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अमेरिका में कोरोना वायरस क्या इस वजह से जल्दी फ़ैल गया
हेमंत झा
फरवरी के अंतिम सप्ताह में, जब अमेरिका में कोरोना संकट बढ़ता जा रहा था और ट्रम्प भारत यात्रा पर रवाना होने वाले थे, आपदा प्रबंधन के प्रमुख ने उनसे आपातकालीन बातचीत का समय मांगा। लेकिन, ट्रम्प ने भारत की उड़ान ले ली और उन्हें समय नहीं दिया।
उधर, बोरिस जॉनसन को जब पत्रकारों ने ब्रिटेन में कोरोना के बढ़ते मामलों पर सवाल किया तो उन्होंने लापरवाही से कंधे उचकाते हुए इसे 'कोई खास बड़ी समस्या' नहीं बताया और हंसते हुए यह भी कहा कि "मैं तो अभी एक कोरोना पॉजिटिव से हाथ मिला कर आ रहा हूँ।'
इटली में जब संक्रमण पहुंचा तो वहां के डॉक्टर्स चिंतित हुए और चीन के लोगों से, जो बड़ी संख्या में इटली में रहते हैं और अपने देश आते-जाते रहते हैं, एक निश्चित फिजिकल डिस्टेंस बना कर रखने की सलाह दी। इटली की सरकार ने इस पर वाजिब संज्ञान नहीं लिया, न नागरिकों ने इसे गंभीरता से लिया। उनमें 'इटली चीनी भाई भाई' की भावुकता ओढ़ कर चीनियों से गले मिलने की होड़ लग गई।
ईरान में कोरोना ने जब दस्तक दी तो वैज्ञानिकों ने चेतावनी जारी की कि धर्म स्थलों पर जमा होने से कोरोना संक्रमण फैल सकता है। धार्मिक प्राधिकार नियंत्रित ईरान की सरकार ने इन चेतावनियों का मजाक उड़ाया और उससे दस कदम आगे बढ़ कर ईरान के लोग न सिर्फ भारी संख्या में मस्जिदों में उमड़ पड़े, बल्कि सामूहिक रूप से मस्जिदों की दीवारें चाटने लगे।
भारत देश महान की सरकार तो 'केम छो ट्रम्प' के आयोजन में और मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने में इस कदर मशगूल रही कि ध्यान ही नहीं रहा कि कोरोना भी कोई चीज है जो कहर बरपाने देश में आ पहुंचा है।
संक्रमण बढ़ रहा था, विशेषज्ञ एक साथ समूह में जुटने के खिलाफ चेतावनी दे रहे थे, उधर भेड़ों की तरह विधायकों के झुंड को घुमाया जा रहा था।
ट्रम्प के स्वागत में अहमदाबाद में लाखों लोग सड़कों पर और स्टेडियम में एक साथ इकट्ठे हुए और भारत-अमेरिकी दोस्ती का कोरस गान किया।
चीन में, जहां से इस त्रासदी की शुरुआत हुई, सरकार ने, पता नहीं किस उद्देश्य से, संक्रमण फैलने की खबरों को पहले दबाने की कोशिश की और जिस डॉक्टर ने इस जानकारी को साझा किया उसे दंडित किया।
आज जब, नेतृत्व करने वाले वर्ग की सामूहिक असावधानियों और मूर्खताओं के कारण दुनिया महामारी की अभूतपूर्व त्रासदी से दो-चार हो रही है तो यही नेता गण अपनी पब्लिक को कह रहे हैं,"यह युद्ध का समय है" और कि, "इस युद्ध में जनता को न सिर्फ अधिकतम स्तरों पर सतर्क रहना होगा बल्कि हर स्तर पर सरकारों का सहयोग भी करना होगा।"
इस तर्क को कि कोरोना आकस्मिक संकट है और आकस्मिकताएँ अक्सर अफरातफरी को जन्म देती ही हैं, पूरी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता।
वैज्ञानिकों ने, डॉक्टरों ने, विशेषज्ञों ने संकट के शुरुआती दौर में ही प्रायः तमाम देशों की सरकारों को चेतावनी दे दी थी कि ऐसी महामारी फैल रही है जिसका न कोई टीका है न कोई इलाज।
महत्वपूर्ण यह है कि विशेषज्ञों की चेतावनियों का राजनीतिक नेतृत्व ने किस तरह संज्ञान लिया।
जो ट्रम्प कोरोना का मजाक उड़ा रहे थे वे आज टीवी पर अमेरिका में हो रही रोजाना हजारों मौतों का ब्यौरा दे रहे हैं, जो बोरिस जॉनसन लापरवाही से हंसते हुए बता रहे थे कि अभी वे कोरोना पॉजिटिव से हाथ मिला कर आए हैं वे खुद संक्रमित होकर आईसीयू में भर्त्ती हुए और ब्रिटेन का हाल इतना बुरा है कि शवों को दफनाने को जगह की कमी हो रही है।।
ईरान के धार्मिक और राजनीतिक नेताओं की बोलती बंद है, यूरोप के कई देश कोरोना से हो रही मौतों को ठीक से गिनने की स्थिति में भी नहीं रह गए हैं।
अपने भारत में...ट्रम्प के दौरे के बाद जब मध्य प्रदेश की सरकार भी गिर गई और नई बन गई तो उसके बाद स्थिति को 'बेहद गंभीर' घोषित कर दिया गया और फिर... आनन फानन में देश व्यापी लॉक डाउन घोषित कर दिया गया।
यह लॉक डाउन जरूरी रहा हो, लेकिन इसके लागू करने का तरीका महानगरों में रह रहे करोड़ों प्रवासी श्रमिकों के मद्देनजर इतना गैर जिम्मेदाराना था कि इसके बाद क्या हुआ यह दोहराने की जरूरत नहीं।
संकट काल में नेतृत्व की, तंत्र की और विशेषज्ञों की परीक्षा होती है। दुनिया भर के विशेषज्ञ इस कसौटी पर खरे उतरे। उन्होंने समय रहते लोगों को और सरकारों को चेताना शुरू कर दिया।
लेकिन, अपवादों को छोड़ कर दुनिया का राजनीतिक नेतृत्व एक्सपोज हो चुका है कि कितने अदूरदर्शी नेताओं के हाथों में हमारी तकदीरों की कमान है।
न सिर्फ अदूरदर्शिता...बल्कि नेताओं की ऐसी राजनीतिक स्वार्थपरता भी एक्सपोज हुई है जिन्होंने इस त्रासद दौर में भी जनता की जान से अधिक अपने राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखा।
वैज्ञानिकों ने ही दुनिया को समय पर जागरूक किया, भले हम जागरूक नहीं हुए...और...अंततः वैज्ञानिक ही इस संकट का हल भी निकालेंगे।
हालांकि, क्रेडिट लेने का जब वक्त आएगा तो नेता जी लोग आगे होंगे।
बाकी...उनका जयकारा लगाने के लिये हम तो हैं ही।
लेखक हेमंत झा की फेसबुक वाल से साभार