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- पाकिस्तान में निशाने...
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फैसलाबाद के जरनवाला जिले में ईशनिंदा के आरोप में चर्चों में की गई तोड़फोड़ से पुनः ध्वनित हुआ है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय सुरक्षित नहीं है। उल्लेखनीय है कि एक ईसाई सफाईकर्मी पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर कट्टरपंथी तत्वों ने साल्वेशन आर्मी चर्च, यूनाइटेड प्रेस्बिटेरियन चर्च, एलाइड फाउंडेशन और शहरुनवाला चर्च समेत दो दर्जन से अधिक चर्चों में तोड़फोड़ की है। जबकि चर्च आॅफ पाकिस्तान के अध्यक्ष विशप आजाद मार्शल का कहना है कि कट्टरपंथी तत्वों ने बाइबिल का अपमान किया और ईसाईयों पर पवित्र कुरान के अपमान का झूठा आरोप लगाकर चर्चो को नुकसान पहुंचाया। उन्होंने पाकिस्तान सरकार से अपने लोगों की सुरक्षा और न्याय की मांग की है।
हमले का आरोप चरमपंथी ग्रुप तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान पर लगा है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब ईशनिंदा के आरोप में चर्चों को निशाना बनाया गया है। गत वर्ष पहले बलूचिस्तान प्रांत के क्वेटा बेथल मेमोरियल चर्च को नुकसान पहुंचाते हुए वहां प्रार्थना के लिए एकत्रित ईसाई समुदाय के 9 लोगों की नृशंस हत्या की गई। कट्टरपंथियों ने हमले को तब अंजाम दिया जब चर्च में रविवार की सामूहिक प्रार्थना के लिए ईसाई समुदाय के लोग इकठ्ठा थे। हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने ली थी। लेकिन इस कारस्तानी के पीछे वस्तुतः तालिबानी आतंकियों का हाथ था। इसी तरह लाहौर के योहानाबाद इलाके में तालिबानी आतंकियों ने दो चर्चों में आत्मघाती हमलाकर 15 लोगों की जान ली थी। 2013 में भी आतंकियों ने पेशावर में आॅल सेंट चर्च को निशाना बनाया था जिसमें 80 से अधिक श्रद्धालु मारे गए थे। 100 से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए थे। उस समय भी हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान का धड़ा जनदुल्ला ने लिया था।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में ईसाई समुदाय के लोगों की संख्या 1.6 फीसदी है। वर्तमान समय में दिनोंदिन उनकी संख्या कम होती जा रही है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। एक, आतंकियों की डर की वजह से पलायन और दूसरा जबरन धर्मांतरण। धर्मांतरण का विरोध करने पर उनके साथ बर्बरता का व्यवहार किया जाता है। याद होगा गत वर्ष पहले पाकिस्तान के गोजरा में 1000 कट्टरपंथियों ने इसाई घरों पर हमला बोल 6 लोगों को जिंदा जला दिया था। उनकी संपत्ति भी लूट ली थी। इस तरह के हमले अब पाकिस्तान में सामान्य बात हो गयी है। लेकिन गौर करें तो अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले के लिए सिर्फ कट्टरपंथी व आतंकी समूहों को ही जिम्मेदार नहीं हैं। इसके पीछे सरकार की अल्पसंख्यक विरोधी नीति विशेष रुप से ईश निंदा कानून भी जिम्मेदार है। आतंकियों के डर से सरकार ईश निंदा कानून को खत्म करने का निर्णय नहीं ले पा रही है और उसका खामियाजा अल्पसंख्यक समुदाय को भुगतना पड़ रहा है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के लिए नफरती मजहबी शिक्षा भी एक प्रमुख वजह है। गत वर्ष पहले अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रकाशित अमेरिकी आयोग की एक रिपोर्ट से उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तानी स्कूलों की किताबें अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता को बढ़ावा देती है।
मजहबी शिक्षक धार्मिक अल्पसंख्यकों को इस्लाम के शत्रु की तरह पेश करते हैं। उन्हें काफिर बता मुस्लिम बच्चों के मन में जहर घोलते हैं। रिपोर्ट में यह भी उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तान में सामाजिक अध्ययन की पाठ्य पुस्तकें भारत और ब्रिटेन के संबंध में नकारात्मक टिप्पणी से अटी पड़ी हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि पाठ्य पुस्तकों का इस्लामीकरण की शुरुआत अमेरिका समर्थित तानाशाह जिया-उल-हक के सैन्यकाल में हुई। बाद की सरकारें पाठ्यक्रमों में सुधार की बात तो की लेकिन उसमें बदलाव नहीं की। इसका मूल कारण यह है कि वह मजहबी कट्टरपंथियों और आतंकियों से डरती है। ध्यान देना होगा कि पाकिस्तानी स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत के शब्द उड़ेले गए हैं। ऐसे में अगर पाकिस्तान का आमजनमानस गैर-इस्लामिक देशों और वहां के निवासियों को घृणा की दृष्टि से देखता है और कट्टरपंथी हमले करते हैं तो यह स्वाभाविक है।
