई कदम उठाए. अब अमेरिका को वहां क्षेत्रीय शक्ति समीकरण तय करने वाले देश की तरह नहीं देखा जाता है. सऊदी अरब जैसे देश अब नए संभावित साझेदार खोज रहे हैं.
उदाहरण के लिए चीन बैलिस्टिक मिसाइलें बनाने में सऊदी अरब की मदद कर रहा है. परमाणु रिएक्टर लगाने में मॉस्को से मदद मिल रही है. सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए तो अमेरिका सऊदी अरब का सबसे अहम पार्टनर है. सऊदी अमेरिकी हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार भी है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिप्री) के मुताबिक 2016 से 2020 के बीच अमेरिका के कुल हथियार निर्यात का 24 फीसदी हिस्सा सऊदी अरब गया. फरवरी 2021 में बाइडेन प्रशासन ने यमन युद्ध का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी. वोएर्त्स के मुताबिक बाइडेन के इस रोक ने अमेरिका और सऊदी अरब के भरोसेमंद रिश्ते पर चोट पहुंचाई