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डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिकी कांग्रेस (निम्न सदन) की अध्यक्षा नैन्सी पेलोसी की ताइवान-यात्रा पर सारी दुनिया का ध्यान केंद्रित हो गया था। न तो ताइवान कोई महाशक्ति है और न ही पेलोसी अमेरिका की राष्ट्रपति है। फिर भी उनकी यात्रा को लेकर इतना शोर-शराबा क्यों मच गया? इसीलिए कि दुनिया को यह डर लग रहा था कि ताइवान कहीं दूसरा यूक्रेन न बन जाए। वहां तो झगड़ा रूस और यूक्रेन के बीच हुआ है लेकिन यहाँ तो एक तरफ चीन है और दूसरी तरफ अमेरिका!
यदि ताइवान को लेकर ये दोनों महाशक्तियाँ भिड़ जातीं तो तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा पैदा हो सकता था लेकिन संतोष का विषय है कि पेलोसी ने शांतिपूर्वक अपनी ताइवान-यात्रा संपन्न कर ली है। चीन मानता है कि ताइवान कोई अलग राष्ट्र नहीं है बल्कि वह चीन का अभिन्न अंग है। यदि अमेरिका चीन की अनुमति के बिना ताइवान में अपने किसी बड़े नेता को भेजता है तो यह चीनी संप्रभुता का उल्लंघन है। अमेरिकी नेता नैन्सी पेलोसी की हैसियत राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के बाद तीसरे स्थान पर मानी जाती है। यों तो कई अमेरिकी सीनेटर और कांग्रेसमेन ताइवान जाते रहे हैं लेकिन पेलोसी के वहां जाने का अर्थ कुछ दूसरा ही है। चीन मानता है कि यह चीन को अमेरिकी की खुली चुनौती है।
चीनियों ने दो-टूक शब्दों में धमकी दी थी कि यदि नैन्सी की ताइवान यात्रा हुई तो चीन उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई किए बिना नहीं रहेगा। चीन ने ताइवान के चारों तरफ कई लड़ाकू जहाज और जलपोत डटा दिए थे और अमेरिका ने भी अपने हमलावर जहाज, प्रक्षेपास्त्र और जलपोत आदि भी तैनात कर दिए थे। डर यह लग रहा था कि यदि गल्ती से एक भी हथियार का इस्तेमाल किसी तरफ से हो गया तो भयंकर विनाश-लीला छिड़ सकती है। चीन इस यात्रा के कारण इतना क्रोधित हो गया था कि उसने ताइवान जानेवाली हर चीज़ पर प्रतिबंध लगा दिया था। ताइवान भी इतना डर गया था कि उसने अपने सवा दो करोड़ लोगों को बमबारी से बचाने के लिए सुरक्षा का इंतजाम कर लिया था।
पेलोसी 24 घंटे ताइवान में बिताकर अब दक्षिण कोरिया रवाना हो गई हैं। वे ताइवानी नेताओं से खुलकर मिली हैं और अमेरिका चीन के खिलाफ बराबर खम ठोक रहा है। जो बाइडन की सरकार के लिए पेलोसी की ताइवान-यात्रा और अल-क़ायदा के सरगना अल-जवाहिरी का उन्मूलन विशेष उपलब्धि बन गई है। चीन ने जवाहिरी की हत्या पर भी अमेरिका की आलोचना की है। चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते हुए तनाव के कारण चीन ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बने चार देशों के चौगुटे की भी खुलकर निंदा की थी।
पेलोसी की इस ताइवान-यात्रा ने सिद्ध कर दिया है कि चीन कोरी गीदड़भभकियाँ देने का उस्ताद है। इस मामले के कारण चीन का बड़बोलापन बदनाम हुए बिना नहीं रहेगा। पेलोसी की इस यात्रा ने अमेरिका की छवि चमका दी है और चीन की छवि को धूमिल कर दिया है।