गत वर्ष पहले अमेरिकी संगठन प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तान में हर चार में से तीन नागरिक भारत समेत गैर-इस्लामिक देशों के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। इसका मुख्य कारण स्कूलों में परोसी जा रही जहरीली मजहबी शिक्षा है। एक अन्य सर्वेक्षण के मुताबिक 57 फीसद पाकिस्तानी नागरिक भारत और अमेरिका को अलकायदा और तालिबान से भी खतरनाक मानते हैं। यही वजह है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लोगों की आवाज बुलंद करने वाले भी अब आतंकियों और कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए हैं। गत वर्ष पहले आतंकियों ने पाकिस्तान के 42 वर्षीय मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी गयी थी कि उन्होंने अल्पसंख्यक हितों की आवाज बुलंद की थी। वे चाहते थे कि अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को भी उनका वाजिब हक मिले और सरकार ईश-निंदा कानून में बदलाव लाए। लेकिन कट्टरपंथियों को उनकी पहल रास नहीं आयी और वे उनकी जान लेकर ही छोड़े। कट्टरपंथ के खिलाफ आवाज उठाने वाले पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर भी कट्टरपंथियों की क्रुरता से बच नहीं पाए। आतंकियों ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी।
इस हत्या की विश्वव्यापी आलोचना हुई और पाकिस्तान को अपना बचाव करते हुए कहना पड़ा कि वह दहशतगर्दों से कड़ाई से निपटेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि वह इस दिशा में कुछ भी प्रयास नहीं कर रहा है। उल्टे वह दहशतगर्दों को संरक्षण दे रहा है। नतीजा यह है कि आज कट्टरपंथियों का हौसला बुलंद है और वे उदारवादी सोच रखने वाले लोगों को निशाना बना रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुकात रखने वाली आसिया बीबी को भी कट्टरपंथियों ने मार डाला था। भला ऐसे हालात में कोई अल्पसंख्यक समुदाय पाकिस्तान में कैसे सुरक्षित रह सकता है। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पाकिस्तान में सिर्फ हिंदू या ईसाई ही असुरक्षित नहीं हैं। बल्कि शिया समुदाय भी असुरक्षित है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के आतंकी लगातार शिया मस्जिदों में हमलाकर लोगों की जान ले रहे हैं।
याद होगा गत वर्ष पहले इन आतंकियों ने सिंध प्रांत में शिया मस्जिद में हमलाकर पांच दर्जन से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया। सच तो यह है कि पाकिस्तान में शिया समुदाय भी उतना ही असुरक्षित और भयग्रस्त है जितना कि अन्य अल्पसंख्यक समुदाय। दरअसल शिया-सुन्नी के बीच टकराव पैगम्बर मुहम्मद की मृत्यु के उपरांत से ही चला आ रहा है। शिया समुदाय का कहना है कि सन् 632 में पैगम्बर मुहम्मद साहब ने अपने अपने दामाद अली को अपना वारिस बनाया लिहाजा मुसलमानों का नेतृत्व करने का अधिकार अली और उनके वंशजों का है। लेकिन सुन्नी समुदाय इसे स्वीकार नहीं करता। यही वजह है कि दोनों समुदायों के बीच टकराव की गूंज लेबनान से सीरिया और इराक से पाकिस्तान तक सुनी जा रही है।
पाकिस्तान में कट्टपंथियों और तालिबानी दहशतगर्दों पर कड़ी कार्रवाई न करने का ही नतीजा है कि आज पाकिस्तान के 65 फीसद भू-भाग पर आतंकियों का कब्जा है। देखा जाए तो इसके लिए वहां की हुकूमत ही जिम्मेदार है। दुनिया पाकिस्तान को लगातार आगाह कर रही है कि वह अपनी धरती पर कट्टरपंथियों और आतंकियों को संरक्षण न दे लेकिन वह समझने को तैयार नहीं है। हकीकत तो यह है कि जब भी पाकिस्तानी हुक्मरानों को लोकतंत्र को मजबूत करने का अवसर मिलता है, इसका लाभ उठाने के बजाए कट्टरपंथी दहशतगर्दों के ही पांव सहलाते हैं। ऐसी स्थिति में कट्टरपंथ का बोलबाला बढ़ेगा ही। पाकिस्तान में दहशतगर्दी का एक मुख्य कारण इस्लामिक विचारधारा का उग्र प्रसार भी है। उसी का कुपरिणाम है कि आज पाकिस्तान अपनी ही आग में जल रहा है। बेहतर होगा कि पाकिस्तान की सरकार अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की सुरक्षा के लिए ठोस उपाय करे। उसे समझना होगा कि अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले से उसकी छवि बिगड़ रही है। दुनिया में संदेश जा रहा है कि पाकिस्तान की सरकार दहशतगर्दों के साथ है। अगर पाकिस्तान को विश्व बिरादरी में अपना सम्मान हासिल करना है तो उसे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर कट्टरपंथियों का फन कुचलना ही होगा।